सोमवार, 13 मई 2024

महाराष्ट्र शासन आदिवासी विकास विभाग की योजनाएँ-Maharashtra Shasan Aadiwasi Vikas Vibhag Ki Yojanayen


 

महाराष्ट्र शासन आदिवासी विकास विभाग की योजनाएँ

Dr. Dilip Girhe

  • प्रस्तावना:

भारतीय संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार राज्य सरकार को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह राज्य के कमजोर वर्गों विशेषकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की रक्षा का विशेष ध्यान रखे। उन्हें सामाजिक शोषण से बचाएं रखें। भारत के संविधान में इस मार्गदर्शक सिद्धांत के अनुसार पाँचवीं पंचवर्षीय योजना तक पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक सुधार लाने के लिए विशेष कार्यक्रमों पर जोर दिया गया था। लेकिन जैसा कि देखा गया कि 'व्यक्ति' को केंद्रबिंदु मानकर विकास की  योजनाएं प्रभावी नहीं हो पातीं। इन व्यक्तियों के क्षेत्र को विकसित करना आवश्यक महसूस होने पर क्षेत्र विकास की अवधारणा अस्तित्व में आई। क्षेत्र का विकास तभी होगा जब उस व्यक्ति का विकास होगा। इसे स्वीकार कर लिया गया और यह परीक्षण वास्तव में लागू किया गया। अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पहलूओं को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए आठवीं पंचवर्षीय योजना से जनजातीय उप-कार्यक्रम में पर्याप्त प्रावधान किये गये हैं। नौवीं पंचवर्षीय योजना में जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को शामिल करके भी पर्याप्त प्रावधान किया गया है। क्षेत्र एवं क्षेत्र विकास में मुख्य रूप से शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, स्वास्थ्य केंद्र, कृषि केंद्र, डेयरी विकास केंद्र एवं अन्य विकास के लिए आवश्यक बुनियादी विकास कार्यक्रमों पर विशेष बल दिया गया गया है। भारतीय संविधान में प्रदत्त विविध आदिवासियों के अधिकारों के अनुसार उनको विविध योजनाओं का प्रावधान दिया गया है-

  • सरकारी आश्रम विद्यालय:

शिक्षा के माध्यम से क्षेत्रीय विकास की प्रक्रिया में आश्रमशाला एक महत्वपूर्ण योजना है। इन स्कूलों से आदिवासी लड़के-लड़कियों को ‘पहली से सातवीं’ कक्षा तक की शिक्षा प्रदान की जाती रही है और सातवीं कक्षा के बाद जहां आवश्यक हो वहां उन्हें पोस्ट बेसिक आश्रम स्कूलों और माध्यमिक स्कूलों में परिवर्तित करने की सरकार की नीति है। आदिवासियों के सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास में आश्रम विद्यालयों का स्थान महत्वपूर्ण है।

  • अनुदानित आश्रम विद्यालय:

सरकार की नीति स्व-प्रायोजित संस्थाओं के माध्यम से अनुदान के आधार पर आश्रम विद्यालयों को चलाने की है।

  • शासकीय आदिवासी छात्रावास:

माध्यमिक विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ने वाले आदिवासी छात्रों को उनकी शिक्षा पूरी करने के लिए आवास और भोजन की सुविधा और अन्य पढ़ाई से संबंधित सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

  • भारत सरकार छात्रवृत्ति योजना राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित:

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जनजाति के आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 11वीं कक्षा से छात्रवृत्ति प्रदान करने की योजना है।

  • आदिवासी किसानों को बिजली पंप, तेल पंप की आपूर्ति योजना:

आदिवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। महाराष्ट्र में 80 फीसदी आदिवासी खेती पर निर्भर हैं। अधिकांश आदिवासी केवल बरसात के मौसम में ही खराब गुणवत्ता वाले अनाज की कटाई करते हैं। चूंकि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। इसलिए उन्हें साल में दो-तीन फसल लेने और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए उनके खेतों के कुओं पर या आसपास की नदियों पर मुफ्त बिजली पंप लगाने की योजना चलाई जाती है।

  • पिछड़ा वर्ग आवास योजना:

