कवि के साथ वेदना और अनुभूति का संयोग
-डॉ. दिलीप गिऱ्हे
संवेदना है तो वेदना है
वेदना है तो अनुभूति है
अनुभूति है तो वास्तविकता है
जिसको वेदना नहीं होती
उसको अनुभूति नहीं होती
वेदना और अनुभूति का संयोग
एक दूसरे पर निर्भर है।
अनुभूति के लिए वेदना आवश्यक है
ताकि वेदना अनुभूति के जरिये बता सकें।
कवि के साथ यह संयोग पल-पल आता है
इसीलिए वह अपनी वेदना
अनुभूति के जरिए व्यक्त करता है।
जब उस कवि की वेदना कोई नहीं जानता
तब वह उस वेदना को वह काव्य का रूप देता।
तब वह वेदना विचार-विमर्श का रूप धारण करती है।
तब पता चलता है कि
कोई संवेदनशील कवि सुखी तो
कोई संवेदनशील कवि दुखी है।
इस सुख-दुख का संगम अक्सर कवि करता है
चाहे वह स्वयं के विचारों में हो या लेखन में हो
क्योंकि वेदना, संवेदना और अनुभूति का
संयोग हमेशा कवि के जीवन में रहता है
यह संयोग ही उसकी दुखद और दुःखद कहानियों का
सच्चा चित्रण करता है।
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