बुधवार, 27 मार्च 2024

'हो' आदिवासी समुदाय के लोकसंगीत की वैशिष्ट्य (Ho Aadiwasi Samuday ke Loksangit Ki Vaishishtya)

 'हो' आदिवासी समुदाय के लोकसंगीत की वैशिष्ट्य 



'हो' आदिवासी समुदाय प्रमुखतः झारखंड में पाया जाता है|आग्नेय परिवार के इस समुदाय की 'हो' भाषा वैशिष्ट्यपूर्ण है| इस भाषा में संस्कार गीत के अलावा ऋतु गीत भी मौजूत है| लोकसंगीत उसे कहा जाता है, जो लोकपर्व पर आधारित होते हैं और लोगों में काफी प्रचलित होते हैं| इस समुदाय के लोकसंगीत में प्रमुखतः से बा जिन्हें सरहुल कहा जाता है, मागे, हेरो और जोमनामा आदि है-

बा पर्व:

इस पर्व को सरहुल पर्व भी कहा जाता है| सभी झारखंड के आदिवासी समुदायों का यह एक प्रमुख पर्व है| इस पर्व को 'बाहा', 'जंकोर, 'खद्दी ' या 'सरहुल' इन जैसे नामों से जाना जाता है| बसंत ऋतु इस पर्व को मनाने की परंपरा काफी पुरानी है| इस पर्व की प्रमुख विशेषता सामूहिक नृत्य गीत है| महिला-पुरुष समूह में इस नृत्य को हर्षोल्लास के साथ प्रस्तुत करते हैं| इस नृत्य को सफल प्रस्तुत करने के लिए दमा, रुतु, बनम, करताल इत्यादि संगीतोपयोगी साधनों का प्रयोग किया जाता है|  

हेरो: गीत:

यह प्रमुख रूप से कृषि से संबंधित है| खरीफ बसलें लगाने के बाद जब प्राथमिक कृषि काम समाप्त होते हैं तब इस ख़ुशी में हेरो नृत्य का आयोजन किया जाता है| यह पर्व बारिश के दिनों में मनाया जाता है| 

जोमनामा: 

नई फसलें होने के बाद जब यह फसलें घर में लाई जाती है| तब जोमनामा त्योहार का आयोजन होता है| परिणामतः यह पर्व नया अनाज खाना शुरुआत करने के लिए मनाया जाता है| जिसे 'नवाखानी' भी कहा जाता है|

मागे:

लगातार दिन दिनों तक मनाये जाने वाला यह पर्व है| इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि मानव जाति की प्राकृतिक आपदा से संरक्षण तथा जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए| इस पर्व में सभी युवक-युवतियां भाग लेती है और इसे सफल बनाते हैं| साथ ही इसमें प्रयुक्त होने वासे सभी वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हैं| इस प्रकार से हो आदिवासी समुदाय के लोकसंगीत के वैशिष्ट्य माने जाते हैं| इन सभी वैशिष्ट्य से भरा हो आदिवासी समुदाय है|