मंगलवार, 24 सितंबर 2024

ओली मिंज की 'जोहार' कविता आदिवासी पहचान की मोहताज है !! आदिवासी कविता !! Aadiwasi Kavita !!

 


ओली मिंज की जोहार कविता आदिवासी पहचान की मोहताज है

-Dr. Dilip Girhe

"जोहार"

जोहार कहकर 

खुले दिल से हमने 

अतिथियों की अगवानी की थी 

आज वहीं ‘जोहार’ 

अपनी पहचान की 

है मोहताज।”

जोहार परंपरा:

झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों में आपस में मिलने के बाद "जोहार" कहने की परंपरा है। यह कहने ने इन्हीं समुदायों में भाईचारे के संबंध मजबूत होते हैं। इन क्षेत्रों के आदिवासी किसी भी व्यक्ति को मिलने के बाद जोहार कहना सार्थक मानते हैं। आदिवासी संस्कृति में ‘जोहार’ कहने की परंपरा पुरानी है। “आदिवासी परंपरा के अनुसार प्रकृति के आदर सत्कार के लिए जोहार का प्रयोग करते हैं।” जब आदिवासी भाई-बहन, बुजुर्ग, अतिथि एक-दूसरे से मिलते हैं तो वे उनका स्वागत ‘जोहार’ कहकर करते हैं। यही आदिवासी संस्कृति की सच्ची पहचान है। झारखंड के आदिवासी कवि ओली मिंज उनकी ‘जोहार’ कविता में आदिवासी संस्कृति की ‘जोहार’ परंपरा की महत्ता को स्पष्ट करते है।

कवि ओली मिंज ने भी जोहार परंपरा को कविता का हिस्सा बना दिया है। जो आदिवासी बड़े ही खुले दिल से जोहार कहकर गले मिलते हैं। इसका जीवंत उदाहरण ओली मिंज देते हैं। साथ घर में जब भी अतिथि आते हैं। तब उनका आत्मसम्मान बढ़ाने ने के लिए जोहार कहा जाता। यह परंपरा प्राचीन मानी जाती है। इस कारण आदिवासी संस्कृति, अस्मिता, भाषा और अस्तित्व का एक प्रतीक "जोहार" कहने की परंपरा बन गया है।
इस प्रकार से कवि ओली मिंज अपनी कविता जोहार में 'आदिवासी समुदायों में जोहार कहने की परंपरा' को चित्रित करते हैं।
शा है कि आपको यह कविता और उसकी व्याख्या अच्छी लगी होगी। इस पोस्ट को शेयर करें। साथ ही ब्लॉग से ऐसे ही नई-नई पोस्ट को पढ़ने के लिए ब्लॉग को  निम्नलिखित लिंक के माध्यम से फ़ॉलो करें...धन्यवाद! 


इसे भी पढ़िए...

ब्लॉग से जुड़ने के लिए निम्न ग्रुप जॉइन करे...


कोई टिप्पणी नहीं: