झारखंड का ‘हो’ आदिवासी समुदाय
- प्रस्तावना
- धर्म
- भाषा
- गोत्र
प्रस्तावना:
सिंहभूम जिले के कोल्हान प्रदेश में पाए जाने
वाला हो आदिवासी समुदाय है। इनके उत्पत्ति के बारे कहा जाता है कि यह मुंडा परिवार
से ही आते हैं। झारखंड का छोटानागपुर के कोल्हान प्रदेश में रहते हैं। कुछ
विद्वानों का मानना है कि कुछ समय बाद तमाड़ क्षेत्र से कुछ मुंडा आदिवासियों का
समूह सिंहभूम चला गया। वही दल ‘हो’ आदिवासी कहलाता है। यह लोग अपने गोत्र के नाम
पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं तथा वस्तुओं के नाम से रखते हैं। यह उनका गोत्र कहलाता है।
धर्म:
हो आदिवासी समुदाय विवाह संस्कार के अतिरिक्त
वे प्रकृति पर ज्यादा विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि प्रकृति ही उनके जीवन
में कल्याणकारी असर डालती है। वे हर समय प्रकृति से प्रार्थना करते रहते हैं। इसके
लिए वे प्रकृति को कुछ पशुओं की बलि भी चढ़ाते हैं। हो आदिवासी समुदाय का प्रधान या
देवता पहाड़-पर्वत, नदी, सूरज-चाँद होता है। उसे हो भाषा में ‘बोंगा’ या ‘सिंगबोंगा’
भी कहा जाता है। यह देवता सृष्टि का निर्माणकर्ता माना जाता है। इसके साथ ही
प्रत्येक गाँव में सरना होता है। उसमें प्रकृति शक्ति वास करती है। सन् १९८१ की
जनगणना के अनुसार ८१.६५% लोग आदिवासी का पारम्परिक धर्म मानते हैं। कुछ आंकड़े हिंदू
तथा क्रिश्चियन धर्म को मानने बताये जा रहे है।
भाषा
व्यवस्था:
इस समुदाय की भाषा कोलेरियन भाषा परिवार से आती
है। कोलेरियन भाषा ऑस्ट्रो आस्ट्रीक भाषा परिवार से आती है। जब यह समुदाय दूसरे समुदाय
के लोगों से बातचीत करते हैं तो हिंदी भाषा में संवाद साधते हैं। पश्चिम बंगाल के ‘हो’
आदिवासी लगभग बंगाली भाषा बोलते हैं। तो उड़ीसा राज्य में पाए जाने वाले ‘हो’
आदिवासी ‘उड़िया’ भाषा बोलते हैं। इस तरह से हो आदिवासी समुदाय की भाषाई संरचना कही
जा सकती है।
गोत्र
व्यवस्था:
‘गोत्र’ को ‘टोटम’ भी कहा जाता है। ये टोटम
प्राकृतिक घटकों के नामों से होते हैं। जैसे कि-पेड़-पौधें, पशु-पक्षी, नदी, पर्वत-पहाड़
इत्यादि। हो भाषा में गोत्र को ‘किली’ कहा जाता है। इस समुदाय के बानरा, पूर्ति,
हंसदा, कुनकेल गोत्र प्रमुख हैं। बावजूद इसके समंद, डांगा, हंसदा, सिंकू, जामुदा,
पिगुआ, हेम्ब्रेम आदि है।
इस प्रकार से झारखंड के हो आदिवासी समुदाय का
धर्म, भाषा, सामाजिक संरचना एवं गोत्र व्यवस्था के कुछ तथ्यों पर हम बात कर सकते
हैं।
Dr.Dilip
Girhe
संदर्भ:
झारखंड
एन्साइक्लोपीडिया खंड-४
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