भारतीय संविधान में आदिवासियों के प्रावधान
-Dr. Dilip Girhe
भारत की आज़ादी के 70 वर्ष पूरे होने के बाद आज भी आदिवासियों के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी हैं। संविधान में आदिवासियों के लिए विविध प्रावधान किए हुए हैं। वे सभी प्रावधान वास्तविक रूप में लागू न होने के कारण आज आदिवासी विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इससे उन्हें संघर्ष झेलना पड़ रहा है। इस लोकतांत्रिक देश में कई राजनीतिक दलों ने आदिवासी विकास की परिभाषा अपने-अपने मन से गढ़ी है और वह कागजों पर ही हैं। आदिवासी विकास के लिए बड़े-बड़े आयोग बने, विविध ग्रामविकास योजनाएँ बनीं, विविध कानून बने इन सब प्रावधानों के बाद भी आदिवासियों का विकास क्यों नहीं हुआ? विकास की बात तो दूर ही है, उनके सामने धर्मान्तरण, नक्सलवाद जैसी बड़ी-बड़ी समस्याओं से उनकी पहचान नष्ट हो रही है। वैश्विक दौर में आदिवासी विकास की स्थिति के बारे में रमणिका गुप्ता कहती हैं कि “भारत में आदिवासी जनसमूहों का विस्थापन व पलायन तो ऐसे सदियों पहले से ही जारी है परंतु इधर विकास के नाम पर बढ़ती गई नीतियों के कारण वे केवल अपनी जमीनों, जंगलों, संसाधनों व गाँवों से ही बेदखल नहीं हुए बल्कि उनके मूल्यों, नैतिक अवधारणाओं, जीवन शैलियों, भाषाओं एवं संस्कृति से भी उनके विस्थापन की प्रक्रिया तेज़ हो गई।” अगर आदिवासी विकास प्रक्रिया में आदिवासी का विकास होने के बदले उनको बेदखल, विस्थापित, उनके अस्तित्व को नष्ट करना, उनकी भाषा को उजाड़ना, उनकी संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों को नष्ट करना विकास है तो ये विकास आदिवासियों के किसी भी काम का नहीं है। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए जो प्रावधान हैं वे प्रावधान इस प्रकार हैं-
अनुच्छेद 366 (25) :
“ऐसी जनजातियाँ या जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342 के अधीन अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाता है।”
अनुच्छेद 342 :
“राष्ट्रपति किसी भी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में और जहाँ वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करके या इसके पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति, उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा।”
अनुच्छेद 15 :
“राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।”
अनुच्छेद 46 :
“राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और जनजातियों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा।”
अनुच्छेद 330 :
“लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण।”
अनुच्छेद 332 :
“राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण।”
अनुच्छेद 335 :
“संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियाँ करने में, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का, प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा।”
अनुच्छेद 164 :
“बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा। साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या अन्य कार्य का भी भारसाधक मंत्री होगा।”
अनुच्छेद 243 (घ) :
“प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या के अनुपात उस पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा, जो उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आवंटित किए जा सकेंगे।”
अनुच्छेद 243 (न) :
“प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या के अनुपात उस नगरपालिका में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा, जो उस नगरपालिका क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी नगरपालिका में भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आवंटित किए जा सकेंगे।”
अनुच्छेद 338 :
“अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग होगा, जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के नाम से ज्ञान होगा।”
अनुच्छेद 339 :
“राष्ट्रपति, राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में प्रतिवेदन देने के लिए आयोग की नियुक्ति आदेश द्वारा, किसी भी समय कर सकेगा और इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर करेगा।”
अनुच्छेद 244 (1) :
“पांचवी अनुसूची के उपबंध असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों से भिन्न किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के अनुरूप अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे।”
अनुच्छेद 244 (2) :
“छठी अनुसूची के उपबंध असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के लिए लागू होंगे।”
इस प्रकार से भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए अनेक प्रकार के प्रावधान दिए गए हैं।
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संदर्भ
डॉ बी. आर. अंबेडकर-भारतीय संविधान
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