झारखंड के बिरजिया आदिवासी समुदाय का फगुआ पर्व
-Dr. Dilip Girhe
झारखंड के आदिवासी समूह के अपने खास पर्व है| बिरजिया आदिवासी समूह का फगुआ पर्व काफी प्रचलित है| यह पर्व फागुन महीने के अंत में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है| पूर्णिमा के एक दिन पहले शगुन के लिए पुरुष शिकार करने व मछली पकड़ने जाते हैं| शिकार से लोटते समय कुंआरे लड़के छोटे सेमल को जड़ से काट देते हैं| बल्कि उसे जमीन पर नहीं गिरने देते हैं| उसमें से दो सेमल को होलिकादहन के स्थान पर गाड़ देते हैं| साथ ही वहां पर फूस, झाड़ी, टहनियाँ को इक्कठा कर देते हैं| एक अविवाहित लड़का होलिका को पांच चक्कर लगाकर आग देता है| इस समय राम-लक्ष्मण-सीता से संबंधित गीतों को गाया जाता है| दूसरे दिन अपने-अपने घरों में लाल मुर्गे या शिशु शुकर की बलि दी जाती है| इसके बाद खान-पान-रंग-धूल के साथ खेलते हैं| इस दिन सबके घरों में पुआ रोटी बनाई जाती है|
संदर्भ:
-रणेंद्र सं.-झारखंड एन्साइक्लोपीडिया खंड-4
1 टिप्पणी:
Thank you sir , I am proud to know about our Feast "फगुवा" I do belong to बिरजिया ट्राइब।let you that we have many more customs and culture for all the celebrations. These days we celebrate सरहुल पर्व more than फागुवा. People have forgotten the rituals of performing होलिका दहन as our ancestors used to do. The mantras they used have been forgotten. We do not have written mantras. Everything was oral. These days बिरजिया ग्रुप is being educated and coming out of the forest. I am one of them. I am from लातेहार जिला. I was so happy to find a bit about my tribe. Continue to consider us as human beings. Iam grateful to you sir .
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