शनिवार, 28 सितंबर 2024

निर्मला पुतुल ने अपनी कविता में 'बाँस' की उपादेयता को स्पष्ट किया है || आदिवासी कविता || Aadiwasi Kavita || Tribal Poem ||

 


निर्मला पुतुल ने अपनी कविता में 'बाँस' की उपादेयता को स्पष्ट किया है

-Dr. Dilip Girhe 


'बाँस'

बाँस कहाँ नहीं होता है 

जंगल हो या पहाड़ 

हर जगह दिखता है बाँस 

बाँस जो कभी छप्पर में लगता है तो कभी 

तंबू का खूँटा बनता है 

कभी बाँसुरी बनती है, तो कभी डन्डा 

सूप-डलिया हो या पंखा 

सब बाँस का उपयोग होता है। 

बाँस की खासियत भी अजीब है 

जो बिना खाद-पानी के भी बढ़ जाता है

उसकी कोई देखभाल नहीं करनी पड़ती है

बस जहाँ लगा दो लग जाता है 

पर बुजुगों का कहना है कि

कुंवारे लड़के-लड़कियों को इसे नहीं लगाना चाहिए 

नहीं तो हमेशा बाँझ ही रह जाएँगे

बाँस जहाँ भी होता है

अपनी ऊँचाई का एहसास कराता है

जहाँ अन्य पेड़ बौने पड़ जाते हैं

बाँस को लेकर कई धारणाएँ हैं

आदिवासियों के कुछ और गैर-आदिवासियों के कुछ

चूंकि बाँस का संबंध आदिवासियों की धारणा

सबसे महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय है

बाँस को लेकर कई मुहावरें हैं

जिसमें एक मुहावरा किसी को बाँस करना है

जो इन दिनों सर्वाधिक चर्चित मुहावरा है 

अब इस बाँस करना में कई अर्थ हो सकते हैं 

यह आदमी पर निर्भर करता है कि 

इसके कौन कैसा अर्थ लेता है 

यदि मैं आपको कहूँ 

आपको बाँस कर दूँगी 

तो आप ही बताएँ कि 

इसका क्या अर्थ लेंगे।

कविता की व्याख्या:

प्राकृतिक सौंदर्य में से बाँस एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। एक दिन में 1 मीटर से भी अधिक तीव्र गति से बढ़ने वाला यह प्राकृतिक ‘पेड़-पौधा’ एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। बाँस यह समूह वाचक शब्द है। अलग-अलग जातियों के बाँस होते हैं। यह भारत, अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया व यूरोप के कुछ क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसका उपयोग भी कई तरह की चीज़ें बनाने में किया जाता है। बाँस और आदिवासी का संबंध बहुत ही ज़मीनी रहा है। बाँस कहीं भी उग जाते हैं, चाहे जंगल हो या पहाड़। इसका उपयोग आदिवासी छप्पर में लगाने, तंबू का खूंटा बनाने, बाँसुरी बनाने, डंडा, पंखा, सूप-डालिया जैसे कई साधन बनाने के लिए करते हैं। 

संताली भाषा की कवयित्री निर्मला पुतुल ‘बाँस’ कविता में  बाँस का उपयोग बताती हैं कि बाँस को प्रकृति के हर एक हिस्से में देखा गया है। उसका उपयोग अनेक कामों के लिए किया जाता है। वह कभी तंबू का खूंटा बन जाता है तो कभी-कभी 'छप्पर' की आधारशिला। बाँस का उपयोग बांसुरी बनाने के लिए भी ज्यादा मात्रा में किया जाता है। बांसुरी बजाने वाले 'संगीत की प्रस्तुति' के लिए इसका भरपूर मात्रा में उपयोग करते हैं। जिससे संगीतकार का और सुनने वाले का मनोरंजन होता है। 

देहाती क्षेत्रों में आज भी सूप-डालिया, दुरडी (भाकरी रखने का साधन) और हाथपंखा बनाने के लिए भी बांस का उपयोग होता है। बांस की विशेषता यह भी है कि वह बिना खाद-पानी का ही बड़ा हो जाता है। उसकी देखभाल करने की भी जरूरत नहीं है। जिसे जहाँ लगा दो वहीं उग जाता है। लेकिन बांस लगाने के लिए बुजुर्गों की एक कहावत हैं कि "कुंवारे लड़के-लड़कियों को इसे नहीं लगाना चाहिए नहीं तो हमेशा बाँझ ही रह जाएँगे" बांस अपनी ऊंचाई का सभी को एहसास दिलाता है। समाज में बांस के संदर्भ में कई अर्थ एवं मुहावरें प्रचलित है। जिसके कई अर्थ होते हैं। वह अर्थ व्यक्ति पर निर्भर करता है। 

इस प्रकार से संताली कवयित्री निर्मला पुतुल ने अपनी कविता बांस के माध्यम से उसकी कई उपादेयता पर प्रकाश डाला है।  

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