आदिवासी को 'आदिवासी', 'अनुसूचित जनजाति', 'मूलनिवासी', 'पिछड़ा वर्ग', 'गिरिजन', क्या कहें जानिए कुछ महत्वपूर्ण संदर्भ
-Dr.Dilip Girhe
भारत में सन् 1931 में मूलनिवासियों की जनगणना करने
के लिए एक सूची तैयार की गई थी, जिसमें ‘मूलनिवासी’ (Primitive) शब्द की जगह पर
‘मूलजाति’(Indigenous) शब्द का प्रयोग किया था। इसके बाद सन् 1935 के कानून द्वारा
आदिवासियों को ‘पिछड़ा वर्ग’ में रखा गया। सन् 1941 की जनगणना में बहुत ही कम चुने
हुए आदिवासी जनजातीय समूहों को ‘जनजाति’ (ट्राइब्स) नाम से संबोधित किया था। 5
सितंबर 1949 को डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा का आयोजन किया
गया। उस समय आदिवासी शब्द के लिए कई नामों के सुझाव आ रहे थे।
ठक्कर बाप्पा ने
आदिवासियों के लिए ‘गिरिजन’ नाम का सुझाव दिया था, क्योंकि वे गांधी जी के शिष्य
थे। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को ‘गिरिजन’ (पहाड़ों में रहने वाले) कहा था।
दूसरी ओर आदिवासी होकर आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले डॉ. जयपाल सिंह मुंडा ने
‘वनवासी’ की जगह पर ‘आदिवासी’ नाम का सुझाव दिया था। जब संविधान सभा में ‘आदिवासी’
शब्द के लिए वाद-विवाद हो रहे थे तब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने ‘आदिवासी’ शब्द के
स्थान पर ‘अनुसूचित जनजाति’ शब्द उचित समझकर उसके प्रमाण देते हुए कहा कि जब कानून
तैयार होगा तब ‘आदिवासी’ जैसे साधारण शब्द के लिए बहुत वाद-विवाद हो सकते हैं।
कानून के शब्दों में आदिवासी कौन? यह पहचान बताने वाला शब्द ‘अनुसूचित जनजाति’ ही
सही है। तब से लेकर आज तक भारतीय संविधान में आदिवासियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ (Scheduled Tribe) की संज्ञा दी गई है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-366 (भाग 24 व 25) में ‘अनुसूचित जाति’ (Scheduled
Caste) एवं ‘अनुसूचित जनजाति’ (Scheduled Tribe) की परिभाषाएँ दी गई
हैं। अनुच्छेद-341 के अनुसार “राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के
संबंध में और जहाँ वह राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक
अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या
जनजातियों के भागों या उनमें से यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस
संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में
अनुसूचित जातियाँ समझी जाएगी।”[1]
अनुच्छेद 342 के अनुसार- “राष्ट्रपति,
किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में और जहाँ वह राज्य है वहाँ उसके
राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजाति
समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें से यूथों को
विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य
या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा।”[2] संविधान में अनुच्छेद 341 व
342 अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि राष्ट्रपति
उस राज्य के राज्यपाल से परमर्श करके अनुसूचित जाति या जनजातियों के लिए विशिष्ट
निर्धारण कर सकते हैं।
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छा लेख भाई, काफी कुछ जानकारी मिली।।
ऐसे ही कार्य करते रहे आप।।
जय भीम लाल सलाम।।
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