बुधवार, 21 अगस्त 2024

जिन्होंने कभी बीज बोया ही नहीं उन्हें पेड़ काटने का अधिकार नहीं है:उषाकिरण आत्राम !! कलम की तलवारें काव्य संग्रह!! (Jinhone Kabhi Bij Boya hi Nahin Unhen Ped Katane Ka Adhikar Nahin Hai: Ushakiran Aatram)


जिन्होंने कभी बीज बोया ही नहीं उन्हें पेड़ काटने का अधिकार नहीं है:उषाकिरण आत्राम 

-Dr.Dilip Girhe 


'जिन्होंने बीज कभी बोया ही नहीं'

बोया ही नहीं जिन्होंने बीज 

क्यों हो अधिकार उन्हें काटने का पेड़? 

जिन्होंने अंधेरी गुफा को 

रौशन ही नहीं किया जलाकर मशाल 

क्यों हो उनको अधिकार अंधा करने का?


जिन्होंने जोड़ा ही नहीं आदमी से आदमी को 

क्यों हो उनको अधिकार तोड़ने का इंसानों को? 

जिन्होंने कभी लड़ी ही नहीं जंग 

क्यों हो उनको अधिकार शौर्य पदक लेने का?


यह, अँतड़ियों के आर-पार 

हथियार भोंकने की चाल को पहचानते हुए 

खड़ा है बन कर प्राणों का पहरुआ 

करके प्राणों की किलेबंदी 

जान चली जाए तो भी


हाथों में बंदूक थामे 

'लड़नी होगी अपनी लड़ाई हमें ही' 

अन्यथा अपना खून बहाने का 

क्यों हो हमें अधिकार?

                              -उषाकिरण आत्राम

(मराठी शीर्षकः ज्यानी बी कधी लावलीच नाही)

काव्य संवेदना:

गोंडी, झाड़ी बोली में कविताएं लिखने वाली आदिवासी कवयित्री उषाकिरण आत्राम है। उन्होंने मराठी भाषा में 'लेखणीच्या तलवारी' नामक काव्य संग्रह को लिखा है। जिसका हिंदी अनुवाद डॉ. मिलिंद पाटिल ने 'कलम की तलवारें' नामक शीर्षक से हिंदी में प्रकाशित किया है। वर्तमान में आदिवासी कविताओं ने जिस प्रकार से अपनी संवेदनशीलता को व्यक्त किया है। उससे समझ में आता है कि आदिवासी कविता का प्रतिरोध कलम के माध्यम से भी जारी है। जिस प्रकार से कोई भी राजा अपनी 'तलवार' के माध्यम से अपनी प्रजा की रक्षा करता है। वह कोई भी संकट को तलवार को हथियार बनाकर उसे हल करता है। उसी प्रकार से वर्तमान में आदिवासी कवि का प्रतिरोध का प्रमुख हत्यार 'कलम' है। उसी को वह कभी-कभी 'तीर' बनाता है तो कभी-कभी 'तलवार' बनाता है। यह कार्य उषाकिरण आत्राम की कविताओं में देखने को मिलता है। उनका प्रतिरोध प्रत्यक्ष रूप से कविताओं में हाजिर होता है।

ऐसा ही प्रतिरोध कवि उषाकिरण आत्राम ने 'जिन्होंने कभी बीज बोया ही नहीं' नामक कविता में किया है।जिस व्यक्ति ने इस पृथ्वी पर एक भी वृक्ष लगाया नहीं है, उस व्यक्ति को इस पृथ्वी तल पर का कोई भी वृक्ष काटने का अधिकार नहीं है। जिस व्यक्ति ने किसी भी समाज में उजाला लाने का काम नहीं किया है, उस व्यक्ति को समाज में अँधेरा फ़ैलाने का कोई अधिकार नहीं है। जिस व्यक्ति ने कभी भी समाज में इंसानियत के बीज नहीं बोये हैं। उस व्यक्ति को कभी भी क्रूरता दिखाने का अधिकार नहीं है। जिस व्यक्ति ने कभी कोई जंग या लड़ाई लड़ी ही नहीं है तो उस व्यक्ति को कोई भी शौय पदक देने का कोई भी अधिकार नहीं है।

इस प्रकार से कवयित्री उषाकिरण आत्राम अपने अधिकार की बात को कविता के माध्यम से स्पष्ट करती है।

इसे भी पढ़िए....


ब्लॉग से जुड़ने के लिए निम्न ग्रुप जॉइन करे...

 

कोई टिप्पणी नहीं: