साहित्य में जीवंतता-Dr.Dilip Girheसाहित्य में जीवंतता तब आती हैजब साहित्यकार प्रत्यक्ष अनुभूति को रेखांकित करता हैजब उसे गहराई से लिखा जाता हैजब उसका गहराई से चिंतन किया जाता हैजब उस पर बढ़-चढ़कर चर्चा होती हैजब उसके गुण-दोषों को बताया जाता हैजब उसको वास्तविक जीवन में लागू किया जाता हैजब वह मनोवैज्ञानिक स्वरूप धारण करता हैजब विद्यार्थी-शिक्षक उसे पढ़ता हैजब उसमें समाज का हित समाहित होता हैजब उसमें में सुख-दुख का दर्दनाक चित्रण मिलता हैजब उसकी आलोचना होती हैजब उसका विरोध-प्रतिरोध होता हैजब उसे पढ़कर दूसरा कोई लिखने की तमना करता हैतब यह जीवंतता सजीव वस्तु की तरह लगने लगती है।
4 टिप्पणियां:
✌️✌️✌️
Sahi hai
Very nice sirji 🌹🌹🌹🌹🌹🙏
Bahut badhiya sir ji
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