सोमवार, 18 मार्च 2024

समकालीन मराठी आदिवासी कविताओं में वैचारिक चुनौतियाँ (विशेष संदर्भ: मी तोडले तुरुंगाचे दार) samakalin adiwasi kavitaon mein vaicharik chunoutian

 


समकालीन मराठी आदिवासी कविताओं में वैचारिक चुनौतियाँ 

(विशेष संदर्भ: मी तोडले तुरुंगाचे दार) 

                                                                                                                            -डॉ दिलीप गिऱ्हे 

        समकालीन मराठी आदिवासी कविताओं में लेखक प्रा. माधव सरकुंडे का नाम बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता हैं जिन्होंने कविता इस विधा के क्षेत्र में मनोगत, रानपाखरांची संसद,मी तोडले तुरुंगाचे दार(2011), चेहरा हरवलेली मानसं(2015) और एक अनुदित काव्य संग्रह ब्लैक इस ब्यूटीफुल यह लिखकर मराठी आदिवासी कविताओं में अपना नाम स्थापित किया| इसके साथ उनकी वैचारिक लेखन संपदा में ‘सल’, ‘धनगर आदिवासी नाहीत’, ‘आदिवासी अस्मितेचा शोध’, यह ग्रन्थ हैं तो ‘वाडा’ यह उनका उपन्यास हैं| कहानी साहित्य में ‘सर्वा’ और ‘ताडमं’ यह उनके कहानी संकलन हैं| और आने वाले दिनों में ‘शिक्षण राजकारण आणि धर्म’, ‘आदिनायक बिरसा मुंडा’ और ‘एका शाळा बाह्य मुलांची गोष्ट(आत्मकथा)’ यह उनकी आगामी ग्रन्थ सम्पदा हैं| उन्होंने ‘मी तोडले तुरुंगाचे दार’ इस काव्य में प्रस्थापित व्यवस्था के खिलाफ अपनी कलम की प्रतिरोधकता दिखाई हैं । आज भारत को स्वाधीनता के 69 साल पूरे हो गए हैं लेकिन जो परिस्थितियां उस समय थी वह आज भी बाहुल्य मात्रा में दिखाई दे रही हैं| उनके इस कविता संग्रह में ‘बंधुनों’, ‘तुम्ही ठरावा’,’मैलाचा दगड’, ‘ज़र असेल काळजात तर ठोका’, ‘बिरसा’ यह उनकी लंबी कविताएँ हैं तो इसके बावजूद 14 कविताएँ लघु हैं| यह कवि आदिवासी लेखक होकर भी वह अपने विचार बुध्द, फुले, अम्बेकर के विचारों से जोड़ते हैं| प्रा. डॉ. अशोक काम्बले उन्हें ‘वादळाचा वेध घेणारा कवी’ यह कहा हैं तो प्रा. अशोक खंदारे उन्हें ‘परिवर्तानाच्या लढ्याचे रानाशिग’ यह नाम देते है| आज आदिवासी साहित्य में लेखन करने वाले बहुत ही कम लेखक हैं| वह ‘बंधुनों’ इस कविता में आदिम जनसमूह को को यह संदेश देते हैं कि,  आज हम सबको एकता से और हिम्मत से अपने ध्येय की ओर बढ़ना होगा तभी हमारी उन्नति हो सकती हैं अन्यथा नहीं आज कई गाँव हैं जो की ‘अंधविश्वास’ के बलि चढ़े हैं और भोंदू साथु महाराज लोग तुम्हारा उपयोग अपने फायदे के लिए कर रहें हैं इन सबसे बचके रहनां मेरे भाइयों| हजारों सालों से हमारा शोषण किया गया हमें विस्तापित किया गया आज हमारें साथ संविधान हैं किसे से डरने की जरुरत नहीं हैं हम अपने हक्क और अधिकारों के लिए हमेशा लढते रहेंगे संघर्ष करते रहेंगे| वह आगे कहते हैं कि बंधुनों तुम खुद को ही सवाल पूछो उसका भी उत्तर अपने आप मिल जायेगा| जिस तरह से सूरज तेज किरणों के साथ उज्जला देता हैं उसी तरह से तुम भी अपने समाज के लिए एक रोशनी बनों| सूरज, चाँद, तारें इन सब मे जो गुण है वह गुण भी हम सब मे हैं अब दिखाने का समय आ गया हैं| क्रांति का संदेश और गीत गाने वाली नदियाँ तुम्हें बुला रही हैं और तुम मनु के गंदी नाली के पास रुके हो? प्रकाश की किरनें  आपका स्वागत कर रहीं हैं जरा आ जाओं उज्जाले में| कवि आगे कहते हैं भाइयों और बहनों एक सवाल पुछु क्या आपको, क्या आपको इस प्रस्थापित व्यवस्था में जीवन जीते समय कभी आपके मन में घृणा नहीं पैदा हुई? कवि अपने भाइयों को कहते हैं कि-

बंधूनों !

