संताल आदिवासी समूह की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था खास है। इस व्यवस्था को हम निम्नलिखित बातों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं-
सामाजिक व्यवस्था:
भारत के कोई संताली क्षेत्र की बात करे तो हर एक गाँव में प्राचीन काल से परंपरागत सामाजिक व्यवस्था चलती आ रही है। इस व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक गाँव का एक प्रधान मुखिया होता है उसे 'मांझी हाड़ाम' कहा जाता है। इस प्रधान की सहायता करने के लिए और एक व्यक्ति होता है। उसे 'पारानिक' कहते हैं। पारानिक की सहायता करने के लिए 'गोडेत' होता है। 'गोडेत' ही हाड़ाम और पारानिक के आदेश नुसार सभी उनकी बातों को गाँव वालों तक पहुँचाता है। इस व्यवस्था की परंपरा 'जोग मांझी' एवं 'नाईकी' भी होता है। जोग मांझी समस्त गाँव के युवक-युवतीओं के यौन संबंधों पर ध्यान देता हैं। तथा उनके दम्पतियों पर नजर रखता है। नाईकी का प्रमुख काम गाँव में हो रही पूजा-पाठ तथा पर्व-त्योहार में धार्मिक अनुष्ठान आयोजित करना होता है।
संतालों की सामाजिक व्यवस्था में 'पारगाना' यह पद सबसे ऊपर का माना जाता है। यह पद कई गांवों के लिए बनाया जाता है। मांझी, पारानिक, पारगाना एवं गोड़ते यह व्यवस्था वंशगत चली आ रही होती है। इस व्यवस्था की क्रमशः बात करे तो टोला, माँझी, मापाझी, पारगाना, देश पारगाना एवं लोबिर में नायके द्वारा संपन्न होती है। लोबीर इस व्यवस्था का अंतिम पद है। यह व्यवस्था पितृसत्तात्मक है। अपनी संपती के अधिकार पुरुषों को होते हैं। महिलाओं को पिता की सम्पति पर अधिकार नहीं होता है।
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बढ़िया जानकारी
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