गुरुवार, 6 जून 2024

रोज केरकेट्टा द्वारा प्रस्तुत पशु-पक्षी और जलचर की लोककथा: पंडुक और उसकी बेटी roj keketa dvara prastut pashu pakshi aur jalchar ki aadiwasi lokakatha : panduk aur usaki beti

रोज केरकेट्टा द्वारा प्रस्तुत पशु-पक्षी और जलचर की आदिवासी लोककथा: पंडुक और उसकी बेटी 


"एक पंडुक अपनी बेटी के साथ रहती थी। वह लोगों के पास से 'धान' लाकर कूटती थी। उसी से उसका जीवन चलता था। एक दिन वह पंडुक, टंगरा (चट्टान) पर बने गड्‌डे में धान कूट रही थी। सुबह का समय था। वह पंडुक जब धान कूटती तो चावल छिटककर बाहर आ जाता था। पंडुक की बेटी चावल के दाने चुग लेती। पंडुक बार-बार अपनी बेटी को चावल चुगने से मना करती पर बेटी मानती ही नहीं थी। अंत में पंडुक ने बेटी को मूसल से मारा। इससे उसकी बेटी मर गई।

पंडुक अपना धान कूटती रही। जब तक सूरज उगा, तब तक उसने चावल भी तैयार कर लिया और जाकर 'कूटा चावल' वापस कर आई। वापस आने पर उसने देखा कि उसकी बेटी लेटी हुई है।

वह अपनी बेटी को सोया हुआ समझकर जगाने के लिए उसे पुकारने लगी, "उठ बेटी उठ, कूटा चाउर (चावल) पुरलक, पुरलक।" कहकर वह उसे झकझोरने लगी। लेकिन उसकी बेटी तो मर चुकी थी, जागती कैसे ?

तब से आज तक चार बजे के लगभग सुबह-सुबह ही वह पंडुक नाच-नाचकर अपनी बेटी को जगाती रहती है और बोलती है- "उठ बेटी उठ, कूटा चाउर पुरलक, पुरलक।"

टिप्पणी : आदिवासी कथाओं में पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के विशेष आचरण, बोली, ग्रंथ, विशेष अदा व अंदाज़ की भी व्याख्या की जाती है। उसे उनके जीवन की किसी न किसी घटना से जोड़कर, कारण-कार्य की प्रक्रिया बना दिया जाता है। 'पंडुक' का मोरा बनाना हो या पंडुकी का चार बजे सुबह-सवेरे उठकर 'पुरलक-पुरलक' कहकर विलाप करना या रोना अथवा जेठ-आषाढ़ माह में सुग्गे का दोपहर को या आधी रात में रोना, यह उनके जीवन की किसी घटना के कारण घटित हुआ मानकर, कथा में पिरोया जाता है। अपनी जीवनशैली को आदिवासी पशु-पक्षियों के साथ जोड़कर व्यक्त करता है। पशु-पक्षियों से उनका संवाद ही नहीं, व्यवहार भी चलता रहता है।

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संदर्भ:
रमणिका गुप्ता-आदिवासी सृजन मिथक एवं अन्य लोककथाएं


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