कोरवा आदिवासी समूह की महत्वपूर्ण जानकारी
-Dr. Dilip Girhe
भारत में आदिम जनजातीय समूह में कोरवा आदिवासी समूह का स्थान महत्वपूर्ण है| यह आदिवासी समूह प्रमुखतः से झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में पाया जाता है| इसके साथ-साथ छतीसगढ़, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल में भी यह समूह पाए जाते हैं| उत्तरप्रदेश की बात करें तो प्रमुखतः मिर्जापुर जिले में यह आदिवासी समूह निवास करते हैं| इनका नाम 'कोदेरा' नामक वृक्ष के नाम से ही कोरवा पड़ा है| जिस क्षेत्र में यह समूह निवास करते हैं वहां पर कोदेरा नामक वृक्ष अधिक मात्र में है|इनकी पहचान 'मिटटी को कोड़ने वाले' के नाम से है|
जिस प्रकार से मुंडा ,संताल, भूमिज, बिरहोर एवं असुर आदिवासी समूह प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉईड है| इसी प्रकार यह समूह भी प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉईड माना जाता है| इनकी भाषा कोरवा है| यह भाषा आग्नेय परिवार की है| हालांकि वर्तमान में इस प्रजाति के लोग हिंदी भाषा में भी सम्पर्क साधते हैं| पलामू के क्षेत्र में अन्य समूह की तरह यह भोजपुरी भाषा भी बोलते है| अधिवास के आधारपर इनके दो प्रमुख प्रकार हैं एक पहाड़िया कोरवा दूसरा डिहारिया कोरवा| 12 वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में कोरवा आदिवासियों का शासक था| चिड़िया, घास, सुइयां, खप्पो, कोकट एवं बुचंग इनके गोत्र माने जाते हैं|
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