जसिंता केरकेट्टा का काव्य संग्रह 'प्रेम में पेड़ होना' की 'अ' से अधिकार वाली पंक्तियां
-Dr. Dilip Girhe
अ से अनार लिखा
उन्होंने कहा
आह ! कितना सुन्दर
आ से आम लिखा
उन्होंने आम के गुण गाए
जब अ से अधिकार लिखा
वे भड़क गए।
-जसिंता केरकेट्टा
कविता का सारांश:
साहित्य को समाज के दर्पण की उपमा इसीलिए दी गई ताकि इस दर्पण या आईने में जब देखा जाएगा तो हमारा प्रतिबिंब जैसे कि वैसा दिख जाए। आज हम देखते हैं कि कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध जैसे महत्वपूर्ण विधाओं ने अपने पैर जमाए हैं। इन विधाओं में अनेक साहित्यिक साहित्य लेखन कर रहे हैं। कोई अपनी खुशी की बात कर रहा है, तो कोई दुःख की बात कर रहा है। यह लेखन समाज के प्रत्येक वर्ग ने लिखा है। जब दलितों, आदिवासियों ने, किन्नरों ने, वृद्धों ने, अल्पसंख्यकों ने साहित्य लिखा तो उसकी पहचान उन्हीं के नाम से साहित्यिक क्षेत्र में हो गई।
समाज का हर एक तबका अपने समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। वह अपने समाज के हक़ अधिकार, समस्याओं को भी साहित्य में रेखांकित कर रहा है। वह 'सड़क से संसद तक' अपनी आवाज़ को कलम के माध्यम 'संसद' में बैठे मंत्री-सांसदों तक पहुँचाना चाहता है। ताकि उसे उसके अधिकार मिल सकें। आदिवासी कविता ने भी इस हकीकत को नकारा नहीं है। वह चौबीस घंटे अपने अधिकार पाने के लिए लड़ती हुई दिखती है। झारखंड की युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा ने उपरोक्त 'सात' पक्तियों के जरिये ही अपने अधिकार पाने की बात की है।
भारतीय संविधान ने समाज के प्रत्येक व्यक्ति को वह एक अच्छा-सा जीवन जी सकें वैसे अधिकार दिए हैं। संविधान का हर एक अनुच्छेद अधिकार की बात करता है। लेकिन जिस समाज को अपने अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। वह लड़ रहा है, प्रतिरोध कर रहा है। जसिंता ने 'अपने अधिकार की लड़ाई' जैसे मुद्दों को बहुत ही सटीक पद्धति उपरोक्त कविता में व्यक्त किया है। उन्होंने बचपन की कविताओं का संदर्भ देते हुए कहा कि हमने बचपन में 'अ' से अनार को पढ़ा है। 'आ' से आम को भी पढ़ा है। किंतु 'अ' से अधिकार को किसी ने नहीं पढ़ा है। जब हम 'अ' से अधिकार पढ़ते हैं तो हमें अपने हक़ अधिकारों का पता चलता है। जसिंता ने सभी बातों को केवल सात पक्तियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
इस प्रकार से जसिंता केरकेट्टा का काव्य संग्रह 'प्रेम में पेड़ होना' की 'अ' से अधिकार वाली पंक्तियां हमें अपने अधिकारों पर लड़ने की बात करती है।
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