सोमवार, 18 मार्च 2024

अस्मितामूलक मिडिया के रूप में ‘गोंडवाना दर्शन’ पत्रिका का स्थान Asmitamulak Midea ke rup mein Gondwana Darshan Patrika Ka sthan

 

अस्मितामूलक मिडिया के रूप में ‘गोंडवाना दर्शन’ पत्रिका का स्थान

-डॉ.दिलीप गिऱ्हे 

गोंडवाना दर्शन पत्रिका का अस्मितामूलक मिडिया की दृष्टी से अध्ययन करने से पहले हमें यह जानना जरुरी हैं कि ‘अस्मिता’ का शब्दगत अर्थ क्या हैं । अस्मिता को समाजशास्त्रीय दृष्टीकोण से देखा जाए तो कई अर्थ दिखाई देते हैं जैसे कि- पहचान, अस्तित्व, आइडेंटीटी । यह अस्मिता हर व्यक्ति के पहचान और वजूद को जानकर उनके हर वर्ग एवं समुदाय को स्पष्ट करती है। आज हर समाज की अस्मिता पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से एक मिडिया बनकर सामने आने लगी है। अस्मितामूलक विमर्श में आज दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, स्त्री विमर्श आदि विमर्श महत्वपूर्ण हैं यह सभी विमर्श अपने अपने समाज की भूमिका निभा रहे हैं । गोंडवाना दर्शन यह पत्रिका पिछले 31 वर्ष से दलित, आदिवासी और स्त्री विमर्श की अस्मिता को उजागर करने का काम कर रही हैं । इस पत्रिका के शीर्षक के निचे ही लिखा हैं कि-‘सामाजिक, वैचारिक जागृति के लिए प्रतिबद्ध मासिक पत्रिका’ इसका मतलब हैं कि समाज में वैचारिक जनजागृति का काम गोंडवाना दर्शन यह पत्रिका कर रही है । वर्तमान समय में इस पत्रिका के संपादक ‘सुन्हेर सिंह ताराम’ जी हैऔर इस पत्रिका में अपनी अस्मिता को दर्ज करने के लिए मिडिया के रूप में ईमेल  Godwana.darshan@gmail.com इस प्रकार है । मैंने अध्ययन की दृष्टी सीमित करने के लिए नवंबर-दिसंबर -2016 का अंक लिया है इस पत्रिका का स्थापना वर्ष 1985 है तब से लेकर आज तक यह पत्रिका समाज में एक वैचारिकी का काम कर रही है इस अंक की पृष्ठ संख्या 44 हैं (मुख पृष्ठ और मलपृष्ठ को पकड़कर) इस अंक के मुख्य शीर्षक हैं ‘संविधान दिवस अमर रहे’ और ‘बलिदान दिवस अमर रहे’ क्योंकि भारतीय संविधान दिवस को ध्यान में रखकर और गोंडवाना भूमि के बलिदान वीरों को याद करते हुए यह अंक निकाला गया । पृष्ठ संख्या 1 पर अनुक्रम के रूप में पत्रिका का ग्राफ दिखाया गया है इस अंक के मुख्य लेख के शीर्षकों को भी दिखाया गया हैं । इसके साथ ही संपादक, संपादक मंडल, प्रबंध एवं प्रचार संपादक, ब्यूरो प्रमुख के नाम, पृष्ठ सज्जा, पत्रका हेतु शुल्क, उत्तर प्रदेश समाचार विज्ञापन प्रभारी सदस्य का नाम आदि विषयों को स्पष्ट किया हैं ।

गोंडवाना दर्शन पत्रिका के अस्मितामूलक मिडिया के शीर्षक:

मुख पृष्ठ :

1)      संविधान दिवस अमर रहे

2)      बलिदान दिवस अमर रहे

मुखपृष्ठ का मलपृष्ठ:

1 बामसेफ 33 वीं राष्ट्रीय अधिवेशन

225 से 28 दिसंबर 2016 पूर्णत: आवासीय कार्यक्रम

मलपृष्ठ:

1)  ए. के सिंह द्वारा शहीद वीर नारायण सिंह के बलिदान दिवस के अवसर पर कटघोरा कार्यक्रम में पहुंचे समस्त मूलनिवासियों का ‘हार्दिक अभिन्दन’

मलपृष्ठ का मलपृष्ठ:

1)  केन्द्रीय गोंड महासभा, धमधागढ़ के द्वारा शहीद वीरनारायण सिंह बलिदान दिवस को ‘शत शत जोहार’

इस प्रकार से इस पत्रिका में अस्मिता की पहचान जानने के लिए यह अंक में कौन-कौनसे लेख किस-किस विषय पर आधारित हैं यह जानना बहुत जरुरी हैं तभी तो हम किसी भी समाज की पहचान उनका अस्तित्व को स्पष्ट कर सकते हैं । मैंने इस पत्रिका को अस्मिता का विषय बनाकर इसलिए चुना क्योंकि इस पत्रिका में आदिवासी विमर्श के साथ-साथ और कई सारे विमर्श पर उनकी अस्मिता को बातचीत होती हैं । इस प्रत्रिका के मुख पृष्ठ से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि भारत का संविधान विश्व का सबसे महान है इसलिए इस पत्रिका में संविधान दिवस के अवसर पर याने की 26 नवंबर को भारतीय संविधान को पारित होकर 65 साल पूरे हुए हैं और आज भारतीय संविधान की दशा और दिशा किस तरह दिखाई दे रही हैं यह समझने में बहुत ही कठिन काम हैं

इसके साथ-साथ गोंडवाना के धरती के महान क्रांतिकारक वीर योद्धाओं ने भी इस देश को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपने बलिदान दिए हैं उनको भी इस अवसर पर याद करना यह एक अस्मिता का ही प्रतीक हैं ।

डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने मूलनिवासी बहुजन समाज को एक नारा दिया था कि- शिक्षित बनों..संघठित रहों..और संघर्ष करों..आज हमारा समाज धीरे-धीरे शिक्षित तो बन रहा हैं लेकिन संघठित बनाने में असफल दिखाई दे रहा हैं । जब तब दलित, आदिवासी और बहुजन समाज संघठित नहीं होगा तब तक हमारी अस्मिता को धोका निर्माण होता ही रहेगा । डॉ. बाबासाहब के विचारों को पुनःस्थापित करने के लिए विश्व स्थर पर ‘बामसेफ’ संघठन काम कर रहा हैं । ‘गोंडवाना दर्शन’ यह पत्रिका समाज में चेतना एवं जागृति निर्माण करने वाली वैचारिक पत्रिका है । मुख पृष्ठ के मल पृष्ठ से यह साबित होता है कि जिन समाज सुधारकों ने समाज में नई चेतना लाने के लिए अपने बलिदान दिए और अपनी अस्मिता को जिन्दा रखा उसमे प्रमुख रूप से संत कबीर, संत रविदास, छत्रपति शिवाजी महाराज, माँ जिजाऊ, सावित्रीबाई फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज, पेरियार रामास्वामी, बिरसा मुंडा, राणी झलकारी बाई ऐसे कई हमारे भारतीय भूमि पर समाजसुधारक एवं देशभक्त होकर चले गए लेकिन मनुवादी व्यवस्था ने उनकी अस्मिता को दबाकर रखकर मिटाने की कोशिश की लेकिन आज मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी कलम की धार से नया इतिहास लिख रहा जिसकी वजह से यह क्रांतिकारी वीरों के चेहरे हमारे सामने दिखाई दे रहे हैं

पृष्ठ संख्या 2 से 8 तक का विवरण देखा जाए तो अस्मिता मूलक मीडिया के रूप में लक्ष्मी नारायण कुम्भकार ‘सचेत’ अतिथि संपादक ने ‘संवैधानिंक हक़ प्राप्त करने के लिए संकलित हों’ यह लेख लिखकर सभी भारतीय व्यक्तियों मुलभुत हक्कों की अस्मिता दिखाई हैं । उन्होंने अपने लेख में लिखा हैं कि-“ प्रस्तावना की शुरुआत ही ‘हम भारत के लोग’ वाक्य से शुरू करके डॉ. बाबासाहब ने भारतीय संविधान को किसी व्यक्ति विशेष की उदघोषणा न बनाकर भारत के सभी आम नागरिकों की ओर से समवेत उदघोषणा कराकर एक स्वर में अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्यित करवा कर प्रजातान्त्रिक समाजवाद को साकार कर दिया हैं ” और पृष्ठ संख्या 4 में इन्ही के द्वारा लिखित ‘सोनाखान की धरती से उपजा हिरा शदीद वीरनारायण सिंह’ यह लेख के माध्यम से छतीसगढ़ के महानायक शहीद वीर नारायण सिंह का इतिहास बताया हैं जो कि आदिवासी समुदाय की अस्मिता का मूलाधार हैं । पृष्ठ संख्या 8 और 9 के बिच एक रंगीन पेज लगाया गया जिसपर नेताम परिवार और ओटी परिवार ने अमर शहीद वीरनारायण सिंह को कोटि-कोटि प्रणाम करकर उनको याद किया । दिनांक 8 दिसंबर से 10 दिसंबर 2016 तक ‘आदिवासी समाज का विराट मेला’ का आयोजन किया गया जिसमे शहीद वीरनारायण सिंह की श्रधांजलि सभा का आयोजन दिखाया गया । जिसमे एक तीर एक कमान, सर्व आदिवासी एक सामान जैसे नारें देने वाली एक पत्रिका बनाई है जिसमे 8 दिसंबर 2016  को आदिवासी समाज के देवी-देवताओं की पूजा का और 9 दिसंबर 2016 को आदिवासी लोककला महोत्सव का आयोजन दिखाया गया जिसके आयोजक थे सभी आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ । पृष्ठ संख्या 10 पर गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पी-एच.डी छात्र संतोष कुमार बंजारे ने ‘आखिर संविधान का खुला उलंघन क्यों?’ इस विषय पर लेख लिखा । इसके पश्चात मोदी सरकार के नोट बंदी के कारण सूचना क्रांति की मिडिया ‘गोंडवाना दर्शन’ इस पत्रिका पर भी गहरा पड़ा दूसरी ओर जहाँ यातायात के साधन बिल्कुल भी नहीं हैं वहाँ तो सामान्य लोगों बहुत ही परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं इस परेशानी के कारण ‘गोंडवाना दर्शन’ इस पत्रिका का नवंबर-दिसंबर के अंक सयुक्त रूप में प्रकाशित किये गए हैं यह अस्मिता मूलक मिडिया का एक संकट ही है ।  

पृष्ठ संख्या 13 पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में सिदो-कान्हू-मुर्मू दलित एवं जनजाति अध्ययन केंद्र में कार्यरत पी-एच.डी शोध छात्र नरेश कुमार साहू ने ‘संविधान दिवस के बहाने एक विमर्श’ इस शीर्षक से लेख लिखा जिसमे नरेश कुमार साहू ने भारतीय संविधान निर्माण के 65 वर्ष के बीतने के बाद आख़िरकार मोदी सरकार संविधान दिवस को राजपत्र में शामिल कर व्यापक तौर से मनाने की पहल की जो की काफी सराहनीय पहल हैं इस विषय को लेकर अपनी महत्वपूर्ण बात रखी । इसके साथ-साथ भारतीय संविधान की प्रमुख खासियत, मूल अधिकोरों के अलावा, अतिशूद्रों में शामिल जातियां, धर्मनिरपेक्ष, गणराज्य इन जैसे मुद्दों को अपने विषय का केंद्र बनाया । पृष्ठ संख्या 15 से 20 तक सुधा भारद्वाज ने ‘अपनी जमीन, जंगल और जीवन को कैसे बचाए?’ इस  शीर्षक से लेख लिखा जिहोंने आदिवसी समाज की अस्मिता बचाने के लिए कौन-कौन से बातों को ध्यान में रखना जरुरी हैं यह बताया हैं पृष्ठ संख्या 20 और 21 के बिच दो रंगीन पन्ने पर शहीद नारायणसिंह को सेवता परिवार, शोरी परिवार, नेताम परिवार, उईके, सिंह, गुम्मडी परिवार ने शत शत नमन करते हुए अभिवादन किया ‘नेताम परिवार’ ने अभिवादन करते हुए यह कहा कि-

दिखा गए पथ,

सिखा गए आजादी,

ये शहीद वीर नारायण की सिख है,

जीवन मौत के बाद होती है,

ये मूलनिवासियों की रित है...

पृष्ठ संख्या 21 पर लक्ष्मी नारायण कुम्भकार संचेत द्वारा रचित ‘भारतीय संविधान’ लिखित कविता हैं जिसमे भारतीय संविधान द्वारा दिए गए हक्क और अधिकोरों पर विचार व्यक्त किये गए हैं जिसमे से कुछ महत्वपूर्ण पक्तियां इस प्रकार हैं-

            लोकतंत्र में बहुजन हित है

            राजतंत्र में था अपमान

            भीमराव के संविधान के आगे

            फीका है मनु तेरा विधान ।।

रमेश ठाकुर ने पृष्ठ संख्या 22 पर ‘बंग समुदाय का आरक्षण हो भंग मूल निवासियों ने छेडी निर्णायक जंग’ इस शीर्षक से लेख लिखा उन्होंने यह बताया की , बस्तर छ.ग में आदिवासी भाई-बहनों का हक्क शासन व पूँजीवाद की जुगलबंदी के चलते दशकों से छिना जा रहा हैं यह बात किसी से छिपी नहीं हैं । वहाँ आदिवासियों को संवैधानिक रूप से विशेष अधिकार दिए जाने के बावजूद भी आज तक उनकों गैर क़ानूनी तरीके से सरकार द्वारा ही बरबाद करने का अलग-अलग तरीका अपनाया जा रहा है । हालात आज ये हैं कि बस्तर जहाँ कभी स्वर्ग सी शांति पोर-पोर में बसती थी आज वहाँ की रग-रग में अशांति और कलह की ज्वालामुखी फूटने लगी है । इन सभी बातों से उन्होंने बस्तर के जनजातियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियां दिखाई हैं जो की बहुत ही दयनीय और सोचनीय हैं । पृष्ठ संख्या 25 पर सपन ने ‘बस्तर की हकीकत’ इस शीर्षक से लेख लिखा हैं जिसमे बस्तर के आदिवासियों की दुःख भरी व्यथा के विविध चित्र दिखाई देते हैं । पृष्ठ संख्या 29 पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के एम.ए. जनसंचार के छात्र राकेश कुमार दर्रो ने ‘विनाश की हरी झण्डी मेरे गाँव से गुजर कर शुरू हुई’ इस शीर्षक से अपने गाँव की परिस्थितियों का पर्दा फाश किया । उन्होंने लिखा है कि एक तरफ प्राकृतिक अम्पदाओं को पाने की होड़ में सैकड़ों पेड़ों की बलि और दूसरी तरफ दल्लीराजहरा से रावघाट रेल लाइन परियोजना में वन अधिकार अधिनियम कानून का खुला उलंघन कर आदिवासियों के साथ खिलवाड़ । आखिर कैसे मिल जाता है पर्यावरण मंजूरी उद्योगपतियों और सरकार को कानून कायदे का जरा सा भी खौफ नही इस लिए तो बंदूक के नोक पर होता हैं फर्जी ग्राम सभा और छिना जाता हैं आदिवासियों कि जल, जंगल और जमीन । पृष्ठ संख्या 33 पर तुहिन जी ने ‘पहली शैक्षणिक प्रताड़ना से चुनी कोटाल की आत्महत्या’ और पृष्ठ संख्या 35 पर तृप्त चौबे ने ‘150000 वर्ष पुराने गुफा चित्र मिले’ इस नाम से लेख लिखा । पृष्ठ संख्या 36 पर ‘सतनाम आंदोलन एवं सामाजिक पुनर्जागरण के प्रवर्तक सतखोजी संत शिरोमणि गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर पर’ इस तरह के लेख एवं विचार साहित्य की अस्मिता को एक नया मोड़ दिलाने का काम कर रहे हैं जो कि दलित, आदिवासी और बहुजन समाज में दिखाई देती हैं। अत: गोंडवाना दर्शन इस पत्रिका के अंत मी शहीद नारायण सिंह के बलिदान के अवसर पर कटघोर कार्यक्रम मी पहुचे समस्त मूलनिवासियों का हार्दिक अभिनन्दन ए.के सिंह द्वारा किया गया ।

निष्कर्ष:

     आज अस्मितामूलक मिडिया की पहचान इसलिए हैं क्योंकि हमारे समाज में स्वतंत्रता, समता और बंधुता की आज भी कमी दिखाई देती हैं इसी बात पर हेमलता महिश्वर का कहना हैं कि-“ एक-दुसरे पर शासन करने की प्रवृति असमानता को जन्म देती हैं और विखंडन गुलामी के जन्म का कारक होता हैं । असमानता ही व कारक है जिसकी वजह से दूरियां बढ़ती है । असमानताओं के कारण हैं- धर्म, जाति, कौम, लिंग, और आर्थिक आधार! हम अपने इतिहास में हिन्दू-मुस्लिमों के बिच हुए दंगे, हिन्दू-सिख दंगे, सवर्ण जातियों द्वारा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों पर हुए अत्त्याचार, हिन्दू और इसाई के बीच बढ़ते वैमनस्य महिलाओं पर होने वाले अत्याचार.. आदि के साथ क्या हम एक समृद्ध राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं ” समाज को समता मूलक बनाने के लिए उस समाज की अपनी अस्मिता को बचाए रखना बहुत ही जरुरी हैं तभी हम स्वतंत्रता, समता और बंधुता इस मूल्य को पुनः स्थापित कर सकते हैं जो की ‘गोंडवाना दर्शन’ यह पत्रिका पिछले 31 सालों से एक सामाजिक मिडिया के रूप में कर रही हैं । पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया हैं क्योंकि समाज में लोक की बातें विश्व के कोने कोने तब पहुचाने का काम पत्र-पत्रिकाएं कर रहीं हैं । इसलिए हर समाज की अस्मिता स्थापित करने के लिए पत्रिका का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण हैं चाहे वह पत्रिका किसी भी स्तर की हो

संदर्भ:

आधार ग्रन्थ (मासिक पत्रिका):

1१ संपादक-सुन्हेर सिंह ताराम, गोंडवन दर्शन ( मासिक पत्रिका), प्रकाशित, छत्तीसगढ़, अंक -11 व 12, नवंबर-दिसंबर-2016

सहायक ग्रन्थ:

1१ डॉ. मधु लोमेश, समकालीन मिडिया-परिदृश्य और अस्मितामूलक विमर्श, हेमाद्री प्रकाशन, दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2013

2२ कालूराम परिहार, मिडिया के सामाजिक सरोकार, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा.लि. नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-2008 

    

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