डॉ. राजे बिरशाह आत्राम की कविता में आदिवासी अस्मिता का संकट
-Dr. Dilip Girhe
'अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे'
अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे
हम सब मिलकर यह प्राण लेंगे
अपने हक के लिए लड़ाई लड़ेंगे
आज हम सभी मिलकर लड़ाई लड़ेंगे
हम अपनी ही पीड़ा को सहते आए
और कितनी पीड़ा सहेंगे
कब तक डर के पीछे रहेंगे
सीना तान कर आगे बढ़ेंगे
अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे।
हमारे जिंदगी का अधूरा काम
हमारे पूर्वजों का एहसास है
मेरे युवा साथियों आपको पर्वत जैसे
सीना तानकर खड़े होकर लड़ना होगा
अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए।
- डॉ. राजे बिरशाह आत्राम
काव्य संवेदना:
आदिवासी काव्य में युवा कवियों ने अपनी कलम को चलाना शुरू किया है। 'गोंडवाना नवयुग' पत्रिका में प्रकाशित युवा कवि डॉ. राजे बिरशाह आत्राम की कविता 'अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे' है। वे चंद्रपुर के गोंड़ राजे परिवार के वंशज है। उनके क्षेत्र में उनकी पहचान 'गोंड़ राजे के वंशज' के नाम से की जाती है। उनका सामाजिक व सांस्कृतिक योगदान अपने समाज के प्रति महत्वपूर्ण रहा है। अपने समाज की अस्मिता को कायम रखने के लिए तथा उसपर आये संकट से बचाने का मार्ग वे अपनी कविता में देते हैं। उसी के लिए वे आज भी संघर्ष कर रहे हैं। उनकी किताबों में 'गोंडी समाज का सामाजिक कानून चंद्रपुर का इतिहास' और 'गोंडवाना के आँसू' नामक काव्य संग्रह प्रकाशित है। वे अपनी समाज की 'सामाजिक अस्मिता' को बरकरार रखने के लिए तत्पर है। सन् 2019 से 'गोंडवाना नवयुग' नामक पत्रिका का संपादन का कार्य कर रहे हैं। वे राजनीति से हटकर सामाजिक कार्य को अधिक महत्व देते हैं। उनकी कविता 'अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे' आदिवासी अस्मिता को मजबूती प्रदान करती है।
वे प्रस्तुत कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि आज का युवा अपनी संस्कृति को भूल रहा है। इसी वजह से वे सन्देश देते हैं कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा खुद ही करेंगे। वे आगे कहते हैं कि अपनी संस्कृति की रक्षा करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है। इसे हम सबको मिलकर-जुलकर करना होगा, तभी संभव हो पायेगा। चाये हमें कितना भी संघर्ष क्यों न करना पड़े। उसके लिए हमें स्वयं लड़ाई लड़नी होगी अपनी अस्मिता बचाने के लिये। जो संस्कृति या अस्मिता हमें अपने पूर्वजों ने विरासत में दी है। उस विरासत को बचाना हमारा परम कर्तव्य है। इस लड़ाई में कितने भी बड़े-बड़े संकट क्यों न आ जाये उसका हमें डटकर सामना करके अपनी संस्कृति बचानी होगी। तभी आदिवासी अस्मिता पर आया हुआ संकट टल सकता है।
इस प्रकार से युवा डॉ. राजे बिरशाह आत्राम ने अपनी कविता में अपनी संस्कृति, अस्मिता और अस्तित्व बचाने की बात कहीं है।
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