रविवार, 31 मार्च 2024

भुजंग मेश्राम के 'आदिवासी कविता' एवं 'उलगुलान' काव्य संग्रह की संवेदना || BHUJANG MESHRAM KE ADIWASI KAVITA AUR ULGULAN KAVYAS SA

 भुजंग मेश्राम के 'आदिवासी कविता' एवं 'उलगुलान' काव्य संग्रह की संवेदना

                                               -Dr.Dilip Girhe



प्रस्तावना :

समकालीन मराठी आदिवासी साहित्य में १९५० से लेकर २००० तक के समय में आदिवासी काव्य ने एक नई दिशा प्राप्त कर काव्य लेखन शुरू किया| यह लेखन एक 'नवकाव्य' के रूप में सामने आया| जिसे मराठी आदिवासी साहित्य की एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है| इस लेखन आदिवासियों के अनेक प्रश्न, समस्या, अपनी अस्तित्व, अस्मिता, भाषा, जल, जंगल जमीन जैसे अनेक मुद्दों उठाया और निराकरण करने के लिए अपने मत भी व्यक्त किये हैं|भुजंग मेश्राम की कविताओं ने भी इसी कड़ी में सिलसिला जारी रखा था| जिसमें से 'आदिवासी कविता' और 'उलगुलान' काव्य संग्रह महत्वपूर्ण हैं| 

आदिवासी कविता काव्य संग्रह-१९७५: 

सन् १९७५ में भुजंग मेश्राम का गोंडी भाषा में 'आदिवासी कविता' नामक काव्य संकलन प्रकाशित हुआ|इस काव्य संग्रह से मराठी आदिवासी काव्य में एक नई ऊर्जा आ गई|शोषित समाज के लिए अपना जीवन खर्च करने वाले कार्लमार्क्स, बुद्ध और मार्टिन ल्युथर किंग के आगे इन जैसे कवियों की प्रतिभा नतमस्तक होती हुई दिखती है|ऐसा अभिप्राय इस काव्य लेखन के प्रस्तावना में व्ही. डी. चंदनशिव देते हैं| 'नशीब में ही नहीं था' जैसे प्रवृतियों को भुजंग मेश्राम की कविता नकार देती है|दुर्योधन प्रवृतियों के लोगों का प्रतिकार करना इन कविता अंगों में बसा है| यह कविताएँ गोंडी भाषा में होने के बावजूद भी इसकी मूल संवेदना 'सत्यमेव जयते' की है|  

उलगुलान काव्य संग्रह-१९९५: 

मराठी आदिवासी काव्य परम्परा का भुजंग मेश्राम का यह दूसरा काव्य संग्रह है|भुजंग मेश्राम कहते हैं कि 'सभी स्तरों पर एक ही समय में किया गया आंदोलन' को उलगुलान कहा जाता है|उलगुलान यह मुंडारी भाषा का शब्द है जिसके हिंदी में कई अर्थ होते हैं|जैसे-आंदोलन, प्रतिकार, नकार, प्रतिरोध, नई क्रांति इत्यादि|भुजंग मेश्राम की कविताओं ने आदिवासियों की गौरवशाली परंपरा को चित्रित किया है|उनकी कविताएँ प्रकृति के सानिध्य में रहने वाले आदिवासी की जीवन कहानी बताती है| मुख्य प्रवाह से दूर रहने वाला आदिवासी, सीमेंट कंक्रीट के रास्तों एवं घरों से दूर रहने वाला आदिवासी की संवेदनशील ये कविताएँ रेखांकित करती है|साथ उनके कविताओं पर आलोचना करने वालो को भी प्रति उत्तर दिया है|यह कविताएँ गोंडी, परधानी, वर्हाडी और गोरमाटी भाषाओं में है लेकिन इसका स्वर समग्र मराठी भाषा सहित हिंदी जैसे राष्ट्रीय स्तर के भाषा तक पहुँच गया है|परिणामस्वरूप हम देख रहे हैं कि आदिवासी विर्मश ने जन्म लिया है|

संदर्भ:

आदिवासी साहित्य दिशा व दर्शन-डॉ विनायक तुमराम