सी. आर. माँझी द्वारा प्रस्तुत आदिवासी लोककथा : छोटी चिड़िया की कथा
एक वनस्थली का विशाल भू-भाग घने वृक्षों और लताओं से आच्छादित था। उस वन- स्थली में चट्टान की श्रृंखलाएँ एवं पर्वतमालाओं की कतारें दूर-दूर तक फैली हुई थीं। उस घने जंगल में अनेक वन-प्राणियों, पक्षियों एवं हाथियों के झुंड भरे हुए थे।
उसी जंगल की तलहटी में एक केंदू की डाल में दो छोटी चिड़ियाँ, एक नर और एक मादा निवास करते थे। छोटी मादा पक्षी बहुत यत्न से एक घोंसला बनाकर अपने चार अंडों पर बैठ उन्हें सेने लगी थी ताकि नियमित समय में अपने अंडों से चूजों को जन्म दे सके। छोटी मादा पक्षी निश्चित थी कि इस बार वह विना किसी बाधा-विघ्न के अपने बच्चों का मुख देखने में सफल हो पाएगी।
कुछ त्रासद स्थितियों तो कभी न कभी आती ही रहती हैं। एक दिन एक उदंड हाथी उसी केंदू गाछ के नीचे आ खड़ा हुआ, जहाँ छोटी मादा पक्षी चार अंडों को लेकर बैठी अपने अंडे से रही थी। अचानक हाथी उस केंदू वृक्ष को झकझोरने लगा। मादा पक्षी की समझ में कुछ नहीं आया। उसने देखा कि घोंसले से उनके दो अंडे छिटककर वृक्ष के नीचे गिरे और टूट गए। छोटी मादा पक्षी घोंसले में बैठी-बैठी उस उदंड एवं बलवान हाथी से विनती करने लगी।
"हाथी बाबा, आपने जिस तरह इस केंदू वृक्ष को हिलाया, देखो उससे मेरे दो अंडे धरती पर गिरकर वर्बाद हो गए हैं और मेरे दो बच्चों के प्राणपखेरू उड़ गए हैं। आपके इस कार्य से काफी अनर्थ हो गया है, जो हम जैसे जीवों के लिए उचित नहीं है। अतः कृपा कर हमें जीवनदान दें।"
छोटी मादा पक्षी की विनती सुनने के पश्चात् उदंड हाथी काफी क्रोधित हो गया और दुबारा अपनी पूरी ताकत से उस केंदू वृक्ष को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगा। फिर क्या था, छोटी मादा पक्षी के दो बचे हुए अंडे भी घोंसले से छिटककर पेड़ के नीचे आ गिरे और फूटकर बर्बाद हो गए। ऐसा करने के पश्चात् वह उद्दंड हाथी ज़ोर की गर्जना करता हुआ पहाड़ की चोटी की ओर चला गया। छोटी मादा पक्षी अपने चारों अंडों की बर्बादी पर अत्यंत दुखी हुई और ज़ोर-ज़ोर से क्रंदन करने लगी। कुछ विलंब के पश्चात् नर पक्षी भी चारा लिए लौटा और पक्षियों का झुंड भी मादा पक्षी का क्रंदन सुनकर आ धमका। उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा। मादा पक्षी ने विस्तार से उस उद्देड एवं बलवान हाथी के अत्याचार की घटना का जिक्र किया। पक्षियों ने मादा पक्षी से हाथी द्वारा किए गए घमंडपूर्ण उद्दंड व्यवहार के प्रति चिंता व्यक्त की और इसके लिए कोई सटीक पहल करने की मादा एवं नर पक्षियों को सलाह दी।
"क्यों न हम सभी मिलकर जंगल के सभी प्राणियों के समक्ष, उस हाथी के क्रूर अत्याचार पर विचार करने हेतु अपील करें।" सभी पक्षी एक स्वर से बोले।
