सोमवार, 1 अप्रैल 2024

डॉ विनायक तुमराम कृत काव्य संग्रह 'गोंडवन पेटले आहे' VINAYAK TUMARAM KRUT KAVYA SANGRAH GONDWAN PETALE AAHE



डॉ. विनायक तुमराम कृत काव्य संग्रह 'गोंडवन पेटले आहे'

                                            -Dr.Dilip Girhe 

       समकालीन मराठी आदिवासी साहित्य में डॉ विनायक तुमराम का नाम महत्वपूर्ण है|उनका प्रथम काव्य संग्रह 'गोंडवन पेटले आहे' है| जिसे हम 'गोंडवाना सजग हुआ है' कह सकते है|एकलव्य प्रकाशन चंद्रपुर सन् १९८७ में इस काव्य संग्रह का प्रकाशन हुआ है|विनायक तुमराम की 'वनपुत्रांची वेदना', 'मी वनवासी, 'अक्षरलेनी', 'शतकातील आदिवासी कविता' जैसी कई कविताएँ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं|'गोंडवन पेटले आहे' इस काव्य संग्रह पर श्रीपाल सबनीस टिप्पणी करते हैं कि कवि विनायक तुमराम की कविताएँ उनके क्रांतिकारी विचारों एवं चिंतन को रेखांकित करती है|साथ ही उनके सुख दुःख की वेदनाएं, आदिवासियों का इतिहास, पौराणिकता व समाजशास्त्रीय चिंतन जैसे विषयों पर बात करती है|आदिवासियों के ऐतिहासिक संदर्भ, अस्मिता, आंदोलन, प्रतिरोध जैसे विषय भी उनकी कविता के केंद्रबिंदु पर रहे हैं|डॉ. विनायक तुमराम  समीक्षक, विचारवंत, आलोचक के साथ-साथ एक कवी के रूप में भी  उभरकर आए हैं| उनकी 'वनवासी' कविता प्रस्तापित समाज व्यवस्था का विरोध करती है| 

       मराठी आदिवासी साहित्य में उनको 'उलगुलानकार' के नाम से पहचान है|आदिवासी सहित्य का शिर्ष स्थान का होने उनकी पहचान है|स्वतंत्रता के बाद बस्तर क्षेत्र के प्रवीन भांजदेव राजा की जानबूझकर की गई उनकी हत्या भाषाई प्रान्त स्थापन करने के नाम पर की थी, इस मुद्दे के साथ-साथ  'गोंडवाना' क्षेत्र का विभाजन जैसे अनेक प्रश्नों पर डॉ. विनायक तुमराम ने कार्य किया|और उनकी कविताओं का स्वर आक्रमक और प्रतिरोध का दिखता है| उनके इस काव्य संग्रह से सही मायने में गोंडवाना प्रदेश सजग हुआ ऐसा प्रतीत होता है|और उनको साथ देने  के लिए अनेक कविताओं ने अपने कलम के हत्यार उठाये और कविताओं में अपने स्वर प्रतीत किए हैं|चंद्र्पुर जिले में भद्रावती यहाँ पर प्रथम आदिवासी साहित्य सम्मेलन के शिल्पकार डॉ. तुमराम माने जाते हैं|उन्होंने केवल साहित्य ही नहीं लिखा बल्कि साहित्यकार को सजग करने का कार्य भी किया है|साथ साथ-साथ उन्होंने आदिवासी सांस्कृतिक आंदोलन को आगे चलाया और साहित्य की भूमिका को तैयार किया करने के लिए अहम् भूमिका निभाई| 'आदिवासी साहित्य: स्वरूप आणि समीक्षा', धरती आबा: जनतेचे विद्रोही रूप' जैसे महत्वपूर्ण आदिवासी साहित्यिक ग्रंथों का निर्माण करके एक वैचारिक क्रांतिलाने का कार्य किया है|इस प्रकार से 'गोंडवन पेटले आहे' काव्य की मूल संवदना व्यक्त कर सकते हैं|

संदर्भ: आदिवासी साहित्य दिशा आणि दर्शन-डॉ.विनायक तुमराम 

3 टिप्‍पणियां:

Nikeah pralhadrao kurkute ने कहा…

अद्वीतीय

Creative youth (Education, Business and Government schemes) ने कहा…

बहोत बढिया सर जी...keep it up..

Sukanya D. Girhe ने कहा…

Dr.vinayak tumaram ji ke bare main bahut mahatvapurn jankari di sir ji.