जनजातीय आवास योजना 1989 से लागू की गई है। इस योजना के तहत महाराष्ट्र राज्य सहकारी आवास वित्त निगम के माध्यम से ऋण प्रदान किया जाता है। हाउसिंग बोर्ड और प्राधिकरण हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं के तहत निर्मित भूखंडों में से 6 प्रतिशत भूखंड आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। महाराष्ट्र सरकार भूमि अधिग्रहण और भूमि विकास के साथ-साथ विभिन्न आय समूहों के लिए आवास योजनाओं को लागू करने के लिए आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण को ऋण प्रदान करती है। आवास निर्माण के लिए प्राधिकरण को दिए गए ऋण में से विभिन्न आय वर्ग के लिए मलिन बस्तियां बनाई जाती हैं, जिनमें से 6 प्रतिशत मलिन बस्तियां आदिवासियों के लिए आरक्षित होती हैं।

  • आदिवासी उम्मीदवारों नौकरी में विशेष भर्ती:

भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के तहत किसी नागरिक को जाति, धर्म, पंथ आदि के आधार पर नौकरियों से वंचित नहीं किया जा सकता है और यह प्रावधान है कि सभी को नौकरियों में समान अवसर दिए जाने चाहिए। हालाँकि पिछड़े वर्गों को अभी भी कई सेवा क्षेत्रों में पर्याप्त गुंजाइश नहीं मिलती है। इस स्थिति को सुधारने और पिछड़े वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में नौकरियाँ उपलब्ध कराने के लिए सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जनजातियों के लिए 7 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं। इसी तरह प्रमोशन के लिए भी 7 फीसदी सीटें आरक्षित हैं।

  • अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए सेवा योजना (नौकरी नामांकन):

अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों का नामांकन आयुक्तालय के अंतर्गत परियोजना अधिकारी, एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के कार्यालय में होता है।

  • आदिवासी पारंपरिक नृत्य प्रतियोगिताएं:

आदिवासी जीवन में नृत्य एवं संगीत का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। उनके सामाजिक, धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और सामूहिक खुशी के क्षणों को विभिन्न नृत्यों के साथ मनाया जाता है। उन्होंने पारंपरिक रूप से अपने नृत्यों, विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों और गीतों को बरकरार रखा है। आदिवासियों की यह सांस्कृतिक विरासत भारतीय संस्कृति का बहुमूल्य हिस्सा माना जाता है। आदिवासी संस्कृति की इस विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए आदिवासियों की पारंपरिक नृत्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।

  • जनजातीय अनुसंधान परियोजनाओं को वित्तीय सहायता (छात्रवृत्ति):

आदिवासी क्षेत्र एवं आदिवासी जनजाति में सामाजिक, आर्थिक परिवर्तन गहन अध्ययन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से रुपये की वार्षिक राशि निरधारित है। क्रमशः 600 प्रति माह, दो छात्रवृत्तियाँ दो वर्षों के लिए प्रदान की जाती हैं।

  • 'आदिवासी सेवक' राज्य पुरस्कार और 'आदिवासी सेवक संस्था' राज्य पुरस्कार:

वे व्यक्ति जिन्होंने आदिवासियों के उत्थान और विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सहकारिता, कुटीर उद्योग, संस्कृति, कला आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय और सराहनीय कार्य किया है और स्व-प्रायोजित धर्मार्थ संगठनों के कार्य और सेवा जो आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों के उत्थान के लिए मौलिक और जुनूनी काम कर रहे हैं, उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। इसी उद्देश्य से सरकार हर साल 15 आदिवासी सेवकों और 7 आदिवासी गैर सरकारी संगठनों को यह राज्य पुरस्कार देती है।

  • जनजातीय जागरूकता एवं सूचना सप्ताह:

यह सप्ताह पहाड़ी घाटियों में रहने वाले आदिवासी समुदाय को सरकारी योजनाओं की जानकारी देने और उन्हें शिक्षित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

  • जनजातीय हस्तशिल्प प्रदर्शनी:

जनजातीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए राज्य में हर वर्ष जनजातीय हस्तशिल्प की प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं।

  • जनजातीय जनजाति प्रमाण पत्र जांच:

राजस्व अधिकारियों द्वारा जारी अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्रों का सत्यापन प्रकृति में अर्ध-न्यायिक है और सरकारी सेवा में शामिल होने वाले और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए आरक्षित सीटों पर प्रवेश पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जाति प्रमाणपत्र की जांच करना अनिवार्य कर दिया गया है। वर्तमान में गैर आदिवासी समुदाय आदिवासियों के सीटों पर बहुत हद तक फायदा ले रहा है।

  • न्यूक्लियस बजट योजना:

