बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

आदित्य कुमार मांडी की कविता में मानवता के बीज !! आदिवासी कविता !! पहाड़ पर हूल फूल !! Aaditya kumar mandi ke kavita mein manvata ke bij !! Tribal Poem !!



आदित्य कुमार मांडी की कविता में मानवता के बीज

-Dr. Dilip Girhe


'मानवता'

अगर डरना ही है तो 

माओवादी आतंकवाद से नहीं 

मानवतावाद के खत्म होने से डरो। 

डरो कि भूखा आदमी 

भूलने लगा है न्याय-अन्याय 

उसकी नैतिकता और मानवता 

दम तोड़ रही है 

सत्ता के दमनकारी सूखाड़ में।


घटते हुए जंगलों का 

संदेश यही है 

कि मानवता के बीजों को चुनो 

और उसे बारिश मिट्टी के साथ 

धरती में सहेज लो। 

जोड़ लो उससे नाता 

और उसकी खुशबू को लेकर 

पूरी दुनिया में घूम आओ।


बिखेर दो धरती पर 

मानवता के बीज 

उसकी घनी छांह में ही 

मनुष्य और समाज 

बेखौफ नींद ले सकती है।

जरूरतें भी सभी की हैं 

दुःख भी सभी के हैं 

मैं मैं करता हुआ आदमी बस 

मिमियाए जा रहा है। 

सिर्फ और सिर्फ अपनी क्षुधा के लिए 

रिश्ते-नाते जिम्मेदारियों को 

चबाए जा रहा है। 

कर्तव्य अब उसके लिए 

कोई अहमियत नहीं रखते। 

वह पैसे का गुलाम हो गया है 

भूल चुका है संबंधों की गर्मी कमाना 

आत्मसमर्पण कर चुका है वह 

लालच की सत्ता के सामने।


लालच 

जिससे नहीं गढ़ी जा सकती मानवता 

नहीं फैलायी जा सकती शांति 

पाना खोना भोगना इन सब के बीच 

मोल नहीं है इंसान होने का 

मानवतावाद का संरक्षण और प्रसार ही 

मनुष्य होने का मोल है।

                  -आदित्य कुमार मांडी

काव्य की संवेदना:

साहित्य का मानवतावादी विचारों को स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास जारी है। साहित्य की प्रत्येक विधा मानवता के विचारों पर बोलती है। काव्य विधा ने भी निरंतर मानवतावादी बीज बोने का काम किया है। आदिवासी कविता ने भी इन जैसे पक्षों पर अपने बीज बोये हैं। ऐसे ही स्वर आदित्य कुमार ने 'मानवता' कविता में व्यक्त किए हैं। वे कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि आज सबसे ज्यादा डर मानवतावाद खत्म होने से है। बल्कि इसकी तुलना में इससे भी कम डर माओवाद या आतंकवाद से रहा है। भूखा आदमी भी दमनकारी सत्ता के दबाव में आकर अपनी नैतिकता, न्याय-अन्याय और मानवता को भूल रहा है। इसी वजह से मानवता ने आज दम तोड़ दिया है। जंगलों से घटते हुए पेड़-पौधें, पशु-पक्षी और जानकार भी यही संदेश दे रहे हैं कि पेड़-पौधों के साथ मानवतावादी बीजों को बोये और उसे बारिश के साथ धरती में सगज कर उनके साथ प्रेम का रिश्ता जोड़कर पूरी दुनिया में मानवता के विचारों को बोये।


मनुष्य और समाज से ही मानवता के बीजों को अच्छी तरह से बोया जा सकता है। वे ही इस बीजों को धरती के कोने-कोने बो सकते हैं। जंगलों की घनी छांव में भी इन बीजों को बोने की आवश्यकता है। जब मानवता के बीज जंगलों में बोये जाएंगे तभी यहाँ के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और जानवर अच्छी तरह से नींद ले सकते हैं। 'मैं मैं' करके मिमियाने से भी मानवतावादी विचार खत्म हो रहे हैं। मनुष्य केवल 'मैं' को सर्वस्व मानता जा रहा है। इसी वजह से उसमें अहंकारी विचार जन्म ले रहे हैं। अतः मानवीय भावना अपने-आप खत्म हो रही है। अपने भले के लिए रिश्तों-नातों को भी ठुकराया जा रहा है। यही  कारण से मानवीय संवेदना नष्ट होती जा रही है। मनुष्य ने सत्ता और पैसों के लालच में अपने लोगों को भी दूर किया है। कवि बनाता चाहते हैं कि सत्ता और पैसों के लालच में आकर मनुष्य मानवता को नष्ट कर रहा है। वह अपनी आत्मसमर्पण और अहमियत की भावनाओं को खो चुका है। 'लालच' ऐसी भावना है जिसकी वजह से मानवता कभी भी नहीं गढ़ी जा सकती है और ना ही कभी शांति फैलाई जा सकती है। मनुष्य को 'पाना-खोना-भोगना' इन सब बातों का कोई महत्व नहीं रह चुका है। इसीलिए मानवतावादी विचार दुनिया से धीरे-धीरे अलविदा ले रहे हैं।

इस प्रकार से कवि आदित्य कुमार मांडी मानवता के विचार स्थापित करने के लिए किन बातों करना या नहीं करना चाहिए इसका उदाहरण देकर स्पष्टीकरण देते हैं।

आशा है कि आपको यह कविता और उसकी व्याख्या अच्छी लगी होगी। इस पोस्ट को शेयर करेंऐसे और पोस्ट देखने के लिए और ब्लॉग से जुड़ने के लिए ब्लॉग फॉलो बटन और निम्न व्हाट्सएप चैनल  को फॉलो करें। धन्यवाद!  


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