महाराष्ट्र के आदिवासी कवियों का पहला काव्य संग्रह 'मोहोळ' व 'मेटा पुंगार': एक दृष्टिक्षेप
मोहोळ काव्य संग्रह की संवेदना:
सन् १९५० से लेकर आज तक अनेक आदिवासी काव्य संग्रह प्रकाशित हुए है|सन् १९८२ में दूसरे आदिवासी साहित्य सम्मेलन में महाराष्ट्र के आदिवासी कवियों का प्रथम काव्य संग्रह 'मोहोळ ' प्रकाशित हुआ| इस काव्य संग्रह में लगभग ३३ कविताएँ प्रकाशित हुई| आदिवासियों का इतिहास, धर्म, सांस्कृतिक पहचान, वेदना, विद्रोह, प्रतिरोध जैसे अनेक मुद्दों को इन काव्य संग्रह ने उठाया| आदिवासी कवि भुजंग मेश्राम और प्रभु राजगडकर ने इस काव्य संग्रह का संपादन किया है| भुजंग मेश्राम की कविताओं से आदिवासी धर्मांतरण, भूतदयावाद का विरोध, कम्युनिष्टों का विरोध किया है| अमित गिड़कर की कविताओं में अनोलोगास के चहरे की पहचान दिखती है| वामन शेडमाके की कविता मुक्ति का मार्ग बताती है| उनका कहना है कि यहाँ पर मांगने से कुछ नहीं मिलता| एस.टी मडावी की कविता प्रतिरोध के गीत गाने का संदेश देती है| ल.सु. राजगडकर की कविताएँ डर का विरोध करती है|बाबाराव मडावी की कविताएँ परिवर्तन एवं अस्मिता का शोध लेती है|विजयकुमार मडावी की 'व्यथा', व्यकंटेश आत्राम की 'इमेय गौतम', पी.डी आत्राम की 'एकात्मता का स्वप्न' इन सभी कवितओं ने आदिवासी के दुःख दर्द को अभिव्यक्त किया है| नरेंद्र पोयम की 'विजोड', प्रभु राजगकर की 'बॉमबे सेंद्र्ल के प्लेटफार्म से' जैसे कविताओं में अनुभूति की व्यथा को चित्रित किया है|उषा किरण आत्राम की 'काट्या झुडपातुन दरी गुहेतून' कविता ने आदिवासी विश्व की कहानी अदा की है|
'मेटा पुंगार' (पहाड़ी फूल) काव्य की संवेदना:
सन् १९६२ में मराठी आदिवासी कवि सुखदेवबाबू उईके का यह काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ| इस काव्य रचना की कविताएँ आदिवासियों का मूलभूत विकास तथा सामाजिक परिवर्तन की विविधताओं पर बात करती है| आदिवासी समाज को जागृत करने के लिए विविध मार्ग यह कविता बताती है|इनकी कविताएँ आधुनिकता के विकास पर प्रहार करती है| इस कविता का अंतरग आदिवासियों की दुखहीन कहानी को व्यक्त करता है| क्रांतिवीर नारायण सिंह उईके के क्रांतिकारी मार्ग पर चलने का निर्धार यह कविताएँ कराती है|
संदर्भ
आदिवासी साहित्य दिशा अणि दर्शन-डॉ विनायक तुमराम
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर लेख हैं
Very nice
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