तुम्ही महाकाव्य आहात

ऊरात मशाली घेऊन फिरणारे

तुम्ही महासागर आहात

ओठात वडवानाळ वाहून नेणारे

तुम्ही झुकवू शकता अनंत आकाश

तुमच्या पायावर

 तुम्ही पृथ्वीला नाचवू शकता तळहातावर|” 1  

इस विश्व में असंभव कोई भी बात नहीं हैं हर चीज को हम प्राप्त कर सकते हैं| कवि अपने समाज से संबोधित करते हुए कहता हैं कि विश्व में नई क्रांति लाने वाले तुम सभी मेरे भाइयों तुम एक नायक हो एक महाकाव्य हो| जिस तरह से सागर और महासागर में फर्क होता हैं उसी तरह तुम सब में अलग-अलग गुण हैं इस गुणों का सही तरिके से इस्तेमाल करों और अपने समाज को एक महासागर की तरह विशाल महाकाय बनाओं वह अन्धविश्वास का विरोध करते हुए यह कहते हैं कि यह धरती भगवान ने निर्माण की हैं ऐसा कहा जाता हैं | जब इस वैश्वीकरण ने पूरे पृथ्वी को तहस-नहस कर दिया हैं| और कोई नैसर्गिक आपदा आती हैं तो क्यों तुम्हारा भगवान नहीं आता इस आपदा का हल करने| आप दिन भर खेत में मेहनत करते हो और मिर्च के साथ भाकरी खाते हो और भटजी छावं में बैठकर भगवान की ही जेब काटकर वह घी के साथ रोटी खाता हैं| तब भी भगवान कुछ भी नहीं करता क्यों?  जिस धर्म को तुम्हारा सही धर्म क्या है? यही पत्ता नहीं है तो वह धर्म ग्रन्थ क्या काम के| जिस धर्म ग्रथों ने तुम्हारा भविष्य भरे धूप में खड़ा किया हैं वह धर्म ग्रन्थ क्या काम के| जिस धर्म ग्रंथों ने तुम्हारें दिमाग में गंधगी भरी हैं उस महाकाव्य को क्यों लेकर घूम रहें हो| तुम्हे क्रोध नहीं आता? अगर आपको अपना भविष्य बनाना हैं तो अतीत में जाकर अज्ञानता का खेल ख़त्म करना होगा और हमारा भविष्य हमें खुद निर्माण करना होगा| हमारे मंजिल के द्वार बहुत ही नजदीक हैं वह इंतजार कर रहें हैं हमारें भविष्य के निर्माण का| लेखक ‘तुम्ही ठरावा’ (आप तै करों) इस कविता में कहते हैं कि अगर जिंदगी में कुछ हासिल करना हो तो बड़े-बड़े संकटों का सामना भी करना चाहिए मैं तो अब आग को भी नही डरने वाला हूँ क्योंकि जितना कठिन संघर्ष या मेहनत करोगे तभी तुम यशश्वी हो जाओगे|  आप तै करों कि आपकों किस रास्तें से जाना हैं एक रास्ता विजय की ओर जाता हैं ओर दूसरा रास्ता पराजय की ओर जाता हैं| मैं तो जा रहा हूँ सक्सेस के रस्ते से...| आखिर कब तक तुम दूसरों की गुलामी सहते रहोगें इस गुलामी से बाहर आ जाओं और इस देश के लिए कुछ नया रास्ता दिखाओं| आप ही तै करों की इस धरती पर क्या बोना हैं ओर उस बोये हुए बिज से क्या उगाना हैं यह तुम्हारें हाथ में हैं| आज भुखमरी और कुपोषण के कारण हजारों बच्चों की जान दाव पर हैं तब भी तुम्हारें समझ में नहीं आ रहा है कि यह किसने किया और क्यों किया| आदिकाल से लेकर आजतक आपको बताया जा रहा हैं कि आज जिस रस्ते से जा रहे हैं वह गलत रास्ता हैं लेकिन आप सुनने के लिए तैयार ही नहीं अब बहुत हो चूका हैं बताना अब तुम खुद तै करों की तुम्हें क्या करना हैं| कब तक ऐसे जीते रहोगें मनुष्य होकर जन्म लिया हैं तो मनुष्य बनकर ही जिओं इस गुलामी को ठोकर मारो| लेखक आगे कहते हैं कि-

राज्यघटनेच्या युगातही

तुम्हाला गुलाम समजतो

तो गावगाडा मला मान्य नाही

तुमचं मानां झुकवत जगण

मी जगणं मनात नाही

सांगा गड्यांनो!

का पुन्हा पुन्हा विझतो

तुमच्याच चुलीतला जाळ?

का तुमचेच होते शोषण

सकाळ संध्याकाळ?

आपलेच मरण आपल्याच खांद्यावर घेऊन

किती काळ चालणार तुम्ही स्मशानांच्या इशाऱ्यावर?

