गुरुवार, 16 मई 2024

विस्थापन का दर्द (आदिवासी कविता)


विस्थापन का दर्द

Dr. Dilip Girhe


वे लोग 

हमें सिंधु घाटी सभ्यता काल से ही

अपने जंगलों से 

अपनी जमीनों से

अपने पहाड़ों से

खदेड़ते आये हैं 

आज भी विकास के नाम

खदेड़ रहे हैं

और बेघर बना रहे हैं 

हमें अपने जमीनों से

पहाड़ों से

जंगलों से

संसाधनों से 

अब यह विकास की नीति 

ने एक रूप धारण किया है

आदिवासी को विस्थापित करके

लेकिन उसका दर्द आदिवासी 

आज भी महसूस कर रहा है।


निष्कर्ष

वर्तमान समय में आदिवासियों के सामने विस्थापन का प्रश्न महत्वपूर्ण है। आज सरकार ने 'विकास की नीति' के नाम पर आदिवासियों को अपने प्राकृतिक संसाधनों को उजड़ना शुरू किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि आदिवासी अपने जमीनों से बेघर होता गया। और उसका मुआवजा उसे कुछ भी नहीं मिला।


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