हे उलगुलान के देवता 'बिरसा आबा अब तो आओ': ग्लैडसन डुंगडुंग
-Dr. Dilip Girhe
'बिरसा आबा अब तो आओ'
और हमें बतलाओ
तुमने कहा था अन्त नहीं है उलगुलान का
अस्तित्व बचाने का दूजा रस्ता नहीं है
तुम्हारी राह पर लाखों चले
क्रांति-आग में हजारों जले
फूल-मालाएँ तुम पर चढ़ाए
पर उन पर बरसीं गोलियाँ
तुमने महुआ की रोटी खाकर
हमारे जमीन और जंगल बचाए
वे मलाई-मक्खन खाए
और बेच दिया हमारा अस्तित्व
15 नवंबर को वे तुम्हें फूल-माला चढ़ाते हैं
धरती बचाने का ढकोसला करते हैं
क्या तुम्हें मालूम नहीं
तुम्हारी धरती बेच उन्होंने
चढ़ाईं तुम्हें फूल-मालाएँ?
क्या तुम्हें मालूम नहीं है
उलगुलान का सौदा करके
पहनते वे मखमल के कपड़े ?
दुनिया भर के चील और कौवे
मंडराते हैं
घर के चारों ओर
बाजों का झुण्ड भी
झपटने को है तैयार
और गिद्धों की दृष्टि भी हटती नहीं
हमारे संसाधन से
उनसे लेकर लाखों डॉलर
दगा दे गया घर का पहरेदार
बना दिये जायेंगे माओवादी
अगर हमने तीर उठाए
डोंबारी बुरू में
चलाए तुमने अंग्रेजों पर तीर
तुम्हारे वंशजों पर चलाकर गोली
बन गये वे शूरवीर
अंग्रेजों को देश से तुमने मार भगाया
वे भगा रहे हैं अब तुम्हारे ही लोगों को
अपनी धरती से
सब्र का बांध टूट गया है
हमारा सबकुछ लूट लिया है
हे उलगुलान के देवता !
अब तो आओ...
अस्तित्व बचाने की राह दिखाओ...!
-ग्लैडसन डुंगडुंग
काव्य की संवेदना:
बिरसा मुंडा ने उनके काल में जो आंदोलन चलाया था वह 'उलगुलान' के नाम से जाना जाता है। उलगुलान यह मुंडारी भाषा का शब्द है। उसका अर्थ होता है 'आंदोलन'। आदिवासी कविता ने भी आंदोलन की भूमिका अदा की है। अनेक आदिवासी कविताओं में आंदोलन के अनेक प्रतिक मिलते हैं। ग्लैडसन डुंगडुंग ने अपनी कविता 'बिरसा अब तो आओ' में आंदोलनात्मक शैली को व्यक्त किया है। जिस प्रकार से डॉ.अम्बेडकर के विचारों को दलित समाज ने अपनाकर अपनी शैक्षणिक स्थिति मजबूत की है। उसी प्रकार से आज आदिवासी समाज को भी अम्बेडकर जैसे महापुरषों की जरूरत है। बिरसा मुंडा ने अपने क्षेत्र से उलगुलान की शुरुआत की और यह शुरुआत आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में फ़ैल गई है। यानि की बिरसा की क्रांति कई जगहों पर फ़ैल गई है। परिणामस्वरूप आदिवासी समाज गलत नीतियों का आज विरोध कर रहा है। फिर भी कई जगहों पर जो आदिवासियों की बेदखली हो रही है। उसके लिए बिरसा के उलगुलान की आवश्यकता है। इसलिए कवि ग्लैडसन डुंगडुंग यह संकेत अपनी कविता में देते हैं।
वे कहते हैं बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा और आपने हमारा अस्तित्व बचाने का रास्ता चुना था। उसका पुनः से आगाज करना होगा। आज तुम्हारी राह पर लोखों लोग चलें और क्रांति फैलाये फुल माला तुमपर चढ़ाएं। बिरसा मुंडा ने महुआ की रोटी खाकर फैलाई थी क्रांति और हजारों पेड़ पौधों को बचाया था कटने से। लेकिन आज भी पूंजीवादी व्यवस्था आदिवासी को बेदखल कर रही है। उनके संसाधनों को नष्ट कर रही है। वे आज 15 नवंबर को तुम्हारी धरती को बेचकर तुम्हारे गले में फूल की माला पहना रहे हैं। आज तुम्हारे उलगुलान का सौदा करके पहन रहे हैं मखमल के कपड़े। इतना ही नहीं घर के चारों और का सभी प्राकृतिक सौदर्य भी नष्ट कर रहे हैं। हमें माओवादी घोषित करके बेच रहे हैं लोखों के डॉलर में हमारी जमीने। जिस तरह से तुमने डोमबारी बुरु में अंग्रजी सत्ता के खिलाफ़ तीर चलकर उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया था। वही समय आज आ गया है। अपने संसाधनों, अस्तित्व, अस्मिता को बचने के लिए हमें आज जरूरत है तुम्हारे उलगुलान की। हे उलगुलान के देवता अब तो आओ और हमें अपना अस्तित्व बचाने की राह दिखाओं..!
इस प्रकार से कवि ग्लैडसन डुंगडुंग अपनी कविता के माध्यम से आदिवासी अस्तित्व बचाने की राह बताते हैं।
इसे भी पढ़िए...
- मराठी आदिवासी कविता में संस्कृति व अस्मिता का चित्रण
- महादेव टोप्पो की काव्यभाषा:मैं जंगल का कवि
- जिन्होंने कभी बीज बोया ही नहीं उन्हें पेड़ काटने का अधिकार नहीं है:उषाकिरण आत्राम
- महादेव टोप्पो की 'रूपांतरण' कविता में आदिवासी की दशा और दिशा
- डॉ. राजे बिरशाह आत्राम की कविता में आदिवासी अस्मिता का संकट
- आदिवासी हिंदी कविता का संक्षिप्त परिचय
- आदिवासी कविता क्या है ?
- हिंदी एवं मराठी आदिवासी काव्य की पृष्ठभूमि
- हिंदी और मराठी आदिवासी कविताओं में जीवन-संघर्ष
- समकालीन मराठी आदिवासी कविताओं में वैचारिक चुनौतियाँ(विशेष संदर्भ: मी तोडले तुरुंगाचे दार)
- ‘आदिवासी मोर्चा’ में अभिव्यक्त वैश्वीकरण की असली शक्लें
- 19 वीं शताब्दी के अंतिम दशकोत्तर आदिवासी साहित्य में विद्रोह के स्वर’
- इक्कीसवीं सदी की हिंदी-मराठी आदिवासी कविताओं में जीवन संघर्ष
- हिंदी काव्यानुवाद में निर्मित अनुवाद की समस्याएँ व समाधान (विशेष संदर्भ : बाबाराव मडावी का ‘पाखरं’ मराठी काव्य संग्रह)
- तुलनात्मक साहित्य : मराठी-हिंदी की अनूदित आदिवासी कविता
- समकालीन मराठी आदिवासी कविताओं में वैचारिक चुनौतियाँ (विशेष संदर्भ : माधव सरकुंडे की कविताएँ)
- आदिवासी काव्य में अभिव्यक्त आदिवासियों की समस्याएँ
- आदिवासी कविता मानवता के पक्षधर का दायित्व निभाती है
ब्लॉग से जुड़ने के लिए निम्न ग्रुप जॉइन करे...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें