आदिवासी राजा महात्मा रावण
Dr.Dilip Girhe
राम
और रावण की कथा वाल्मीकि रचित रामायण में मिलती है। इस कथा में दो अलग-अलग
सभ्यताओं के दो अलग-अलग प्रतीक हैं। वे प्रतीक हैं राम और रावण। आज पाठकों के
सामने कई रामायण के प्रकार हैं जिसमें बंगला की ‘कृतिवास रामायण’, तुलसीदास रचित
‘रामायण’ रामचरितमानस, आनंद रामायण आदि हैं। लेकिन वाल्मीकि कृत रामायण के आधार पर
ही रामायण की कहानी बनाई गई है। इस कहानी में राम और रावण के कई मिथकों के सच
सामने आने लगे हैं। राम आर्यों का राजा था तो रावण आदिवासियों का राजा था। रावण को
स्वयं वाल्मीकि ने महात्मा कहा है वे कहते हैं कि-“महात्मतो महद्वेश्म
महारत्नपरिच्छदम्, महारत्नसमाकीर्ण ददर्शसमहाकवि।”[1] इसके बावजूद भी महात्मा रावण
की विशेषताएं कई थी वे एक महान विद्वान, संत, वेदशास्त्रों का ज्ञानी, प्रजा का
दयालू पूर्वकपालक कर्ता, वीर योद्धा, शक्तिशाली पुरुष, शूर वीर शिपाही, वरदानी
पुरुष ऐसे कई गुणों से निपुण थे। आज तक के इतिहास में राम के ही सगुनों को दिखाया
गया है ऐसा क्यों? वाल्मीकि रामायण का कौन हैं सचा नायक जो की कई मिथकों के माध्यम
से चर्चित हो गया। रावण को मारने के लिए वैदिक शास्त्रों ने ‘राम’ ये
अवतारवादी मिथक सामने लाया। अवतारवाद पर पेरियार
रामास्वामी नायकर कहते हैं कि-“हे वर्णन केले गेले आहे की, या सर्व नऊ अवतारांचा अर्थ ब्राम्हणांच्या हितामध्ये आड
येणार द्रविड राजाचा (शूद्रातिशूद्र राजांना) संहार करणे हे होय. या नऊ अवतारामधून, ब्राहमणांनी रामाच्या अवताराला रामायणाच्या
कल्पित कथेला आधार बनवले आहे.”[2] (ये वर्णन किया गया है कि, सभी नौं
अवतारों का अर्थ ब्राह्मणों के हितों के बिच आने वाले द्रविड़ राजाओं पर संहार करना
ही था। इस नौं अवतारों में से राम ये अवतार को रामायण इस कल्पित कथा का आधार बनाया
है।)
रामायण
में रावण ने सीता को उठाकर ले जाने का कारण क्या है? यह जानना भी बहुत महत्वपूर्ण
है। कई इतिहासकारों का कहना हैं कि राम ने लंका पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए
आश्रय लिया था। जब वे लंका में आये थे तब उनपर रावण की बहन सूर्पनखा मोहित हुई और
राम से विवाह करने की उसने विनंती की थी। ये साधारण से कारण से राम ने सूर्पनखा का
नाक काट डाला। एक आदिवासी महिला की विडंबना करना राम का भी दोष था। रामायण के
अरण्यकाण्ड में राम सूर्पनखा से कहते हैं कि-“मैं तो विवाहित हूँ लेकिन मेरा भाई
लक्ष्मण अभी अविवाहित है, तू उनसे शादी के लिए पूछ लो।”[3]राम को रामायण में सत्यवचनी
राजा कहा गया है परंतु ये झूठ राम ने सूर्पनखा से क्यों बोला? बल्कि लक्ष्मण तो
पहले से ही विवाहित था। अपने बहन की
विडंबना का बदला रावण ने सीता अपहरण करके ले लिया।‘जैसी करनी वैसी भरनी’ इस कथन के
अनुसार रावण ने काम किया इसमें रावण की क्या गलती हो सकती है। रावण ने सीता का
अपहरण तो किया लेकिन सूर्पनखा जैसी विडंबना सीता के साथ नहीं की। जो विडंबना
सूर्पनखा के साथ हुई जिसके कारण राम-रावण युद्ध हुआ। लेकिन वैदिक ग्रंथों ने हमेशा
राम को ही उचा बताया है। राम के सगुण बताए हैं परंतु रावण के सगुण नहीं बताए हैं।
रावण ये एक आदिवासी द्रविड़ियन राजा था। रावण का वध राम ने किया ये सत्य है, लेकिन
रावण को मारने का हाथ उनके भाई बिभीषन का भी हैं उन्होंने राजसत्ता को हस्तगत करने
के विवश में रावण के मृत्यु का राज बताया। महात्मा रावण की लंका सभी नागवंशीय थी
और आज भी है।
उत्तर भारत से जब राम दक्षिण भारत में सत्ता को स्थापित करने के लिए आ रहें थे तब रास्ते में शबरी ये भील आदिवासी युवती मिलती है, तब वहाँ पर राजसत्ता को स्थापित करने के लिए उन्होंने दिए हुए झूठे बेर भी खाते हैं। इतना ही नहीं राम-रावण युद्ध समाप्ति के बाद उनकी पत्नी सीता पर वे संशय करते हैं। और सीता को अग्निपरीक्षा देने के लिए विवश कहते हैं। महाभारत काल से आज तक यानि कि सदियों से आदिवासियों (नाग रक्षक) का शोषण होता आ रहा हैं। उनके जंगलों को कैसे नष्ट करके वहाँ पर खेती योग्य ज़मीन तैयार की इस बारें में डॉ.रावसाहेब कसबे कहते हैं कि-“नाग जंगलाचे रक्षणकर्ते होते. कारण जंगले त्यांना अन्न पुरवीत होती. आर्य जंगलाचे विध्वंसक बनले त्यांनी अन्नासाठी जंगले नष्ट करून शेती योग्य ज़मीन निर्माण करणे आवश्यक वाटत होते.”[4](नाग जंगल के रक्षक थे। क्योंकि जंगल उन्हें खाने लायक चीज़े देते थे। आर्य जंगलों के विध्वंसक बनें उन्होंने खाने लायक चीजों के लिए जंगलों को नष्ट करके खेती योग्य ज़मीन निर्माण करना आवश्यक लगा।) जब राम-रावण युद्ध में आदिवासी राजा रावण, राम द्वारा मारा गया तब से लेकर आज तक उनके हत्या का जश्न आर्यों द्वारा मनाया जा रहा हैं। ये जश्न दीपावली इस त्योहार के नाम से मनाना शुरू हो गया है।
इसे भी पढ़िए...
खाज्या नाईक के पिता गुमान सिंह का स्वाधीनता आंदोलन
[1]
एस.कुमार.(2013).रावण को मत जलाओं. नागपुर : बहुजन साहित्य
प्रसार केंद्र. पृष्ठ संख्या. 13
[2]
गायकवाड, दीपक.(2005). आदिवासी चळवळ स्वरूप व दिशा.
पुणे : सुगावा प्रकाशन. पृष्ठ संख्या. 32
[3]
एस.कुमार.(2013).रावण को मत जलाओं. नागपुर : बहुजन साहित्य
प्रसार केंद्र. पृष्ठ संख्या. 15
[4]
गायकवाड, दीपक.(2005). आदिवासी चळवळ स्वरूप व दिशा.
पुणे : सुगावा प्रकाशन. पृष्ठ संख्या. 38
1 टिप्पणी:
अविश्वस्निय लेकिन सत्य इतिहाई
एक टिप्पणी भेजें