बुधवार, 17 अप्रैल 2024

आंध आदिवासी समुदाय के संत भगवान मुंगसाजी माऊली का जीवन पट -andh aadiwasi samuday ke sant mungsaji mauli ka jivan pat

 



भगवान मुंगसाजी ने १९ शताब्दी के उत्तरार्ध और 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अपना सामाजिक योगदान दिया है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन आंध समुदाय और मानव जाति के उद्धार लिए खर्च किया है। भगवान मुंगसाजी महाराज का जन्म 5 सितम्बर 1863 को यवतमाल जिले के दारवा तहसील, धामनगाँव देव गाँव मे हुआ उनके  पिता विक्रम और माता गमई थे। उनके दादा-दादी का नाम भोपाजी और दादी था। मुंगसाजी माऊली का परिवार उनके दादा के समय से ही एक धनी परिवार के रूप में जाना जाता था। उन्होंने हमेशा समाज के जरूरतमंद एवं गरीब लोगों की मदद की। उनके परिवार का प्रमुख कार्य अन्नदान करना था। इस कार्य निरंतर उनके पिता-माता ने जारी रखा। बाद में भगवान मुंगसाजी ने इस परम्परा को आगे चलाया। उन्होंने गरीबों की मदद करने की अपने परिवार की परंपरा को जारी रखा। कुछ समय बीतने के बाद उनके ही परिवार में गरीबी आ गई। ऐसे में गांव के लोगों ने उनको काफी परेशान किया। परंपरागत रूप से मुंगसाजी के परिवार में एक पाटिल का पद था। गाँव के कुछ लोगों ने यह पद उनको देने से इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में भी उन्होंने अपना सामाजिक कार्य जारी रखा।

मुंगसाजी माऊली ने अपने स्वामित्व वाले किले में 12 वर्षों तक एक ही स्थान पर बैठकर लगाकर तपस्या की। उन्होंने यह काम 20 साल की उम्र शुरू किया और 32 साल की उम्र में रुकवा दिया। 12 साल की इस तपस्या के दौरान उनकी जांघ से खून बहने लगा। उन्होंने धामनगाँव देव में अपनी तपस्या को पूरा किया। उसके बाद उनके गाँव के लोग सन् 1935 के दौरान भी परेशान किया करते थे। वे उन्हें पागलों की तरह देखते थे। मुंगसाजी अपनी तपस्या के बाद धामनंगाव में गरीबों को अन्नदानविवाह की व्यवस्था करना, कर्ज से मुक्ति दिलानाविवाह की व्यवस्था करना जैसे कार्य करते रहे। मुंगसाजी 1940-1945 में मौलिस से मिलने धामनगांव गए। इसके अलावा सन् 1941 से 1947 तक उन्होंने बड़ौदा के यशवंतराव घाडगे के यहाँ अपनी सेवा दे दी।

सन् 1947 को माऊली ने यशवंत घाडगे महाराज के साथ शेगांव, मुर्तिजापुर, अकोला, खामगांव, नाशिक और मुंबादेवी की यात्राएँ की। वे सन् 1947-1958 तक 11 वर्षों तक मुंबई में रहे। वे एक बार मुंबई गए और फिर कभी धामनगांव वापस नहीं आये। उनसे मिलने गए उनके रिश्तेदारों को भी कभी उन्हें मिलने नहीं दिया गया। माऊली के एक रिश्तेदार ने मुंबई के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से भी मुलाकात कीलेकिन मुंगसाजी माऊली फिर भी नहीं मिले इसके विपरीत मुंगसाजी महाराज के सभी रिश्तेदारों और उनके भक्तों के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज किया गया था। जब माऊली को मुंबई ले जाया गया तब रात के 12 बज रहे थे। उनको वहाँ ले जाने के पीछे का रहस्य आज तक सामने नहीं आ सका है। अतः मुंगसाजी माऊली का दिनांक 26 फरवरी  को 1958 को सुबह 09.30 बजे महानिर्वाण प्राप्त हुआ। संत मुंगसाजी महाराज ने संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया। 

उन्होंने अपनी वाणी और कर्म से अज्ञानअंधविश्वासकुरीतियोंकायरतादुष्ट प्रवृत्तिजाति-पांतिऊंच-नीचअमीर-गरीब जैसी तमाम बुराइयों पर प्रहार कर मनुष्य को मानव कल्याण और सार्थक जीवन का मार्ग दिखाया। देश में राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चल रहा था तो दूसरी ओर मुंगसाजी महाराज मानव जाति के तमाम सामाजिक बंधनों में जकड़े हुए बहुजन समाज को जागरूक करने का महान कार्य कर रहे थे। सामाजिकधार्मिकआर्थिकसांस्कृतिक और राजनीतिक। हालाँकि उनका यह कार्य हजारों वर्षों से विशेष अधिकारों को खतरे में डाल रहा थाउन्होंने मुंगसाजी महाराज को परेशान करने के लिए उनके अपने रिश्तेदारों का इस्तेमाल किया। इसके अलावायदि आप संत मुंगसाजी महाराज के जीवनकार्य का पता लगाएंतो आप देख सकते हैं कि उन्होंने बचपन से लेकर अपनी मृत्यु तक लगातार उन्हें परेशान करने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया। आम जनता की पीड़ा देखकर और व्यथित होकर बहुजनों के लिए कुछ अच्छा कार्य माऊली ने किया। उन्हें अपने दादा-दादी और माता-पिता से आम लोगों के सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने की परंपरा थी। संत तुकाराम महाराज के अनुसार संत मुंगसाजी महाराज को 'शुद्ध बीजापोती फल रसाल गोमतीके प्रचारक के रूप में आम लोगों की पीड़ा के लिए अपने शरीर का त्याग करने का उपहार मिला। 

मुंगसाजी महाराज को जीवन भर इस स्थापित समाज का सामना करना पड़ा क्योंकि अज्ञानीगरीबदुखीअसहाय समाज के लिए किया गया कार्य किसी के अधिकारों और हितों का उल्लंघन था। शुरुआत के दौर में उन्हें क्रूरमूर्ख और दुष्टों ने सताया था। इससे उन्हें सांसारिक जीवन जीने की एक उम्मीद मिल गई। समाज के कुछ दुष्ट लोगों ने देशभक्तिसत्ता और धन हड़पने के स्वार्थी उद्देश्य के लिए महाराजा को कई तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। महाराज के खेतों में जानबूझकर जानवरों को छोड़ दिया जाता था और फसलें नष्ट कर दी जाती थीं। छोटी-छोटी बातों पर उनसे बहस और झगड़ा करना। साथ ही हल्का जहर देकर उन्हें मारने की भी कोशिश की गई थी। इससे मुंगसाजी महाराज के लिए साधारण जीवन जीना भी कठिन हो गया। अंततः मुंगसाजी महाराज अपने वीरान किले धामनगांव में रहने लगेउन्होंने यहाँ पर 12 साल तक चिंतनमननऔर तपस्या में बिताए। 12 वर्षों तक समाज के सुख-दुख का चिंतन करके उन्होंने अपने विचारों में एक महान शक्ति विकसित कर ली थी। उनके विचारों का प्रभाव धीरे धीरे समाज में बढ़ने लगा। उनका सामाजिक प्रचार का महान कार्य धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। बहुजन समाज धीर-धीरे जागृत हो रहा था और उनके विचारों का अनुयायी बन रहा था। उनके विचार लाखों की संख्या में बहुजन विचार सुनने के लिए एकत्रित होने लगे। स्वतंत्रता-पूर्व काल में भी महाराज के असामान्य और अद्वितीय कार्यों के कारण उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।आप निम्नलिखित शब्दों और उपदेशों से देख सकते हैं कि उन्होंने अपने कार्यों और उपदेशों के कारण बहुजनों द्वारा खोए गए आत्मविश्वास और पहचान को बहाल किया।

-Dr. Dilip Girhe

संदर्भ:

भिसे, तुकाराम-आंध जमातीचा प्राचीन वांशिक व राजकीय इतिहास

 



2 टिप्‍पणियां:

Sukanya D. Girhe ने कहा…

Jay mungsaji maharaj🙏🏻

Nikeah pralhadrao kurkute ने कहा…

भगवान मुंगसाजी माऊली