विषमतेच्या पोशिंद्या व्यवस्थेला ठोकरून

मी निघालोय समतेच्या वाटेनी स्वातंत्र्याच्या गावी

तुम्ही तुमच्या जन्माची माफी मागून

येऊ शकता माझ्यासोबत

काय करायचे ते तुम्ही ठरावा! |”2

आज हर समाज को न्याय न्याय मिलने के लिए हमारें देश का संविधान हैं| लेकिन वर्तमान समय का दौर देखा जाये तो इसके विरुद्ध हो रहा हैं| हर व्यक्ति का स्वातंत्र, समता और बंधुता के अधिकारों पर अघात हो रहा हैं| लेखक कहता हैं कि इस देश में सभी मनुष्य को न्याय दिलाने के लिए ‘भारतीय संविधान’ है| इसके बावजूद भी हर व्यक्ति को न्याय नहीं मिल रहा हैं| कोई भी अत्याचारी अत्याचार करते समय यह ध्यान नही दे रहा हैं कि हम संविधान के विरोधी कृत्य कर रहें हैं| तुम कब तक गुलामी का हथियार बनकर जिओगे अब तो बाहर निकालों मेरे भाइयों इस जाल से| तुम्हारा ही क्यों हो रहा हैं शोषण सुबह से लेकर शाम तक अब समय आ गया हैं इस विषमते के खिलाफ आवाज उठाने का और अपने हक्क और अधिकार मांगने का | इसी देश में आज बहुसंख्य लोग अज्ञानता के कारण पत्थरों को पुंजते हैं जिस हाथ में ताकद हैं उसपर विश्वास नहीं करते हैं लेकिन उसी हाथ में बंधे हुए लाल दोर पर जरुर विश्वास करते हैं| इस देश में ऐसे अज्ञानता के पाठ पढ़ायें जा रहें हैं उस देश का क्या भविष्य हैं? मैं कभी इस अंधविश्वास के जाल में नही फ़सने वाला हूँ आप को क्या करना हैं यह अप ही तै करों..| ऐसे जादू-टोना पर अगर विश्वास करोगे तो इस सृष्टि का तो अपमान होने ही वाला है लेकिन देश का विकास भी कभी नही हो सकता|  जिस हक्क के रास्ते से तुम चल रहें हो वह रास्ता अगर समाप्त हो गया तो क्या हुआ| तुम चलते रहो जिस पैरों से तुम चल रहें हो वह पैर अपने आप नया रास्ता तैयार करेंगे| इस विश्व में जितने भी रस्ते बने हुए हैं उन सभी रास्तों को पैरों ने ही तो दिया हैं जन्म| इसलिए पैरों को एक नई दिशा से चलने के लिए कहो| जो रास्ता शोषण के कत्त्लाखाने की तरफ जा रहा हैं उसी रास्ते की तरफ ही तुम्हारी नजर हैं इस नजर को बदलों| बंधुनों इस विनाश कारी दुनिया में अपना कोई भी नही हैं| यहाँ कि सामंतवादी व्यवस्था अपने खिलाफ हैं| अब कितनी देर तक सोते रहोगें अब उठ खड़े हो जाओं और अपनी अस्मिता को बचाने के लिए तैयार रहों  मैंने तो सभी कारागृह के द्वार तोड़ डाले हैं तुम भी इस जेल से बाहर आ जाओं ओ देखो बिरसा तुम्हारी राह देख रहा हैं मैं तो चला अपने बिरसा के ‘उलगुलान’ के रास्ते से आप को क्या करना हैं यह आप ही तै करों...| कवि ‘मैलाचा दगड होऊन’ इस कविता में यह संदेश देते हैं कि मैं मैला पत्थर बनाकर आप को योग्य दिशा दिखाने के लिए खड़ा हूँ और आप मेरी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं है| इस संसार में मैंने बहुत लोग देखे हैं कुछ लोग अपने आप को स्थापित करने के लिए दूसरों का शोषण करते हैं तो कुछ लोग समाज स्थापित करने के लिए गरीब लाचार लोगों का शोषण करते हैं आखिर क्यों? इस प्रश्न का जबाब उन लोगे के पास हैं जो शोषण करते हैं| कवि कविता के माध्यम से यह बताते हैं कि-

ही पृथ्वी आपली नाही

हे आकाश आपले नाही

म्हणून काय झाले रे?

आपले पंख तर आपले आहेत ना?

या सूर्यमंडळात

अनंत आकाश दडलेले आहेत

चला! मुर्दाड मने झटका

अन घ्या उंच भरारी

आपण आपल्या हक्काचे आकाश शोधू या! |”3

यह विश्व अपना नही, यह आकाश अपना नही तो क्या हुआ खुद के पंख तो हैं| यही हमें इस धरती पर सही रास्ते पर उड़ने शिखायेंगे|

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