विकास की दृष्टि से जो योजनाएं बजट में शामिल नहीं हैं, उनमें नवीन एवं स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण योजनाओं को तकनीकी औपचारिकताओं के कारण लंबे समय तक मंजूरी की प्रक्रिया में न अटकने के उद्देश्य से योजनाओं को स्थानीय स्तर पर मंजूरी दी जाए। न्यूक्लियस बजट योजना का उद्देश्य आदिवासियों के शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के संदर्भ में योजनाओं को समय-सीमा में लागू करना और उनका लाभ जरूरतमंद आदिवासियों तक तुरंत पहुंचाना है। स्थानीय आवश्यकताओं के महत्व पर ध्यान दें और जरूरतमंद आदिवासियों को उनका लाभ प्रदान करें। यह योजना जनजातीय व्यक्तियों एवं परिवारों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने की दृष्टि से कारगर साबित हुई है।

  • महाराष्ट्र राज्य सहकारी आदिवासी विकास निगम की योजनाएँ:

महाराष्ट्र राज्य सहकारी सोसायटी लिमिटेड की स्थापना महाराष्ट्र सरकार द्वारा वर्ष 1972 में महाराष्ट्र राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम- 1960 के तहत की गई थी। निगम का अधिकार क्षेत्र पुणे, अहमदनगर, नासिक, ठाणे, रायगढ़, धुले, जलगांव, नागपुर, अमरावती, यवतमाल, भंडारा, गढ़चिरौली, चंद्रपुर और नादेड़ जिलों के 62 तालुकाओं में फैला हुआ है। आदिवासी सहकारी विकास निगम का मुख्यालय नासिक में है। निगम के कार्यालय के लिए एक निदेशक मंडल है। जिसके अध्यक्ष जनजातीय मंत्री और उपाध्यक्ष जनजातीय विकास राज्य मंत्री होते हैं। प्रबंध निदेशक एक सदस्य है। निगम की 40 तालुका शाखाएँ और 9 क्षेत्रीय कार्यालय जुन्नर, नासिक, नंदुरबार, जव्हार, नागपुर, गढ़चिरौली, यवतमाल, भंडारा में हैं। इनके माध्यम से निगम कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जाता है। आदिवासी सहकारी विकास निगम की मदद से सहकारी समितियों का सहयोग लिया जाता है। निगम के अधिकार क्षेत्र में 275 जनजातीय सहकारी समितियाँ स्थापित की गई हैं। उन्होंने निगम की सदस्यता ग्रहण कर ली है। निगम की योजनाएँ वर्तमान में 62 तालुकाओं में चालू हैं। आदिवासी सहकारी विकास निगम आदिवासी क्षेत्रों में खाद्यान्न और लघु वन उपज के एकाधिकार के लिए सरकार के मुख्य एजेंट के रूप में कार्य कर रहा है।

  • एकाधिकार अनाज खरीद योजना:

व्यापारियों द्वारा आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है। इस योजना के शुरू होने से पहले आदिवासी अपनी कृषि उपज बाजार में बेचने के लिए लाते थे। उस समय उनके सामान की कीमत के बराबर कीमत नहीं होती थी। इसके अलावा सामान के वजन में भी उनके साथ धोखाधड़ी की जाती थी। बरसात से पहले जब आदिवासियों के घरों में अनाज नहीं होता तो उन्हें कर्ज के लिए व्यापारियों और दुकानदारों के पास दौड़ना पड़ता है। ऐसी स्थिति में व्यापारी यह शर्त लगाकर ऋण की वसूली करता था कि वह अगले सीजन में ऋण के बदले में अनाज लेगा। इसके अलावा साहूकार और व्यापारी कृषि उपज को बहुत कम दर पर खरीदकर आदिवासियों को ऋण देते थे, अवसर पर अतिरिक्त ब्याज लेते थे, अग्रिम ब्याज वसूलते थे और उनका भारी शोषण करते थे। आज तक आदिवासी इस दुष्चक्र में फंसे हुए थे। इन आदिवासियों के शोषण को रोकने और उनकी कृषि उपज को उचित मूल्य दिलाने के लिए 'एकाधिकार अनाज खरीद योजना' लागू की गई। व्यापारियों ने आदिवासियों को अधिक भुगतान करने का नाटक किया और वजन और हिसाब-किताब में धोखाधड़ी की। हालाँकि एकाधिकार योजना में आदिवासियों को उचित मूल्य देने के लिए संबंधित कलेक्टर उसी क्षेत्र के महत्वपूर्ण बाजारों में कृषि वस्तुओं की कीमतों को ध्यान में रखते हुए दरें तय कर रहे हैं। इसलिए आदिवासियों को उनके अनाज का भाव योग्य मिल सकें। वैकल्पिक रूप से निगम ने आदिवासियों को निजी व्यापारियों, साहूकारों और दलालों के चंगुल से बचने में मदद की है। निगम की ओर से आदिवासी खरीदी केंद्र पर सहकारी समितियों से सामान खरीदते हैं।

