'मैं संवेदना का कवि हूँ' रविकुमार गोंड़ की अभिव्यक्ति
-Dr.Dilip Girhe
"मैं संवेदना का कवि हूँ"
जी हाँ! मैं संवेदना का कवि हूँ,
गरीब, मजलूमों के दर्द को गाने वाला कवि हूँ।
देश की बिगड़ती हालत को
बयाँ करता वो छवि हूँ।
जी हाँ! मैं गर्मी में तपते हुए दर्द को
गुनगुनाता रवि हूँ।
जी हाँ! मैं संवेदना का कवि हूँ।
न ही मेरे पास लच्छेदार भाषा,
न ही मेरे पास शब्दों का मकड़जाल,
न ही मेरे पास अलंकार का ब्रह्मास्त्र,
वह इसलिए
क्योंकि
शब्दों के गलियारों से निकली हुई
ठसा-उस से भरी हुई
साहित्यिक लच्छेदार कविता
किसी गरीब के झोपड़ी में,
न ही उजाला कर सकती है
और
न ही उसके परिवार का पेट पाल सकती है
न ही वह भूख मिटा सकती है।
इसलिए
मैं अलंकार, सौंदर्यशास्त्र का कवि नहीं हूँ।
मैं संवेदना को दूसरे लोगों तक पहुँचाता हूँ
उन लोगों के पास तो बिलकुल नहीं
जो पहले से खाये और अघाये हैं।
मैं संवेदना उन लोगों तक पहुँचाता हूँ
जिन्हें बेदखल कर दिया गया
जल, जंगल, जमीन और संवैधानिक अधिकार से।
मैं अपने दर्द को, उनके दर्द में
और
उनके दर्द को अपने दर्द में पिरोता हूँ
ताकि मेरा दर्द
उनके लिए विकास का मार्ग प्रशस्त कर सके
उन्हें मिल सके आगे बढ़ने का नया हथियार।
मैं बिलकुल भी नहीं चाहता हूँ कि,
आज का अन्नदाता किसान,
फाँसी के फंदे से झूले और
मरे घुर्च-घुर्च कर।
मैं नहीं चाहता हूँ कि,
आज का आदिवासी, दलित समाज
अन्याय की बलि चढ़ जाए।
मैं नहीं चाहता हूँ कि,
हमारी आने वाली पीढ़ी
मेरी ही तरह नपुंसक और
कमजोर, लाचार, निरीह निराश
और भययुक्त हो।
इसलिए मैं संवेदना जैसे
हथियार को लोगों तक
हस्तांतरित करता हूँ,
ताकि
आने वाली पीढ़ी कमजोर न हो
बल्कि
सिर उठाकर जी सके निर्दुन्द ।
इसलिए
मैं शब्दाडम्बर का कवि नहीं
बल्कि संवेदना का कवि हूँ।
कविता की संवेदना:
प्रत्येक कवि की संवेदना पृथ्वी तल पर बिखरे हर एक चीजों पर है। उन सभी चीजों की संवेदना जानना और उसपर उपाय बताना कवि का कर्म है। इसीलिए कवि संवेदनशील बातों को काव्य में व्यक्त करता है। यह संवेदना आनंद या दुःख की भी हो सकती है। संवेदनशील कवि का कविता लिखने का मानस यही रहा है कि समाज की वास्तविक परिस्थितियों के चित्रण पर कुछ हल हो सकें। इसी वजह से कवि कलम को माध्यम बनाकर 'लिखता है', 'बोलता है' या फिर 'प्रतिरोध करता है'। ताकि उस परिवेश की संवदेना पर बातचीत होकर हल निकलें।
वर्तमान में आदिवासी युवा लेखकों ने काव्य विधा में अपनी पहचान बनाना शुरू किया है। वे छोटी-छोटी कविताओं का लेखन करके अपनी संवेदना प्रकट कर रहे हैं। गोंड़ आदिवासी समुदाय के युवा लेखक रविकुमार गोंड ने भी इसी परंपरा में आते हैं। उन्होंने अपनी कविता 'मैं संवेदना का कवि हूँ' में अपनी संवेदना को बारीकी से व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि मैं संवेदना का कवि हूँ गरीबी की गरीबी और देश के बिगड़ते हालात को जानता हूँ। वे आगे कहते हैं कि मैं अलंकार, शब्दों का मकड़जाल, सौंदर्यशास्त्र का कवि तो कतय भी नहीं हूँ। मैं वह संवेदनशीलता का कवि हूँ। जिनके कविता के जरिये 'गरीब की गरीबी' और 'भूखे की भूख' का पता चलें।
क्योंकि यह सौंदर्यशास्त्र वाली कविता ना ही किसी गरीब की गरीबी मिटा सकती है और ना ही भूखे को रोटी दे सकती है। कवि ने अपनी कविता में उन तमाम लोगों की संवेदना को प्रस्तुत किया जो आज भी अपनी जल, जंगल और जमीनों से बेदखल किये जा रहे हैं। जो अपने अधिकारों से आज भी वंचित मिल रहे हैं। वे कहते हैं कि मेरा दर्द उनका है और उनका दर्द मेरा है। यह हम दोनों की एक ही 'माला' है। इसीलिए यह 'माला' मेरी संवेदना का प्रतिक है। वे किसानों, मजदूरों, आदिवासियों और दलितों की संवेदना को व्यक्त करते हैं। वे किसानों के अधिकारों की बात करते हैं। वे यह कतय नहीं चाहते कि हमारा 'अन्नदाता' फासी का फंदा गले में लटकाकर 'घुर्च-घुर्च' कर मर जाए। वे आने वाली पीढ़ियों को कमजोर, लाचार और भयमुक्त जीवन से दूर करना चाहते हैं। ताकि उनका भविष्य उज्ज्वलमय हो सकें और वे सतत प्रगति की राह पर चलें।
इस प्रकार से कवि रविकुमार गोंड बहुत गहरी संवेदनशीलता को अपनी कविता में प्रस्तुत करते हैं। इन्हीं संवेदना से उनको वाकई संवेदना के कवि हम कह सकते हैं।
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