बाद में उस केंदू वृक्ष में घोंसला बनाकर रहने वाले नर-मादा पक्षियों ने सभी पक्षियों को साथ लेकर जंगल के एक-एक प्राणी के पास जाकर, हाथी के अत्याचार से त्राण पाने के लिए न्याय की गुहार लगाने की सोची। किंतु सभी वन-प्राणियों ने उस अत्याचारी हाथी से किसी भी प्रकार की राहत दिलाने की बात अनसुनी कर दी। हताश होकर सभी पक्षी अपने-अपने घर वापस लौट गए।
कालचक्र में कई दिन गुज़र गए। सभी पक्षी हाथी के अत्याचार की बातें भूल गए थे। पुनः छोटी मादा और नर पक्षी ने वंश-बढ़ोतरी की दृष्टि से, उसी केंदू वृक्ष की डाल पर घोंसला सजाया और समयानुसार मादा पक्षी अंडे देकर, अंडों को पुनः इस आशा में सेने लगी कि शायद तीन-चार दिनों के भीतर अंडों से चूजे जन्म ले लेंगे। किंतु फिर उसी समय पर उसी हाथी ने पुनः केंदू वृक्ष को हिलाकर मादा पक्षी के अंडों को बिखेरकर वर्बाद कर दिया। उस समय भी दोनों पक्षी हाथी के समक्ष रोए और दया की प्रार्थना की। परंतु उस हाथी ने उनकी किसी विनती पर ध्यान नहीं दिया। वह उसके अंडों को बर्बाद करने के पश्चात् पूर्व की भांति अपनी गर्जना के साथ पर्वत की चोटी पर चढ़ गया।
इस बार की दुःखद घटना के लिए नर एवं मादा पक्षी तीन-चार दिनों तक केंदू वृक्ष पर ही रोते रहे और भावी पीढ़ियों के लिए संतानों की उत्पत्ति एवं उनकी रक्षा की गुहार लगाते रहे। वे सोचने लगे, शायद वहाँ वे इस अहंकारी हाथी के चलते अपने बच्चों का मुख कभी नहीं देख पाएँगे। अतः ऐसी स्थिति में इस जंगल को छोड़कर जाना ही अच्छी बात होगी। ये सलाह दोनों नर-मादा पक्षियों ने अन्य पक्षियों के सामने रखी और कहा- "मान लो हम यहाँ से दूसरे जंगल के किसी वृक्ष पर डेरा डालें और वहाँ भी यह उद्दंड हाथी या अन्य हाथी हमारे घोंसलों को इसी प्रकार बर्बाद करेंगे, तो हम छोटे पक्षियों का जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो जाएगा। हम पक्षी भविष्य में कभी भी अपने बच्चों का मुँह देख नहीं पाएँगे। उस उदंड हाथी को जब हमें सबक सिखाना ही होगा। उनका अत्याचार अब हम और सहन नहीं करेंगे। हम अपनी शक्ति एवं आत्मविश्वास के बल पर, बिना किसी की सहायता के अपने सीमित साधन एवं शक्ति के साथ लड़ाई लड़ेंगे। आगे इस लड़ाई में मराङ बुरू हमारी सहायता करेंगे।"
चिड़िया ने दृढ़ दावे और विश्वास के साथ अपनी बात नर पक्षी के समक्ष रखी। इसके लिए दोनों प्राणियों ने मराङ बुरू के सामने नतमस्तक होकर प्रणाम किया और उनके सहयोग की प्रार्थना की।
