शुक्रवार, 17 मई 2024

रोज केरकेट्टा द्वारा प्रस्तुत: हल का सृजन की आदिवासी लोककथा

 



 रोज केरकेट्टा द्वारा प्रस्तुत: हल का सृजन की आदिवासी लोककथा


"पोनोमोसोर ने जिन नर-नारी को बनाया वे बहुत ताकतवर निकले। वे ज़मीन से लोहा निकालते और उसे गलाकर औज़ार बनाते। उन्हें असुर कहा गया। उनके आग जलाने से 'सी पीड़ी' और 'तिरासी' बस्ती के लोग परेशान हो गए। गाय-बैल भी गरमी से परेशान हो गए। तब उन्होंने पोनोमोसोर को गुहार लगाई। पोनोमोसोर ने उन्हें असुरों वाले जंगल से दूर, दूसरे जंगल में जाने और जंगल साफ कर खेती करने को कहा। लोगों ने जंगल साफ कर खेत बनाए पर उन्हें हल बनाना नहीं आता था। तब पोनोमोसोर ने जंगल में जाकर एक पेड़ काटा और स्वयं हल बनाने लगा। पोनोमोसोर को भी हल बनाना नहीं आता था। एक ही पेड़ से हल, जुआ, मूठ, हरीस सब बना दिए, इस कारण हल बनाने में उसे सात दिन लग गए।

इधर पोनोमोसोर के नहीं आने से लक्ष्मी परेशान हो गई। उसने मच्छरों को पोनोमोसोर को काटने के लिए भेजा। मच्छरों को मारने के लिए पोनोमोसोर ने पेड़ की पत्तियों को पतिंगे बना दिया। पतिंगे मच्छरों को खा गए।

तब लक्ष्मी ने पोनोमोसोर को डराने के लिए बाघ भेजा। पोनोमोसोर ने बाघ को मारने के लिए कोया कुत्ता (जंगली कुत्ता) बनाया। इन कुत्तों ने बाघ को मार भगाया।

तब लक्ष्मी ने बड़ा सा साँप भेजा। साँप को मारने के लिए पोनोमोसोर ने गरुड़ बनाया। गरुड़ साँप को निगल गया। जब लक्ष्मी ने देखा कि पोनोमोसोर आ ही नहीं रहा है, तो वह स्वयं उसके पास चली गई। वहाँ उसने जब पोनोमोसोर के बनाए हल को देखा, तो वह हँस पड़ी।

लक्ष्मी बोली- "इस हल से तो कोई आदमी हल जोत नहीं सकेगा। तुम हल, जुआ, मूठ, हरीस को अलग-अलग कर दो।" पोनोमोसोर ने वैसा ही कर दिया। तब से हल, मूठ, जुआ, हरीस को अलग-अलग बनाते हैं।"

संकलन-Dr. Dilip Girhe


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