आंध आदिवासी समुदाय के संत गिरमाजी कृष्णाजी वागतकर और गणपति महाराज खुडे का आंदोलन -Dr. Dilip Girhe
संत गिरमाजी कृष्णाजी वागतकर:
संत गिरमाजी कॄष्णाजी वागतकर का जन्म आंध आदिवासी समुदाय में सन् 1983 में वागत तहसील भोकर जिला नांदेड़ में हुआ। 14 अप्रैल 2007 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। गिरमाजी कृष्णाजी वागतकर ने 1939 से 1948 के दौरान मराठवाड़ा में निज़ाम सरकार और रजाकार संगठन के अन्याय के खिलाफ सक्रिय रूप से भाग लिया। इस संघर्ष में उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर निज़ाम सरकार के विरुद्ध संघर्ष में भाग लिया। तत्कालीन समय में वे हैदराबाद राज्य कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने लहन गाँव के लहनकार देशमुख, खराबी के गगनराव देशमुख, लोहा गाँव के नारायण गायकवाड़, हनमंतराव गायकवाड़ और मराठवाड़ा मुक्ति युद्ध के अन्य कार्यकर्ताओं के साथ निज़ाम के अन्याय का विरोध किया।
उन्होंने रजाकार के खिलाफ लड़ रहे कार्यकर्ताओं को रसद पहुंचाना, संदेश पहुंचाना आदि जैसे काम किये। 17 सितंबर 1948 को भारत सरकार की पुलिस कार्रवाई के बाद मराठवाड़ा निज़ाम की गुलामी से मुक्त हो गया। इसके अलावा उन्होंने स्थानीय राजनीति, सामाजिक मुद्दों और कीर्तन के माध्यम से समाज को शिक्षित करने का चौबीसों घंटे प्रयास किया। इसलिए वे आंध बहुल गावों में 'गिरमाजी महाराज' के नाम से भी जीने जाते थे। उनकी ईमानदारी और पूरे दिल से लोगों की मदद करने की गुणवत्ता ने उन्हें 'भू-विकास बैंक' नांदेड़ का निदेशक बनने का अवसर दिया। उन्होंने भू विकास बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष गोविंदराव पाटिल चिखलीकर को नौ साल तक निदेशक के रूप में सेवा दी। उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम किया। वागत गाँव में सहकारी समिति के निर्विरोध अध्यक्ष के रूप में भी 15 वर्षों तक कार्य किया। पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण के साथ भी उनके अच्छे संबंध थे। उन्होंने आदिवासी आश्रम विद्यालय सीताखांडी को शुरू करने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस काम में नरवत के नागोराव ज़ादे, भुजंगराव पाटिल किन्हालकर और पूर्व विधायक बाबासाहेब गोर्थेकर ने उनकी बहुत मदद की। इन सभी की पहल से आदिवासी बहुल क्षेत्र सीताखांडी के घाट में स्कूल की शुरुआत हुई। इससे भोकर, हदगांव और हिमायतनगर क्षेत्र के आदिवासियों को शिक्षा का एक बड़ा अवसर मिला।
उस समय स्कूल का महत्व इसलिए भी था क्योंकि सरकार ने आदिवासी आश्रम स्कूल 1972 से शुरू किए थे। इसके पीछे कुछ जागरूक आंध आदिवासी कार्यकर्ताओं की दूरदर्शिता महत्वपूर्ण है। समग्र विकास के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। इस बात की जानकारी उन्हें थी। इसलिए उस समय उनका शैक्षणिक कार्य बहुत मौल्यवान था। गाडगेबाबा मिशन संस्थान ने प्रारंभ में गिरमाजी वागतकर को इस विद्यालय का प्रमुख नियुक्त किया। उन्होंने लगभग पांच वर्षों तक स्कूल चलाया। बाद में इस संस्था ने स्कूल की जिम्मेदारी शंकर काले नामक व्यक्ति को सौंप दी। दो साल तक स्कूल चलाने में उनकी मदद की। उपरोक्त घटना क्रम से हम देख सकते हैं कि स्कूल शुरू करने और उसे चलाने में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी।
उन्होंने कीर्तन के माध्यम से सामाजिक प्रबोधन का कार्य किया। वे श्री रामबापू भेटकर महाराज के शिष्य थे। उन्होंने 'श्री रामबापू चरित्र' पुस्तक भी लिखी। इस पुस्तक के आधार पर नांदेड़, परभणी, हिंगोली आदि क्षेत्रों में उनके सभी शिष्य आज भी कीर्तन और विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से श्री रामबापू के कार्यों का महत्व बताते हैं। इस क्षेत्र में गिरमाजी महाराज का कार्य आंध समुदाय के बीच महान है। उनके सभी कार्यों का प्रभाव आंध आदिवासी समुदाय पर पड़ा। निज़ाम शासन के दौरान इस गाँव में पाटिल, पुलिस पाटिल और पांडेपद नामक तीन पद थे। इसलिए तत्कालीन प्रशासन पर काफी दबाव था। उन्होंने आंध समुदाय पर होने वाले किसी भी अन्याय-अत्याचार, उत्पीड़न और जुल्म का बहादुरी से विरोध किया। अत: उस समय आंध समुदाय की बड़े पैमाने पर उपेक्षा की गई।
संत गणपति महाराज खुडे:
संत गणपति महाराज खुडे का जन्म सन् 1851 में सोनपेठ कुपटी (किनवट जिला नांदेड़) में हुआ था। वे एक महान वैज्ञानिक संत थे। उन्होंने समाज को सिखाया कि भक्ति मार्ग से ध्यान करने और मन को शुद्ध करने से मानव शरीर शुद्ध होता है।
बचपन से ही वे सत्य बोलते थे, सत्य आचरण करते थे, सत्य पर चलते थे, सत्य का अविष्कार करते थे। वे समाज को समझाते थे कि अंधविश्वास को न माने, व्यसन न करें तथा समाज के अनेक रीति-रिवाज, परंपराएं और रूढ़ियां विश्वास ज्यादा न करें। जिनके कारण मानव जीवन की हानि होती है और वह समाज नष्ट भी हो जाता है। ऐसा करते हुए उन्होंने अपनी और अपने परिवार की परवाह किये बिना अपना जीवन सम्पूर्ण समुदाय को समर्पित कर दिया। उन्होंने गांव-गांव जाकर भक्ति मार्ग और सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज को जागरूक कर सुधार के लिए काम किया।
उस समय सैकड़ों महिलाओं, लड़कियों, अनाथों, विधवाओं और अन्य कमजोर समूहों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक किया गया था। सन् 1950 में इस संत को समय ने छीन लिया। संत गणपति महाराज का संस्थान आज भी सोनपेठ कूपटी में स्थित है। वर्तमान में इस संस्थान का कार्य उनके पुत्र श्री मीनानाथ दिगम्बर खुडे देख रहे हैं। आज भी श्री संत गणपति महाराज की जयंती हर वर्ष मनाई जाती है।
इस प्रकार से आंध आदिवासी समुदाय संत गिरमाजी कृष्णाजी वागतकर और गणपति महाराज के संपूर्ण सामाजिक योगदान को देख- समझ सकते हैं।
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संदर्भ:
तुकाराम भिसे- आंध जमातीचा प्राचीन व वांशिक इतिहास
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