आदिवासी कविता क्या है?
-Dr.Dilip Girhe
आदिवासी कविता का परिचय देखने से पूर्व ‘कविता क्या है’, यह देखना बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदी साहित्य के लेखकों, कवियों, आलोचकों, पाश्चात्त्य चिंतकों द्वारा कविता की अनेक परिभाषाएँ बताई गई हैं। रामचंद्र शुक्ल ‘कविता क्या है’ निबंध में कविता की आवश्यकता को बताते हुए लिखते हैं कि “मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में, किसी-न-किसी रूप में पायी जाती है। चाहे इतिहास न हो, विज्ञान न हो, दर्शन न हो, पर कविता का प्रचार अवश्य रहेगा। बात यह है कि मनुष्य अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मंडल बाँधता चला आ रहा है जिसके भीतर बँध-बँध वह शेष सृष्टि के साथ अपने ह्रदय का संबंध भूला-सा रहता है। इस परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मनुष्यता खोने का डर बराबर रहता है। इसी की अंतः प्रकृति में मनुष्यता को समय-समय पर जागते रहने के लिए कविता मनुष्य जाति के साथ चली आ रही है और चली चलेगी। जानवरों को इसकी जरूरत नहीं।”[1] महादेवी वर्मा अपनी काव्य की परिभाषा में ‘उदासी’, ‘व्यथा’ और ‘पीड़ा’ को भौतिक स्वरूप मानकर कविता की कसौटी बताती हैं कि “संस्मरण मेरी कविता की कसौटी हो सकते हैं।”[2] मुक्तिबोध के बाद प्रगतिशील हिंदी कविता की पड़ताल करने वाले कवि केदारनाथ अग्रवाल कविता की परिभाषा देते हैं कि “कविता जीवन की लालसा को व्यक्त करती है।”[3] किसी कथन से अगर ‘सृजनात्मकता’ का तत्व गायब हो जाता है तो वह कथन कविता नहीं हो सकता है। इसी संदर्भ में डॉ. जगदीश गुप्त कविता की परिभाषा देते हैं कि “कविता सहज आंतरिक अनुशासन से युक्त अनुभूतिजन्य सघन लयात्मक शब्दार्थ है, जिसमें सह-अनुभूति उत्पन्न करने की यथेष्ट क्षमता निहित रहती है।”[4] ओवेन ने अपनी पुस्तक ‘पोएटिक डिक्शन’ में कविता की परिभाषा लिखी हैं कि “जब शब्दों का चयन और नियोजन इस प्रकार से किया जाए कि वह सौंदर्य-तत्त्वात्मक कल्पना को जागृत करे या जागृत करने की चेष्टा करे तो इस चयन के परिणाम को काव्यात्मक शब्द-समूह (पोएटिक डिक्शन) कहा जाएगा।”[5] पाश्चात्त्य चिंतक अरस्तू काव्य के प्रयोजन की व्याख्या बताते हैं कि “कला का विशिष्ट उद्देश्य आनंद है। यह अनैतिक नहीं हो सकता।”[6] अर्थात् कविता कवि की भावनाओं और जीवन-संघर्षों की अनुभूति है। आदिवासी कविता की परिभाषा को किस तरह से विश्लेषित किया गया है, यहाँ पर यह भी देखना जरूरी है। आदिवासी कवयित्री निर्मला पुतुल इस के संदर्भ में कहती हैं कि “यह कविता नहीं मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है।”[7] वे आगे कहती हैं कि-
“मैं
नहीं जानती कविता की परिभाषा
छंद,
लय, तुक का कोई ज्ञान नहीं मुझे
और
न ही शब्दों और भाषाओं में है मरी पकड़”[8]
आदिवासी
कविताएँ आदिवासी जीवन-संघर्ष से जुड़ी होने के कारण इन कविताओं में आदिवासियों का
आक्रोश, शोषण-अन्याय-अत्याचार के खिलाफ़ प्रतिरोध, आदिवासी महिलाओं का दर्द,
आदिवासी संस्कृति तथा आदिवासी भाषाओं की मूल संवेदनाएँ हैं। कविता में शब्दों का
चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। शब्द चयन के माध्यम से ही कविता की मूल संवेदनाएँ
समझी जा सकती हैं। शब्दों से कविता की गतिमानता, तीव्रता एवं प्रभाव का अंदाजा
लगाया जाता है। पाश्चात्य विद्वान बोल्टन कविता में शब्द चयन की महत्ता को स्पष्ट
करते हुए बताते हैं कि “poetry is mode of words, and obviously the
choice of words is important in poetry; indeed in sense it is the whole art of
writing poetry.”[9] महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले
के वरिष्ठ आदिवासी कवि वाहरु सोनवणे जब अपने समाज में जाकर खुद की लिखी हुई कविता
सुनाते हैं तो उनका समाज उन्हें शाबाशी देते हुए जवाब देता है कि “सही है भाई !
बिल्कुल सही है ! सच है। ये कविता नहीं ये तो हमारा जीवन है, जिसे तुमने जस का तस
उतार कर रख दिया।”[10] हरिराम मीणा कविता की परिभाषा
लिखते हैं कि-“जब हमारी अभिव्यक्ति अत्यंत भावुक होकर निकलती है तो वह कविता बनती
है।”[11]
[1] शुक्ल,
आचार्य रामचंद्र. (2002). चिंतामणि. इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.
108
[2] राजेंद्र
कुमार. (2016). कविता का समय-असमय. इलाहाबाद : साहित्य भंडार प्रकाशन. पृष्ठ
संख्या. 42
[3] पुंडरीक,
नरेंद्र. (2011). कविता की बात केदारनाथ अग्रवाल. इलाहाबाद : अनामिका प्रकाशन.
पृष्ठ संख्या. 88
[4] सिंह,
नामवर. (1968). कविता के नए प्रतिमान. नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन. पृष्ठ संख्या.
17
[5] चतुर्वेदी,
रामस्वरूप. (1989). काव्य भाषा पर तीन निबंध. इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन. पृष्ठ
संख्या. 64
[6]
शंकर,
डॉ. विवेक. (2016). भारतीय एवं पाश्चात्त्य काव्यशास्त्र. जयपुर : राजस्थान हिंदी
ग्रंथ अकादमी. पृष्ठ संख्या. 68
[7] तुमराम,
डॉ. विनायक .(2017). निर्मला पुतुल और वाहरु सोनवणे की आदिवासी कविताएँ तुलनात्मक
अध्ययन. नागपुर : उलगुलानसूर्य प्रकाशन. पृष्ठ संख्या. 45
[8]
वहीं.
पृष्ठ संख्या. 46
[9]
वहीं.
पृष्ठ संख्या. 67
[10]
वहीं.
पृष्ठ संख्या. 31-32
[11] गुप्ता,
रमणिका. (सं.). (2012). आदिवासी अस्मिता की पड़ताल करते साक्षात्कार. नई दिल्ली :
स्वराज प्रकाशन. पृष्ठ. संख्या. 68
1 टिप्पणी:
Aadiwasi kavita kya hain , aur kavitayo ka arth sabhi kaviyone apne shabdo main hame bahut achhese bataya hain. Aadiwasi logo pe Jo kavitaye ki, unaka visleshan bhi saral aur mahatvapurn shabdo main bataya gaya hain.
Keep it up sir ji.
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