गुरुवार, 9 मई 2024

महाराष्ट्र के आदिवासियों के क्षेत्र एवं विभाजन-maharashtra ke aadiwasiyon kshetra evm vibhajan

 


महाराष्ट्र के आदिवासियों के क्षेत्र एवं विभाजन

Dr.Dilip Girhe


प्रस्तावना:

महाराष्ट्र राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 3.07 लाख वर्ग है।  जिसमें से 0.50 लाख वर्ग का क्षेत्र जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत आता है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का यह अनुपात 16 है रहा। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनजातीय जनसंख्या 73.18 लाख है। उनमें से 50.53 लाख आबादी (69.05%) आदिवासी उप-योजना क्षेत्र में है और 22.65 लाख आबादी (30.95%) आदिवासी उप-योजना क्षेत्र से बाहर का है। महाराष्ट्र की कुल आबादी में 9.27% ​​आदिवासी हैं। जनजातीय जनसंख्या की दृष्टि से महाराष्ट्र का देश में चौथे क्रमांक पर स्थान है। राज्य में अधिकांश आदिवासी ठाणे, नासिक, धुले, जलगांव, नंदुरबार, अहमदनगर, पुणे, परभणी, हिंगोली, वाशिम, नांदेड़, अमरावती, यवतमाल, नागपुर, भंडारा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, रायगढ़ जिलों में केंद्रित हैं। आदिवासी जनजातियों पर गौर करें तो उनमें मुख्य रूप से भील, महादेव कोली, गोंड, वारली, कोकना, कटकरी, ठाकर, गावित, कोलम, कोरकू, आंध, मल्हार कोली, ढोडिया, दुबला, माड़िया गोंड, परधान, पारधी शामिल इत्यादि प्रमुख रूप से शामिल हैं। यहां के आदिवासी लोग शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। राज्य में साक्षरता दर 47 फीसदी है, जबकि आदिवासियों में यह दर 36.77 फीसदी है। आदिवासियों में महिला शिक्षा का दर बहुत कम अर्थात मात्र 24.03 प्रतिशत है। इसी वजह से आदिवासी आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े हैं। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। लगभग 85 प्रतिशत लोग कृषि से अपनी आजीविका कमाते हैं। 40 प्रतिशत लोग किसान हैं और 45 प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं। कृषि के अलावा, आदिवासी लोग चटाई और टोकरियाँ बनाने, वन उपज इकट्ठा करने, घास काटने आदि काम करते हैं। उनका रहन-सहन सादा होता है और जरूरतें सीमित होती हैं।

क्षेत्रों और जनजातियों का विभाजन:

महाराष्ट्र राज्य में जिन क्षेत्रों में आदिवासी लोग रहते हैं, उन्हें भौगोलिक दृष्टि से तीन प्रभागों में विभाजित किया गया है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-

सह्याद्रि क्षेत्र:

महादेव कोली, वारली, कोनका, ठाकर, कातकारी, मल्हार कोली जनजातियाँ सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में पाई जाती हैं। यह अनुपात महाराष्ट्र की कुल आदिवासी आबादी का 38 प्रतिशत है।

सतपुड़ा क्षेत्र:

भील, कोंका, गावित, दुबला, कोरकू, धानका, तड़वी, पावरा जनजातियाँ सतपुड़ा पर्वत की श्रृंखलाओं में निवास करती हैं। इस क्षेत्र में धुले, जलगांव, औरंगाबाद, अमरावती जिले शामिल हैं।

गोंडवना क्षेत्र:

गोंड, माडिया-गोंड, कोरकू, कोलम, परधान, आंध, जनजातियाँ विदर्भ के पहाड़ी और जंगली इलाकों में रहती हैं, खासकर चंद्रपुर, भंडारा, गढ़चिरौली, यवतमाल, नागपुर जिलों में। प्रमुख अनुसूचित जनजातियाँ भील, महादेव कोली, गोंड, वारली, कोकना, कातकारी, ठाकर, गावित, मल्हार कोली, कोलम, कोरकू महाराष्ट्र की कुल आदिवासी आबादी का 80 प्रतिशत हैं। इन जनजातियों को एक लाख से अधिक जनसंख्या वाली जनजातियों में शामिल किया जाता है।

जिलेवार क्षेत्र:

ठाणे जिले में मुख्य रूप से वारली, कातकरी, ठाकर, कोनका और मल्हार कोली जनजातियाँ निवास करती हैं। भील, कोकना, मावची, पावरा, धानका और गावित ये जनजातियाँ धुले जिले में पाई जाती हैं और महादेव कोली और ठाकर अहमदनगर और पुणे जिलों में मुख्य आबादी हैं। रायगढ़ जिले में ठाकर, कातकरी और नासिक जिले में महादेव कोली, कोनका, ठाकर, भील ​​जनजातियाँ पाई जाती हैं। प्रमुख आदिवासी जनजातियाँ अमरावती जिले में कोरकू, यवतमाल जिले में कोलम, गोंड और आंध और चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिलों में गोंड, माडिया-गोंड, परधान और हल्बा हैं।

इस प्रकार से महाराष्ट्र के आदिवासियों की क्षेत्र के अनुसार विभागनी को हम इस लेख के माध्यम से समझ सकते हैं।

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संदर्भ:

डॉ. गोविंद गारे-महाराष्ट्रातील आदिवासी जमाती