-Dr.Dilip Girhe
माँ !
दिन-रात संघर्ष करती रही है
बेटे को साहेब बनाने के लिए
माँ!
सुबह चार बजे उठती
खाना बनाकर देती
खेतों और गिट्टी खदानों में काम करने जाती
एक-एक पैका जमा करती
बेटे को कपड़े ख़रीकर देती
ख़ुद कुछ फटे हुए कपड़े सिलाकर पहनतीं
बेटे को साहेब बनाने के लिए
माँ!
अपना बेटा घर आने के बाद
बार-बार पूछतीं
बेटा खाना खाया है?
सबके मुँह में खाना डालती
फिर खाना खाती
बेटे को साहेब बनाने के लिए
माँ!
हमेशा पूछती रहती हैं
बेटा तू कब साहेब बनने वाला हैं?
मैं तो एक अक्षर भी नहीं पढ़ी हूँ
इसीलिए तुझे पढ़ा रही हूँ
बेटा साहेब बनने के लिए
माँ!
हमेशा दलित बस्ती के
लाउडस्पीकर से सुनती थी
बाबासाहेब अम्बेडकर
सावित्रीबाई फुले
माता रमाबाई और
माता जिजाऊ का संघर्ष
इसीलिए वो भी देखना चाहती है
बाबासाहेब की तरह
अपने बेटों में साहेब
इसीलिए आज भी
संघर्ष करती रहती हैं
बेटे को साहेब बनाने के लिए...
4 टिप्पणियां:
Very nice sir ji
वास्त विकता पर आधरित
Ma ke sangharsh ka varnan Bahut hi gaharai se kiya☺️❤️
बहुत ही सुंदर कविता है।
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