रविवार, 31 मार्च 2024

वाहरु सोनवणे कृत 'गोधड' काव्य संकलन मूल संवेदना || VAHARU SONVANE KRUT GODHAD KAVYA SANKAL MUL SANVEDANA || MARATHI ADIWASI KAVITA



वाहरु सोनवणे कृत 'गोधड'  काव्य संकलन मूल संवेदना 

                                                -Dr.Dilip Girhe 

'इंसानियत के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी' ऐसे दृढ़ निश्चय से आदिवासी अस्मिता की खोज करने वाले एक सुजान नागरिक, दूर एवं व्यापक सामाजिक दृष्टि की दखल लेने वाला आदिवासी कवि वाहरु दादा सोनवणे है|इनका गोधड काव्य संग्रह काफ़ी प्रसिद्ध है| हिंदी में पहाड़ हिलाने लगा नाम से इस काव्य संग्रह का अनुवाद हुआ है|मराठी आदिवासी काव्य परंपरा के प्रथम पीढ़ी के वाहरु दादा माने जाते हैं|सन् १९८७ में गोंधड काव्य संकलन प्रकाशित हुआ|जो समाज 'गोधडी के अंदर ही अंदर सोया' उस समाज को अपने दुःख दर्द एवं संवेदना जाननी जरूरी है| यह काव्य संकलन इन सभी बातों याद दिलाता है|एक जागरूक कवि होकर आदिवासी जीवन का सूक्ष्म अभ्यास करने वाला कवि वाहरु दादा सोनवणे है| 

आदिवासी समाज की जीवनशैली को सामान्य तरीके से प्रस्तुत करने वाले कवि है|इसी वजह उनकी कविताओं की पहचान प्रत्यक्ष अनुभूति देती है|गोधड काव्य संग्रह की कविताओं ने उनको आदिवासी जगत में ख्यात प्राप्ति की| मराठी और भीली दोनों भाषओं पर दादा की पकड़ है| उनकी काव्यानुभूति इन दोनों भाषाओं व्यक्त होती है| वाहरु दादा ने आदिवासी साहित्य में एक वैचारिक पृष्टभूमि को स्थापित किया है| इसीलिए उनको 'सामान्य जनता का कवि' भी कह सकते है|नई आदिवासी पीढ़ी ने उनके साहित्य एवं जीवन का अनुकरण करने की जरूरत है| उन्होंने साहित्य लिखते समय यह नहीं सोचा की साहित्यिक, कवि, आलोचक मेरी क्या आलोचना करेंगे उन्होंने निर्भीक होकर साहित्य लिखा|'हिरवाळ जंगल', गोधड, कोर्ट, हाका जखमांच्या, रोजगार हमीच्या रंगात, स्टेज, चळवळ म्हणजे जैसी अनेक कविताओं के माध्यम से वाहरु दादा की प्रतिभा स्पष्ट दिखाई देती है|यह कविता आदिवासियों के विविध प्रश्न एव समस्याओं पर विचार व्यक्त करती है|'स्टेज' जैसे कविता तो स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करती है| 

संदर्भ:

आदिवासी साहित्य दिशा अणि दर्शन-डॉ विनायक तुमराम 

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