मंगलवार, 7 मई 2024

सोमा सिंह मुंडा द्वारा प्रस्तुत सृष्टि निर्मिति की आदिवासी लोककथा-soma singh munda dvara prastut srushti nirmit ki aadiwasi lokakatha


 

सोमा सिंह मुंडा द्वारा प्रस्तुत सृष्टि निर्मिति की आदिवासी लोककथा
पहले इस दुनिया में पानी ही पानी था, जिसमें केवल पानी के जीव-जंतु रहते थे। एक दिन भगवान ने लक्ष्मी से कहा कि हम लोग पत्तों पर बैठकर केवल चारों ओर घूमा करते हैं। कभी भी हमें विश्राम का अवसर नहीं मिलता। पानी के इन जीवों के साथ हमारी दोस्ती नहीं हो रही है और हमारे साथ उठने-बैठने वाला भी कोई नहीं है। यह ठीक नहीं है। इसलिए हम धरती को बनाएँ और मानव की रचना करें।
उसके बाद उन्होंने सूर्य, चाँद और तारे बनाए। फिर दिन में प्रकाश और रात में अंधकार की व्यवस्था किया। उसके बाद धरती बनाने का उपाय करने लगे। तब पानी के जीव-जंतुओं को बुलाया। उनमें राघोब बोआङ नाम की एक बड़ी मछली थी। उन्होंने उस मछली को बुलाकर पूछा कि क्या वह धरती बना सकती है?
मछली ने कहा, "प्रयत्न करूँगी।"
वह पानी में समा गई। भीतर जाने पर रखवालों ने उसे रोका।
"मुझे जाने दो, मैं भीतर से कुछ लाने नहीं जा रही हूँ।" रक्षकों ने उसे पानी में जाने की आज्ञा दे दी। भीतर जाकर मछली ने सारी गीली मिट्टी को मुँह में दबोच लिया और बाहर निकल आई। लेकिन बाहर निकलने के पहले ही सारी मिट्टी पानी में घुलकर बह गई। उसने बाहर आकर अपनी लाचारी प्रकट की। भगवान ने कहा, "जाओ, तुम्हारी जाति की सभी मछलियों की गंध पानी में रहकर भी नहीं हटेगी और तुम लोगों का मुँह कुमुनी के समान बड़ा होगा?" उसके बाद भगवान केकड़े के पास गए और पूछा, "क्या तुम धरती बना सकते हो?"
केकड़े ने कहा, "प्रयत्न करता हूँ।"
यह कहकर वह पानी में समा गया। रखवालों के रोकने पर केकड़े ने उन्हें अंडा दिखाकर कहा, "मुझे जाने दो, मैं तुम्हें अंडा दूँगा।" और वह भीतर घुस गया। पाताल में जाकर उसने मिट्टी को अपने पैरों में दबोचा और बाहर चला। किंतु सारी मिट्टी गल गई और बाहर आकर उसने अपनी लाचारी बताई। भगवान ने कहा, "तुम्हारी सारी जाति ऐसी ही होगी। तुम इधर-उधर रेंगते फिरोगे। छाती में आँखें होंगी और आगे-पीछे दोनों ओर चलोगे।"
उसके बाद वे कछुए के पास गए और पूछा, "क्या तुम धरती बना सकते हो।" कछुए ने कहा, "कोशिश करके देखता हूँ।" कछुआ पाताल में चला गया। जब रखवालों ने उसे रोका तो उसने कहा- "मैं भला भीतर से क्या लाऊँगा? मैं बिना हाथ-पैर का जीव, चल-फिर नहीं सकता।"
उसे जाने की अनुमति मिल गई। भीतर जाकर कछुए ने सारी मिट्टी अपनी पीठ पर लाद ली और ऊपर की ओर चल पड़ा। किंतु रास्ते में ही सारी मिट्टी बह गई। ऊपर आकर कछुए ने भगवान से कहा कि उसे सफलता नहीं मिली। इस पर भगवान ने कहा- "तुम कछुआ जाति के सभी लोग अपना घर-बार लिए पीठ पर फिरोगे। तुम्हारी पीठ पर चाहे कोई कितनी भी चोट पहुँचाए, तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। तुम्हारी मृत्यु गर्दन काटने पर ही होगी।"
उसके बाद वे गेतू मछली के पास गए और पूछा, "क्या तुम धरती बना सकती हो?"
मछली ने स्वीकार किया और मिट्टी की खोज में पाताल चली गई। रक्षकों ने अंदर जाने से उसे भी रोका।
"मैं अंदर से कुछ नहीं लाऊँगी।" मछली ने उन लोगों से कहा।
तब उसे घुसने दिया गया। वहाँ जाकर मछली कीचड़ में घुस गई और लोटने
लगी। थोड़ी देर में कीचड़ से लिपटी हुई मछली बाहर आई।
"मुझसे जो कुछ बन पड़ा मैंने किया।" मछली ने कहा। "जाओ तुम कीचड़ में ही रहोगी।" भगवान ने कहा।
"मुझसे बड़ा जोंक है, वह धरती बना सकता है।" मछली ने भगवान को सुझाव दिया।
भगवान जॉक के पास गए। "क्या तुम धरती बना सकते हो?" भगवान ने जोंक से पूछा। "अवश्य प्रयत्न करूँगा।" जोंक ने कहा। वह मिट्टी की खोज में पानी के अंदर समा गया। रक्षकों ने उसे भी रोका। "मेरे तो हाथ-पैर कुछ नहीं हैं। भला मैं कैसे कुछ ला सकूँगा।" जोंक बोला। यह सुनकर रक्षकों ने उसे राह दे दी। पानी के भीतर जाकर जोंक मिट्टी और कीचड़ खाने लगा। वह अपने शरीर को ऊपर से नीचे तक लंबा करने लगा। उसने मुँह नीचे और पूँछ ऊपर कर ली। मुँह से मिट्टी खाता गया और ऊपर को पाखाना करने लगा। इस तरह पानी के चार भागों में से एक भाग में धरती बन गई। "अब धरती बन गई, तुम अपना काम बंद कर दो।" भगवान ने जोंक से कहा।
"मुझसे जितना हो सका मैंने किया।" जोंक ने बाहर आकर कहा।
भगवान ने प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया कि जाओ तुम इसी धरती में रहोगे, मिट्टी खाने में तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा। जोंक को इतना कहकर उसे विदा किया और भगवान लक्ष्मी के पास गए। "अब धरती बन गई। तुम उसे लीप-पोतकर ठीक करो।" भगवान लक्ष्मी से बोले।
लक्ष्मी धरती लीपने लगीं। जिधर जिधर उन्होंने लीपा उधर-उधर समतल मैदान बना और जो भाग अछूता रह गया उधर पहाड़ और नदियाँ बन गए। तब भगवान ने धरती पर पेड़-पौधे और घास-फूस आदि की सृष्टि की।
अब भगवान ने सोचा कि धरती की शोभा के लिए जीव-जंतुओं की सृष्टि करनी चाहिए। उन्होंने सबसे पहले घोड़ा बनाया। घोड़ा बना लेने के बाद उन्होंने
नई मिट्टी से एक पुरुष और एक स्त्री बनाए। इन पुरुष और स्त्री को 'लुटकुम हड़म' और 'लुटकुम बूढ़ी' के नाम से जाना जाता है। ये ही मुण्डाओं के आदि स्त्री और आदि पुरुष कहलाए। इन्हीं की संतान मुण्डा लोग हैं।
इस प्रकार से मुंडा आदिवासियों की सृष्टि सृजन लोककथा का विवरण हम पढ़ सकते हैं।

संकलित-Dr.Dilip Girhe

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संदर्भ:
रमणिका गुप्ता-आदिवासी सृजन मिथक एवं अन्य लोककथाएं

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