ख़ानदेश का आदिवासी जननायक थानेदार दीप्त्या भील उर्फ दीप्त्या पाडवी का आंदोलन
-Dr.Dilip Girhe
महाराष्ट्र भूमि आंदोलनों की भूमि रही है। यहाँ पर समाज के हर एक तपके के नायकों ने विद्रोह किये हैं। इसी भूमि ख़ानदेश के जननायक ठानेदार दिप्त्या पाडवी का आंदोलन का जिक्र इतिहास में काफ़ी कम मिलता है। इनकी गिनती खानदेश के अज्ञात जननायकों में होती थी। यह जननायक भील आदिवासी समुदाय के थे। माधवराव पेशवा के शासनकाल के दौरान, खानदेश का कुछ हिस्सा होलकेर का प्रभारी था। उस दौरान दिप्त्या पाडवी को तलोदा तालुका के वल्हेरी क्षेत्र में थानेदार का पद दिया गया। उनके निधन के बाद पेशवाई दप्तर दीप्त्या भील उर्फ दीप्त्या पाडवी के नाम से ही जाना जाता था। दीप्त्या भील उर्फ दीप्त्या पाडवी का वर्चस्व तलोदा, कुकुरमुंडा, नवापुर और भामेर क्षेत्र में यह बहुत लोकप्रिय था। तत्कालीन समय मे लूटपाट, डकैती जैसे काम ज्यादा होते थे।
इस संबंध में वल्हेरी क्षेत्र के कुछ पुराने जानकार बुजुर्गों से जानकारी मिली कि दिप्त्या भील का मतलब थानेदार दित्या पाड़वी है। आज का वल्हेरी गांव पहले 'गढ़वालहेरी' के नाम से जाना जाता था। यहां एक किला था। जिसके अवशेष आज भी प्राप्त होते हैं। वह किला और उस क्षेत्र के कुछ गाँव एक राजपूत राजा के स्वामित्व में थे। इस संबंध में दीप्त्या भील उर्फ दीप्त्या पाडवी के इतिहास का जिक्र काफी होता है।शहादा तालुके में चिखली के जननायक जागीरदारों के दस्तावेज़ में पाया जा सकता है। बुधावल के परमार राजे चंद्र सिंह के भाई अजब सिंह का गढ़वालहेरी के किले और आसपास के कुछ गांवों पर कब्जा था।दिप्त्या भील उर्फ दिप्त्या पाडवी ने राजा अजब सिंह को मार डाला और गढ़वालहेरी पर कब्ज़ा कर लिया। उस समय अजब सिंह का पुत्र माधव सिंह अपने परिवार के साथ बुधावल में रहता था। वह गढ़वालहेरी पर हमला करने और किले पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहा था। इसे समझ कर दिप्त्या पाडवी ने बुधावल पर आक्रमण कर दिया और उसको लूट लिया। इस विद्रोह में माधव सिंह मारा गया और दिप्त्या पाडवी ने उसके बेटे चंद्र सिंह और उसकी माँ को पकड़ लिया। चंद्र सिंह का एक और बड़ा भाई, भाऊसिंह या महताबसिंह युद्ध से बचने में कामयाब रहे और कुकुरमुंडा में पेशवा के कमाविसदार सकरंजीपंत की शरण में चले गए। महताब सिंह ने सकराजीपंत की मदद से अपने भाई और माँ को बचाने के लिए गढ़वालहेरी पर दो महीने तक लगातार हमला किया।
आख़िरकार किसी की मध्यस्थता से यह तय हुआ कि दोनों पक्षों के लोग एक साथ आएं और बातचीत करें। साकड़कोट गांव में दोनों पक्षों के लोग एक साथ आ गए। वहां दिप्त्या पाडवी ने बड़ा उत्पात मचाया और सकराजीपंत को पकड़कर बंधक बना लिया और उनकी रिहाई के बदले में उनके बेटे से चालीस हजार रुपये की मांग की। सकराजीपंत के बेटे ने अपने पिता की रिहाई के लिए कुकुरमुंडा क्षेत्र के लोगों से चंदा इकट्ठा किया और दिप्त्या पाडवी को चालीस हजार रुपये दिए और सकराजीपंत को रिहा कराया। मामला गढ़वाल के राजा के बेटे की नजरबंदी से उठा। पेशवाओं को खबर मिली और उन्होंने सकराजीपंत को दोषी ठहराया और उनसे कुकुरमुंडा परगना का राजस्व छीन लिया और उनके स्थान पर माधवराव भागवत को नियुक्त किया। माधवराव भागवत कुकुरमुंडा आये। उन्होंने दिप्त्या पाडवी के दंगों के बारे में पूछताछ की और पेशवाओं को इसके बारे में सूचित किया। पेशवाओं ने अक्रानिकरों को दिप्त्या पाडवी को बसाने का आदेश दिया और उनकी सहायता के लिए सेना भेजी। अक्रानिकर ने पेशवा की सेना की मदद से गढ़वालहेरी पर हमला किया और राजा के भाई और मां को मुक्त कराते हुए दिप्त्या पाडवी को पकड़ लिया और मार डाला। पेशवाओं ने गढ़वालहेरी थाने पर कब्ज़ा कर लिया और इसे अपने नियंत्रण में रखा। बड़े भाऊसिंग उर्फ महताब सिंह की मुलाकात पेशवाओं से हुई। युद्ध में हार चुकाने के बाद, उसने गढ़वालहेरी के किले और राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया और उस पर फिर से कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।
इस प्रकार से दिप्त्या पाडवी के संघर्ष के विविध संदर्भ इस लेख के माध्यम से हम समझ सकते हैं।
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संदर्भ
1 आदिवासी साहित्य परिषद, नंदुरबार के संदर्भ
2 सी.सी. राठवा-ख़ानदेशातील अज्ञात आदिवासी वीर पुरूष
3 प्रा.गौतम निकम-क्रांतिकारी आदिवासी जननायक
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