महादेव टोप्पो की 'रूपांतरण' कविता में आदिवासी की दशा और दिशा
-Dr. Dilip Girhe
'रूपांतरण'
जब तक थे वे
जंगलों में
माँदर बजाते, बाँसुरी बजाते
करते जानवरों का शिकार
अधनंगे शरीर
वे बहुत भले थे
तब तक उनसे अच्छा नहीं था दूसरा कोई
नज़रों में तुम्हारी
छब्बीस जनवरी को राजधानी के मार्गों पर
नाचने तक
लगते थे वे तुम्हें बहुत भोले-भाले
परन्तु अब वे तुम्हारी नज़रों में हो गये हैं बुरे
उग्रवादी, आतंकवादी, दिग्भ्रमित, बुद्धिहीन
और न जाने क्या-क्या
हाँ, उनमें आ गयी है अब एक बुराई वे-
कुछ-कुछ सोचने लगे हैं
कुछ-कुछ बोलने लगे हैं
कुछ-कुछ माँगने लगे हैं...
-महादेव टोप्पो
काव्य संवेदना:
एक काल से दूसरे काल में किया गया बदल को रूपांतरण कहा जा सकता है। यह रूपांतरण या परिवर्तन किसी भी चीज़ का हो सकता है। कोई परिवर्तन सकारात्मक होते हैं, तो कोई परिवर्तन का स्वरूप नकारात्मक दिखाई देता है। काव्य विधा ने भी साहित्य के क्षेत्र में काफ़ी रूपांतरण किये हैं। आदिवासी कविता भी इन परिवर्तनों पर बात करती है। वह आदिवासी की 'दशा और दिशा' को भी रेखांकित करती है। महादेव टोप्पो ने 'रूपांतरण' कविता के जरिये आदिवासी की दशा और दिशा के कई बिंदुओं को चित्रित करने का प्रयास किया है। यानी कि यह कविता 'क्या थे और क्या है' इसका जवाब देती है।
वे प्रस्तुत कविता के माध्यम से संदेश देना चाहते हैं कि जब तक आदिवासी जंगलों में रहते थे । तब तक जंगल के हर एक कोने से मांदर और बाँसुरी का आवाज आती था। लेकिन आज आदिवासी को बेदखल करने की वहज से यह आवाज का गूंजना बंद हो गया है। जंगलों के जानवरों की भी आज संख्या कम दिखाई दे रही है। आज हम पाते हैं कि आदिवासी समाज कई क्षत्रों में रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए अधनंगे बदन लेकर लड़ रहा है। तो दूसरी तऱफ छब्बीस जनवरी के दिवस के अवसर पर राजधानी के राजमार्गों पर केवल उनको नाचने के लिए बुलाया जाता है। बड़ी शान से टीवी पर उनका नाच दिखाया जाता है। जब तक वे नाचते हैं। तब तक सभी को अच्छा लगता है। किंतु उन्ही आदिवासियों की बात करें तो छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे क्षेत्रों में उग्रवादी, आतंकवादी, बुद्धिहीन न जाने किन-किन नामों से पुकारा जाता है। क्योंकि उनमें आज सामाजिक परिवर्तन की लहर से एक बुराई आ गई है। वह बुराई यह है कि आज कुछ-कुछ आदिवासी सोचने लगे हैं, कुछ-कुछ बोलने लगे हैं, कुछ-कुछ अपने हक़ माँगने लगे हैं। इनका प्रमुख कारण रूपांतरण ही है।
इस प्रकार से कवि महादेव टोप्पो ने रूपांतरण कविता के माध्यम से आदिवासी की दशा और दिशा का चित्र स्पष्ट किया है।
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