मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

प्रकृति-सृजन आदिवासी लोककथा: चाँद और सूरज -Prakuruti Srujan Aadiwasi Lokakatha: Chand Aur Suraj


 

प्रकृति-सृजन आदिवासी लोककथा: चाँद और सूरज 

"चाँद और सूरज की गहरी मित्रता थी। दोनों एक-दूसरे के घर आते-जाते, खाते-पीते थे। एक बार सूरज चाँद के घर गया। चाँद के बच्चे घर पर नहीं थे। गर्मी का दिन वा सो सारे बच्चे नहाने के लिए नदी पर चले गए थे। सूरज दिन भर चाँद के यहाँ रहा। उसने कॉहड़े की सब्जी पकाई, जो सूरज को बहुत स्वादिष्ट लगी। उसने चाँद से पूछा- कौन सी सब्जी है ये?"

चाँद ने मज़ाक में कहा- "मैंने आज अपने बच्चों को पकाया है।" "तभी इतना अच्छा स्वाद है।" सूरज बोला।

दोनों खाए-पिए। फिर सूरज अपने घर लौट गया। लौटते वक़्त सूरज ने चाँद को निमंत्रण दिया कि शाम को वह उसके यहाँ आ जाए।

सूरज अपने घर पहुँचा। आराम किया। फिर अपने बच्चों को काटकर तरकारी बना ली और चाँद का इंतज़ार करने लगा। सूरज का एक बेटा लँगड़ा था, वह पहाड़ी की ओर घूमने गया था, इस कारण वह मारे जाने से बच गया था। वह शाम को घर लौट आया।

इधर चाँद शाम तक सूरज के घर नहीं पहुंचा। जब अँधेरा होने लगा तो आसमान में तारे निकल आए। तारों को देख सूरज समझ गया कि चाँद ने उससे झूठ कहा है। यह क्रोधित हो उठा और चाँद को मारने के लिए दौड़ा। चाँद पहले से तैयार बैठा था। सूरज को अपनी ओर आते देखकर वह भागा। तब से चाँद सूरज के डर से भाग ही रहा है। इसलिए सूरज जब पूरब में होता है तब चाँद पश्चिम में होता है, जब सूरज पश्चिम में होता है तो चाँद पूरब में दिखाई देता है। 

शाम के समय जब सूरज पश्चिम में होता है तब उसके साथ उसका लंगड़ा बेटा दिखाई देता है। उसे बुध ग्रह कहते हैं।"

निष्कर्ष:

लोककथा यह लोगों में प्रचलित होती है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बुजुर्ग लोगों द्वारा बताई जाती है। भारतीय आदिवासी समाज हजारों वर्षों से जंगलों-पहाडीयों एवं पर्वतीय प्रदेशों में जीवनयापन करता आया है। वह प्रकृति के हर एक उपादानों से परिचित है। प्रकृति में समाहित अनेक पशु-पक्षी, जीव-जंतु, नदी-नाले, पेड़-पौधें, चाँद-तारे-सूरज जैसे अनेक घटकों की हलचलें आदिवासी समुदाय जानता है। उपरोक्त लोककथा भी प्रकृति के चाँद और सूरज से जुडी हुई है। जिसे रोज केरकेट्टा ने स्वयं प्रस्तुत किया है। जिसका प्रकाशन का कार्य किताबघर प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा किया गया है। इस लोककथा में चाँद और सूरज के सृजन के बारे अपने विचार अभिव्यक्त किए है।  

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संदर्भ:

गुप्ता, रमणिका-आदिवासी सृजन मिथक एवं अन्य लोककथाएँ. पृष्ठ संख्या-६४