ओली मिंज की जोहार कविता आदिवासी पहचान की मोहताज है
-Dr. Dilip Girhe
"जोहार"
जोहार कहकर
खुले दिल से हमने
अतिथियों की अगवानी की थी
आज वहीं ‘जोहार’
अपनी पहचान की
है मोहताज।”
जोहार परंपरा:
झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों में आपस में मिलने के बाद "जोहार" कहने की परंपरा है। यह कहने ने इन्हीं समुदायों में भाईचारे के संबंध मजबूत होते हैं। इन क्षेत्रों के आदिवासी किसी भी व्यक्ति को मिलने के बाद जोहार कहना सार्थक मानते हैं। आदिवासी संस्कृति में ‘जोहार’ कहने की परंपरा पुरानी है। “आदिवासी परंपरा के अनुसार प्रकृति के आदर सत्कार के लिए जोहार का प्रयोग करते हैं।” जब आदिवासी भाई-बहन, बुजुर्ग, अतिथि एक-दूसरे से मिलते हैं तो वे उनका स्वागत ‘जोहार’ कहकर करते हैं। यही आदिवासी संस्कृति की सच्ची पहचान है। झारखंड के आदिवासी कवि ओली मिंज उनकी ‘जोहार’ कविता में आदिवासी संस्कृति की ‘जोहार’ परंपरा की महत्ता को स्पष्ट करते है।
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