सौरिया पहाड़िया आदिवासी समुदाय की कृषिव्यवस्था
भारत के समग्र आदिवासी समुदायों का जीवन को हम जब देखते हैं तो उनका जीवन लगभग वनों पर आधारित मिलता है|सौरिटी आदिवासी समुदाय पहाड़ी प्रदेशों में रहता है| इसीलिए उनका नाम 'सौरिया पहाड़िया' नाम से प्रचलित है|यह समुदाय पहाड़ी प्रदेश में अपना जीवनयापन करता है यहाँ पर पानी बहुत ही कम मात्रा में मिलता है| इनकी सम्पूर्ण खेती मौसमी बारिश पर निर्भर है| इनकी कृषि व्यवस्था के प्रकार हैं कुर्थी टांड, घरबारी, कुरवा धानबारी और पकलुबारी है-
कुर्थी टांड:
इस क्षेत्र या भूमि का नाम टांड है|यहाँ पर प्रमुख रूप से बरबट्टी की खेती की जाती है|इस फसल की सिंचाई मौसमी बारिश पर ही निर्भर है|
घरबारी:
अपने घरों के पीछे जो जमीन रहती है उसे घरबारी खेती के रूप में जाता जाता है|यह खेती घरों के पीछे होने के कारण फसल की देखभाल करने में आसानी होती है| इस खेती में मुख्य रूप से मकई, घंगरा जिन्हें बरबट्टी कहा जाता एवं बाजरा फसल ली जाती है|
कुरवा:
यह खेती मैदानी प्रदेशों में की जाता है|जहाँ पर वृक्षों की संख्या कम रहा है|लगभग दो-तीन वर्षों तक लगातार खेती करके फिर तीन-चार वर्ष के लिए खाली छोड़ा जाता है जिसके कारण उस खेती में फ़लस अछी आ सकें|वर्तमान में जंगलों की कटाई भी तेजी से हो रही है|इसका का प्रभाव मौसमी बारिश पर हुआ और खेती में फ़लस कम होने लगी है|हालांकि १९५२ के वन कानून ने कुछ हद तक वन कटाई पर पाबंदी लगाई|फिर ज्यादातर गैर क़ानूनी तरीके से वृक्षों की कटाई जारी है|
धानबारी:
दो पहाड़ी प्रदेश के बीच दो खेती करने योग्य भूमि को धानबारी कहा जाता है|जहाँ पर सौरिया आदिवासी खेती करते हैं|यह खेती ज्यादातर सौरिया आदिवासी संताल आदिवासी को बटाई के रूप में देते हैं|
पकलुबारी:
इस खेती की विशेषता यह है कि इसमें आसन और अर्जुन के वृक्षों की संख्या अधिक होती है| इन वृक्षों पर 'तसर' के कीड़ों को पाला जाता है|कोकून बिक्री सौरिया आदिवासियों का पैसा कमाने का साधन है| गोड्डा जिले में 'प्रदान' संस्था कोकून का उत्पादन में रूचि रखती है| जिसके कारण सौरिया आदिवासियों का जीवनयापन आर्थिक रूप से कुछ हद तक सही हो गया है|
इस प्रकार से झारखंड के सौरिया आदिवासियों की कृषि व्यवस्था को हम उनके खेती प्रकार से व्यवस्थित रूप से जान सकते हैं|
लेखन-Dr. Dilip Girhe
1 टिप्पणी:
Bahut badhiya sir
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