बहुत दिन बीतने के बाद छोटी मादा पक्षी ने पुनः उसी केंदू वृक्ष की डाल पर नया घोंसला बनाया और समय पर अंडे दिए। अंडों को सहेजने के पूर्व ही वह उदंड हाथी पुनः केंदू वृक्ष की ओर आता हुआ दिखा। मादा पक्षी ने उदंड हाथी को वृक्ष की ओर बढ़ते हुए देखने के साथ ही नर पक्षी को सावधान कर दिया और केंदू वृक्ष तक पहुँचने के पहले ही मादा पक्षी उस उदंड हाथी के एक कान में फड़फड़ाकर उड़ते हुए घुस गई। हाथी को इस फड़फड़ाहट की आवाज़ से कान के भीतर असह्य वेदना होने लगी। दर्द के कारण वह केंदू वृक्ष तक पहुँच नहीं सका और वापस लौटते हुए वहीं चक्कर लगाने लग गया। मादा पक्षी अपनी तेज़ शक्ति से कान के भीतरी हिस्से में और ज़्यादा फड़फड़ाकर आघात करने लगी। इससे हाथी को असह्य वेदना हुई। वह चिंघाड़ने लगा और धरती पर लोट-पोट करते हुए कभी दर्द से कराहता, तो कभी दौड़ते हुए चक्कर लगाता। फिर भी उसे दर्द से छुटकारा नहीं मिला। हाथी की गर्जना, रोना और चिंघाड़ना सुनकर सभी जानवरों, हाथियों, शेरों, बाघों, पशु-पक्षियों के झुंड उस केंदू वृक्ष के नज़दीक जमा होने लगे।
उसके असह्य दर्द एवं रोने की आवाज़ सुनकर और उसे उलट-पुलट होकर धरती पर लोटते देखकर वन-प्राणियों ने उससे कारण जानना चाहा। हाथी ने रोते हुए सिर्फ इतना ही कहा- "मुझे क्षमा किया जाए। मैं मराङ बुरू और अपने माँ-बाप की कसम खाता हूँ कि कभी इस केंदू वृक्ष को नहीं हिलाऊँगा। मुझे इस बार क्षमा किया जाए। मैं सबके सामने दया की भीख माँगता हूँ। मुझ पर रहम किया जाए। छोटे-छोटे प्रिय पक्षियों, पशुओं के प्रति अन्याय नहीं करूंगा। ऐसा बुरा, अन्यायी कर्म कभी नहीं करूँगा। इस बार मुझे दर्द से मुक्ति दिलाएँ। मुझ पर दया करें। मुझे क्षमा करें।"
उस उदंड एकला हाथी की बात सुनकर सभी जीव-जंतु घटना का कारण समझ गए। क्योंकि उस उदंड हाथी के अत्याचार से पूर्व में छोटी मादा पक्षी कभी रोई थी और उसने सभी पशु-पक्षियों से न्याय के लिए गुहार की थी। हो सकता है उसी छोटी मादा चिड़िया ने उसे सबक सिखाने के लिए कुछ पहल की हो। सभी वन-प्राणियों ने उस मादा पक्षी से प्रार्थना की कि यह हाथी अपनी गलती का अहसास कर क्षमा एवं दया के लिए भीख माँग रहा है। अतः इस बार इसे क्षमा किया जाए। सभी प्राणियों एवं पशु-पक्षियों की प्रार्थना सुनकर वह छोटी मादा चिड़िया हाथी के कान से बाहर निकली और उस उद्दंड हाथी को उसके क्रूर कारनामों के लिए इस बार क्षमा कर दिया। वह उद्दंड हाथी अपनी करनी पर क्षमा माँगते हुए सभी प्राणियों से एवं विशेषकर उस छोटी मादा पक्षी के सामने नतमस्तक हो गया। उसने प्रतिज्ञा की, "भविष्य में कभी भी वह ऐसा नहीं करेगा।"
छोटी मादा पक्षी के साहस एवं आत्मविश्वास के लिए सभी प्राणियों ने उसकी सराहना की और उसकी वीरता की कहानी तथा अन्याय के खिलाफ लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए उसे साधुवाद दिया। वन में, तब से सभी पक्षी अपने-अपने घोंसलों में बच्चों को जन्म देते हुई सुख-शांतिपूर्वक रहने लगे।
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संदर्भ:
रमणिका गुप्ता-आदिवासी सृजन मिथक
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