शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

महाराष्ट्र का मावची आदिवासी समुदाय-Maharashtra ka mavachi aadiwasi samudaya

महाराष्ट्र का मावची आदिवासी समुदाय

-Dr.Dilip Girhe 

महाराष्ट्र राज्य के धुले में मावची आदिवासी समुदाय की आबादी अधिक मिलती है। वे प्रमुखतः  धुले (नंदुरबार) जिले के अक्कलकुवा, नंदुरबार, साकरी, तलोदा और नवापुर तहसील क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनके विशिष्ट कबीले होते हैं। उन कबीलों में ही वे अपना जीवनयापन करते हैं। महाराष्ट्र में 'गामित, गामाता और गावित' आदिवासी समुदायों को ‘अनुसूचित जनजाति’ घोषित किया गया है। ‘गामित’, ‘गामता’ या ‘गावित’ समानार्थक शब्द है। इसीलिए उन्हें ‘गावित’ भी कहा जाता है। इस आदिवासी समुदाय की ‘मावची’, ‘वसावे’, ‘पाडावी’ और ‘वलवी’ शाखाएँ हैं। इन सभी शाखाओं की सामाजिक स्थिति समान है। प्रत्येक शाखा की अतिरिक्त उप-शाखाएँ भी होती हैं। उसमें कवर, राऊत, देसाई, मावची, बरकड़, उदास, पावली, ढोंगली, चौधरी आदि नाम आते हैं।

गामित आदिवासी समुदाय की एक विशिष्ट बोली है, जिसे ‘मावची बोली’ कहा जाता है। इस बोली भाषा गुजराती भाषा का प्रभाव दिखाई देता है। इस बोली में कई प्रकार के ‘मराठी’ शब्द पाए जाते हैं। यह समुदाय आपसी संपर्क करने के लिए ‘भीली’ व ‘मावची’ बोली में बोलते हैं। मावची आदिवासी समुदाय की दाई गर्भवती महिला का प्रसव कराती है। दाई पांच दिनों तक मां और बच्चे की देखभाल करती है। इसके बदले में उसे कुछ पैसे और कुछ अनाज मिलता है। पांचवें दिन  माँ और बच्चा ठीक होने के बाद 'पचविचा' अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। गावित जनजाति में आमतौर पर वयस्क विवाह होते हैं। एक ही गोत्र में अंतर्विवाह वर्जित है। इस समुदाय का गाँव में एक पारिवारिक संगठन होता है। गामित जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है। उनमें से कुछ दिहाड़ी मजदूर के रूप में भी काम करते हैं। चूंकि 60 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास अपनी ज़मीन है, इसलिए उनका मुख्य व्यवसाय स्थानीय कृषि है।

गांव में आदिवासी लोग कई देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। मोती के प्रत्येक चरण के बाद पहले एक अनुष्ठान किया जाता है और उसके बाद ही काम शुरू होता है। ‘पांडरदेवी’ अनाज की देवी होती हैं। ‘रामदेव पांडर’ देवी के सम्मान में फागुन माह में मनाया जाने वाला एक सामुदायिक त्योहार है। यह समुदाय ये प्रकृति पूजक है, ये ‘काकबलिया’, ‘हिरलिया’, ‘पांडर’, ‘देवली’, ‘जोगन’, ‘गोवल’, ‘वाघदेव’ की पूजा करते हैं। पूजा करते समय वे बत्तख, मुर्गियां या बकरों की बलि दी जाती है। मृत व्यक्ति को आमतौर पर दफनाया जाता है। लेकिन कुछ मामलों में जलाया भी जाता है। इनका नृत्य गान नृत्य ‘ढोल’ और ‘झांझ’ की धुन पर होते हैं। महिलाएं अलग-अलग नृत्य करती हैं। इनके मुख्य भोजन में मांस ज्वार की रोटी, दाल, चटनी आदि शामिल होता है। ‘मावची’ समुदाय के हर गांव और टोले में एक अलग पंचायत होती है। यह एक सामाजिक संगठन है जिसमें कारभारी, परधान और पंच शामिल हैं। भण्डारी को 'दीया' कहा जाता है। इससे पारिवारिक एवं सामाजिक कलह दूर होती है। यदि अलग-अलग कबीले के लोग विवादों में शामिल हों, तो उन कबीलों के पंच एक साथ आते हैं और विवाद का निपटारा करते हैं।

संदर्भ :

डॉ गोविन्द गारे-महाराष्ट्रातील आदिवासी जमाती 

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