  • द्वितीयक वन उपज की खरीद:

गोंद, चारोली, डिंक, महुआ फुले, तोलाम्बी आदि आदिवासियों द्वारा निर्देशित और संग्रहित की जाने वाली छोटी उपज, जैसे कृषि उपज को निगम द्वारा आदिवासी सहकारी समितियों द्वारा निर्धारित खरीद केंद्र पर खरीदा जाता है।

  • एकाधिकार घास खरीद योजना:

ठाणे जिले में एकाधिकार घास खरीद योजना महत्वपूर्ण हो गई है। इसलिए नकद में बिकने वाली घास की अच्छी कीमत मिलने लगी है। घास खरीदने से खेतिहर मजदूर परिवारों को भी पैसा मिलने लगा है। पालघर, डहानू, जव्हार, तलासरी, मोखदा, वाडा, शाहपुर आदि तालुका के आदिवासियों को आर्थिक रूप से बहुत लाभ हुआ है।

  • गरीब आदिवासी परिवार के लिए खावटी ऋण योजना:

निगम को जनजातीय उपयोजना क्षेत्र के 75 तालुकाओं में छोटे भूमिधारकों, भूमिहीन मजदूरों और ग्रामीण कारीगरों को ऋण वितरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस योजना को शुरू करने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य यह है कि आदिवासी लोग बरसात के दिनों में अपनी खड़ी फसल को व्यापारियों के पास छोटे ऋण पर गिरवी रख देते थे और जीवित रहने के लिए वे व्यापारियों और साहूकारों से अत्यधिक ब्याज दरों पर अनाज और पैसा उधार लेते थे। इसमें उन्हें बहुत धोखा मिलता था। खावटी ऋण योजना की एक उल्लेखनीय उपलब्धि यह है कि 80 प्रतिशत ऋण भूमिहीनों को वितरित किए जाते हैं। भूमिहीन आदिवासी को लेन-देन के मामले में ऋणदाता नहीं माना जाता है। कोई भी व्यक्ति या संस्था उन्हें ऋण देने को तैयार नहीं है। भूमिहीन आदिवासी सदस्य बनकर इस ऋण वितरण योजना से लाभ उठा सकते हैं।

  • शिक्षित बेरोजगार जनजातीय युवाओं के लिए व्यक्तिगत लाभ योजनाएं:

आत्मनिर्भरता की दृष्टि से निगम ने राष्ट्रीय स्तर के वित्तीय एवं विकास संस्थान और महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से कुछ आर्थिक विकास योजनाएं शुरू की हैं। जैसे सारथी ऑटो रिक्शा योजना, कल्पतरु फोटो स्टेंट मशीन योजना, टेम्पो टैक्स, ट्रैक्टर और ट्रक आपूर्ति आदि। इन सभी पहलों की एक विशेषता यह है कि यदि लाभार्थी परियोजना योजना में 10 प्रतिशत तक व्यक्तिगत भागीदारी देते हैं, तो परियोजना लागत का लगभग 90 प्रतिशत ऋण के रूप में और विशेष रूप से 6 प्रतिशत प्रत्यक्ष ब्याज के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

  • निष्कर्ष:

अतः भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए विभिन्न योजनाएं प्रदत्त हैं। वर्तमान में इन योजनाओं में काफी हद तक बदलाव देखने को मिलता हैं। बहुतांश योजना आदिवासियों तक पहुँचती ही नहीं। कुछ पिछड़े आदिवासी इलाकों में ऐसे योजनायें तो सिर्फ कागजों पर ही रह जाती है। यानि कि आदिवासियों को उनका लाभ नहीं मिल पाता है। सरकार को यह भी ध्यान में रहना होगा कि इन जैसे योजनाओं को सही तरीके से लागु करें। जिससे संविधान में दिए अधिकारों को आदिवासी समाज प्राप्त कर सकें। 


इसे भी पढ़िए....


ब्लॉग से जुड़ने के लिए निम्न ग्रुप जॉइन करे...

संदर्भ:

डॉ.गोविंद गारे- महाराष्ट्रातील आदिवासी जमाती


कोई टिप्पणी नहीं: