डॉ. विनायक तुमराम कृत काव्य संग्रह 'गोंडवन पेटले आहे'
-Dr.Dilip Girhe
समकालीन मराठी आदिवासी साहित्य में डॉ विनायक तुमराम का नाम महत्वपूर्ण है|उनका प्रथम काव्य संग्रह 'गोंडवन पेटले आहे' है| जिसे हम 'गोंडवाना सजग हुआ है' कह सकते है|एकलव्य प्रकाशन चंद्रपुर सन् १९८७ में इस काव्य संग्रह का प्रकाशन हुआ है|विनायक तुमराम की 'वनपुत्रांची वेदना', 'मी वनवासी, 'अक्षरलेनी', 'शतकातील आदिवासी कविता' जैसी कई कविताएँ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं|'गोंडवन पेटले आहे' इस काव्य संग्रह पर श्रीपाल सबनीस टिप्पणी करते हैं कि कवि विनायक तुमराम की कविताएँ उनके क्रांतिकारी विचारों एवं चिंतन को रेखांकित करती है|साथ ही उनके सुख दुःख की वेदनाएं, आदिवासियों का इतिहास, पौराणिकता व समाजशास्त्रीय चिंतन जैसे विषयों पर बात करती है|आदिवासियों के ऐतिहासिक संदर्भ, अस्मिता, आंदोलन, प्रतिरोध जैसे विषय भी उनकी कविता के केंद्रबिंदु पर रहे हैं|डॉ. विनायक तुमराम समीक्षक, विचारवंत, आलोचक के साथ-साथ एक कवी के रूप में भी उभरकर आए हैं| उनकी 'वनवासी' कविता प्रस्तापित समाज व्यवस्था का विरोध करती है|
मराठी आदिवासी साहित्य में उनको 'उलगुलानकार' के नाम से पहचान है|आदिवासी सहित्य का शिर्ष स्थान का होने उनकी पहचान है|स्वतंत्रता के बाद बस्तर क्षेत्र के प्रवीन भांजदेव राजा की जानबूझकर की गई उनकी हत्या भाषाई प्रान्त स्थापन करने के नाम पर की थी, इस मुद्दे के साथ-साथ 'गोंडवाना' क्षेत्र का विभाजन जैसे अनेक प्रश्नों पर डॉ. विनायक तुमराम ने कार्य किया|और उनकी कविताओं का स्वर आक्रमक और प्रतिरोध का दिखता है| उनके इस काव्य संग्रह से सही मायने में गोंडवाना प्रदेश सजग हुआ ऐसा प्रतीत होता है|और उनको साथ देने के लिए अनेक कविताओं ने अपने कलम के हत्यार उठाये और कविताओं में अपने स्वर प्रतीत किए हैं|चंद्र्पुर जिले में भद्रावती यहाँ पर प्रथम आदिवासी साहित्य सम्मेलन के शिल्पकार डॉ. तुमराम माने जाते हैं|उन्होंने केवल साहित्य ही नहीं लिखा बल्कि साहित्यकार को सजग करने का कार्य भी किया है|साथ साथ-साथ उन्होंने आदिवासी सांस्कृतिक आंदोलन को आगे चलाया और साहित्य की भूमिका को तैयार किया करने के लिए अहम् भूमिका निभाई| 'आदिवासी साहित्य: स्वरूप आणि समीक्षा', धरती आबा: जनतेचे विद्रोही रूप' जैसे महत्वपूर्ण आदिवासी साहित्यिक ग्रंथों का निर्माण करके एक वैचारिक क्रांतिलाने का कार्य किया है|इस प्रकार से 'गोंडवन पेटले आहे' काव्य की मूल संवदना व्यक्त कर सकते हैं|
संदर्भ: आदिवासी साहित्य दिशा आणि दर्शन-डॉ.विनायक तुमराम
3 टिप्पणियां:
अद्वीतीय
बहोत बढिया सर जी...keep it up..
Dr.vinayak tumaram ji ke bare main bahut mahatvapurn jankari di sir ji.
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