शबर आदिवासी समूह उत्पत्ति की लोककथा
"सबसे पहले चारों ओर समुद्र ही समुद्र था, कहीं भी मिट्टी नहीं थी। पानी ही पानी था चारों ओर। आकाश में देवी-देवता के साथ एक जोड़ा फेगा पक्षी था। आकाश के देवी-देवता दिघवा पक्षी (जो पक्षियों का राजा कहलाता है) ने फेगा पक्षी को मिट्टी खोजने के लिए भेजा। वह पक्षी खोजते-खोजते आकाश से झूलते सोने के धागे से
बँधे हुए केंचुआ राजा से मिला। "तुम्हारा क्या नाम है?" फेगा पक्षी ने उससे पूछा।
"मेरा नाम केंचुआ राजा है।" केंचुआ राजा ने उत्तर दिया।
"क्या खाते हो?" फेगा पक्षी ने पूछा।
"मैं मिट्टी खाता हूँ।" केंचुआ राजा बोला।
"मिट्टी खाने से क्या फायदा होगा?" फेगा पक्षी ने पुनः सवाल किया।
"मैं मिट्टी खाकर समुद्र को मिट्टी से ढक दूँगा और धरती बनाऊँगा।" केंचुआ राजा ने अपनी मंशा बताई।
उस समय फेगा पक्षी ने सोने के धागे से झूलती मिट्टी लाकर बूढ़े केंचुआ राजा को खिलाई, तो केंचुआ राजा मोटा हो गया। उसी समय बूढ़े केंचुआ राजा ने आकाश में घूमते-घूमते चारों ओर मिट्टी का ही पाखाना कर दिया और समुद्र के एक-चौथाई भाग को ढक दिया। उसके बाद बहुत बड़ा आँधी-तूफान आया। उस तूफान से सब कुछ ऊबड़खाबड़ हो गया, जिसे आकाश के देवी-देवताओं ने समतल बनाया। जहाँ-जहाँ मिट्टी असमान रही, वहाँ जंगल बना और जहाँ समतल थी वहाँ मैदान बना। उसके बाद फिर आँधी-तूफान आया। उस आँधी-तूफान के बाद एक अंडा पैदा हुआ, जो सात दिन बाद फट गया। उसी से सभी जीव-जंतुओं का जन्म हुआ। उस अंडे के छिलके के अंदर के तरल भाग से शवर जाति का और खोड़ा से खड़िया जाति का जन्म हुआ। अंडे के केंद्र के पीले भाग से राजा-रानी का जन्म हुआ। शबर शब्द का अर्थ किशोर होता है। शबर लोग जंगली गुफा या पत्थरों की गुफा के अंदर रहकर जंगली आलू, कंद, फल खाकर गुजर-बसर करते थे। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे जंगल में बोदी की खेती करना सीखा, जिससे 'जारा-काटा' शबर का नामकरण हुआ।"
निष्कर्ष:
शबर आदिवासी समूह झारखंड के आदिम जनजाति समूह में आता है। 'शबर' समूह 'खड़िया' समूह की ही एक उपजाति है। भौगोलिक दूरी से इनकी कथाओं में हेर-फेर हो गया है।
प्रस्तुति : रोज केरकेट्टा
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संदर्भ :
रमणिका गुप्ता (संपादक)-आदिवासी : सृजन मिथक एवं अन्य लोककथा
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