महादेव टोप्पो की काव्यभाषा:मैं जंगल का कवि
-Dr. Dilip Girhe
'कविता'
मैं जंगल का कवि
पेड़ भी रोपूँगा, कविता भी
इस जंगल, पहाड़ में उगा रहा हूँ
कुछ कवि, कुछ कविता, कुछ कहानी,
कुछ उपन्यास, कुछ नाटक, कुछ कलाकार
कुछ छेनी, कुछ हथौड़ी, कुछ रंग, कुछ कूँची
और जीवन को बेहतर बनाने के लिए
कुछ चिन्तक, कुछ वैज्ञानिक
और निश्चय ही कुछ आलोचक,
कुछ आन्दोलनकारी
हाँ मैं जंगल, पहाड़, नदी,
पेड़-पौधे बचाता एक कवि
बना रहा हूँ पहाड़ के चट्टानी व्याकरण से,
हरी होती भाषा की, हरियाली से
कलम के कैमरे से
कविता पर एक फिल्म ।
- महादेव टोप्पो
कविता की काव्य भाषा:
आज आदिवासी काव्य भाषा का प्रस्तुत करने का एक अलग-सा अंदाज़ है। प्रत्येक कवि की काव्य भाषा उनके परिवेश पर निर्धारित करती है। जाहिर है कि यदि कोई आदिवासी कवि झारखंड की धरती का चित्रण कर रहा है, तो उसकी काव्य शैली उसी परिवेश की होगी। वह वहाँ की हर एक छोटी-मोटी घटनाओं पर ध्यान रखता है। उसे चित्रित करता है। कवि महादेव टोप्पो ने भी अपनी काव्य भाषा को कविता में अभिव्यक्त किया है। वे 'कविता' काव्य में एक कवि की अभिव्यक्ति क्या होती है। उसे बारीकी से चित्रित किया है।
महादेव टोप्पो कहते हैं कि मैं तो जंगल का कवि हूँ। आदिवासी कवि का रिश्ता जंगलों के अनेक घटकों से रहा है। वह उन सभी घटकों को कविता में बताता है। इसी संदर्भ देते हुए से कवि बताते हैं कि मेरा संबंध पेड़-पौधों से नजदीकी का रहा है। इसीलिए मैं कविता के साथ पेड़ को रोपूंगा। जहाँ मेरी कविता है, वहाँ मेरा जंगल भी है। और उसके साथ जंगल का हर एक पहाड़ भी है। कवि पेड़-पौधों के साथ कुछ कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, आलोचक और कलाकारों को भी उगाना चाहते हैं। क्योंकि इसके साथ उनका और भी जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ चिंतकों के साथ वैज्ञानिकों को भी उगाना कवि का परम कर्तव्य है। इसीलिए वह व्याकरण विरहित काव्य लिखकर उस काव्य भाषा से अनेक आंदोलनकारियों को भी तैयार करना चाहते हैं। जिससे कविता को देखने का नज़रिया एक फ़िल्म की तरह बन सकें।
इस प्रकार से कवि महादेव टोप्पो अपनी काव्य भाषा के माध्यम से कविता की भाषा की शैली को व्यक्त करते हैं।
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