शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

वर्तमान किसान संघर्ष का पर्दाफाश करती डॉ. भगवान गव्हाड़े की 'होरी की याद में' कविता !! आदिवासी मोर्चा कविता संग्रह !! आदिवासी कविता !! Aadiwasi Kavita !! Hori ke yaad mein kavita !! Tribal Poem !!

  


वर्तमान किसान संघर्ष का पर्दाफाश करती डॉ. भगवान गव्हाड़े की 'होरी की याद में' कविता 

-Dr. Dilip Girhe


'होरी के याद में '

होरी अच्छा किया तुमने जो 

मूँद ली समय से पहले अपनी आँखें 

देख-सह नहीं पाते अपने किसान भाइयों की 

दयनीय स्थिति 

पराधीन भारत की सूरत थी कुछ धुँधली कुछ उजली 

पर आज तो भारत में बसता है शायनिंग इण्डिया 

अपने मुँह पर कालिख पोते हुए 

पहचान नहीं पाओगे तुम किसान नाम के प्राणी का कंकाल 

जो दिन-प्रतिदिन हफ्ते में एक बार लटकता है 

गले में फाँसी का फंदा लेकर 

तुम्हारे राय साहब होते तो कम-से-कम जाग जाती 

उनमें करुणा-दया 

करते जो अरथी का प्रबंध

पर मेरे समय के राय साहब को नहीं होता 

बिल्कुल अफ़सोस किसी के जीने-मरने से 

कीड़े-मकोड़े की जिन्दगी हो गयी तेरे वारिस की 

तुम्हारा गोबर तो आया था लौटकर शहर से 

पाते ही खबर तुम्हें कंघा देने के लिए 

पर मेरा गोबर खबर पाकर भी 

नहीं आना चाहता लौटकर इस नारकीय जीवन में 

पता है होरी? 

कर्ज माफ़ी मिलती हैं बड़े जमींदारों की

ताक पर रख दिया जाता है अल्पभूधारक गरीब किसानों को 

की थी तुमने अपनी लड़की की शादी कच्ची उम्र में 

अधेड़ उम्र के रामसेवक के साथ

पर मेरी तो लड़कियाँ हो चुकीं अधेड़ उम्र की

शादी में दहेज कहाँ से जुटा लूँ होरी! 

भोला की बेटी झुनिया को ले गया था शहर 

भगाकर तुम्हारा गोबर अपने साथ 

पर मेरे गोबर ने तो शहर का जमाई बनना 

पसन्द कर लिया है और कर दिया है बसेरा वहीं 

दो बीघा जमीन के मालिक होकर भी 

तुम हो चुके थे खेतिहर मजदूर 

मेरे तो खेत ही छीन लिए सरकार ने 

कहीं सेझ के नाम पर, तो कहीं लवासा सिटी 

और शिंगुर फैक्टरी बसाने हेतु 

हो चुके थे तुम स्वनाम धन्य 

कर लिए थे तुमने गौमाता के दर्शन 

चख कर देखा या तुमने गोरस 

पर क्या कहूँ मेरे तो भाग ही फूटे 

सरकार ने दे रखे हैं कत्तलखानों के परमिट 

गाय-बैलों को नामशेष करने के लिए 

चीनी मिलों ने किया है इन्कार गन्ना उठाने से 

इसलिए लगा दी है अपने ही हाथों आग 

गन्ने के खेतों में 

जैसे कोई अभागा बाप देता है 

अपने ही सन्तान की चिता को अग्नि 

बीज-खाद-बिजली-पानी हो गयी है अबकी 

महँगी और अनमोल 

नोन-तेल-लकड़ी की जरूरत में 

जीवन हो गया है मेरा मिट्टी मोल

                          -डॉ. भगवान गव्हाड़े

कविता का मुख्य स्वर:

हिंदी साहित्य जगत में प्रेमचंद के साहित्य का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद हर एक पन्ने पर लिखा हुआ मिलता है। इसी वजह से कलम के सिपाही का नाम आज भी हिंदी प्रेमियों के ओठों पर मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का जीता-जागता उदाहरण मुंशी प्रेमचंद है। प्रेमचंद की कलम के हर एक स्याही के बूंद पर किसान जीवन का संघर्ष दिखता है। समाज के उच्च और निम्न ऐसे दो वर्ग के यथार्थ का संघर्ष उनके साहित्य में समाहित है। आदिवासी मोर्चा काव्य संग्रह के लेखक कवि भगवान गव्हाड़े ने 'होरी की याद में' नामक कविता में प्रेमचंद का होरी (किसान) और आज का किसान दोनों के संघर्ष पर बात की है। होरी प्रेमचंद के गोदान उपन्यास का किसानी पात्र है। वह पात्र आज भारत के सम्पूर्ण किसानों का प्रासंगिक रूप में प्रतिनिधित्व कर रहा है। इन दोनों परिस्थितियों  की प्रासंगिकता आज भी हमें जिंदा मिलती है। प्रेमचंद का किसान और आज का किसान में समय के अनुसार समानता-भिन्नता मिलती है। इन दोनों परिस्थितियों को संघर्षमय चित्रण डॉ भगवान गव्हाड़े अपनी कविता में किया है।

कवि कहते हैं कि होरी आपने अच्छा किया समय के पहले ही अपनी आंखें मूंद ली। किंतु आज का किसान भाई स्वाधीन होकर भी पराधीन काल में जीवन जीता हुआ मिला रहा है। भारत में भले ही शायनिग इंडिया के नारे लगाए जा रहे हैं। किंतु आज किसान दिन-प्रतिदिन हप्ते में एक बार गले में फंदा लेकर अपना जीवन समाप्त कर रहा है। होरी तुम्हारे रायसाहब में यह सब देखने के बाद कम से कम दया और करूणा जरूर जाग जाती। किंतु वर्तमान समय के रायसाहब को इस दुःख की कतई चिंता नहीं है। आज तुम्हारे वारिस की कीड़ो-मकोड़ो जैसी जिंदगी हो गई है। उनकी तरफ कोई भी ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है। तुम्हारा गोबर तो बुलाने से तुरंत आता कंधा देने किंतु आज के गोबर सूचना मिलने के बाद भी कंधा देने नहीं आते हैं। आज किसानी जीवन नारकीय बन गया है। वर्तमान में बड़े-बड़े जमींदारों को कर्जमाफ़ी मिलती है। किंतु अल्पभूधारक गरीब किसान का कभी भी नहीं होता कर्जमाफी। प्रेमचंद के होरी ने अपनी जवान लड़की की शादी एक अधेड़ रामसेवक से की थी। किंतु आज के असंख्य होरी की बेटियाँ दहेज देने की परंपरा से अधेड़ उम्र की हो रही है। प्रेमचंद का होरी खेतिहर मजदूर हुआ था किंतु आज के होरी की सेझ या सड़कें बनाने के नाम पर जमीन ही छीनी जा रही है वह भी बहुत ही कम दाम में। प्रेमचंद के होरी ने गाय दान करके कमाया था पुण्य। किंतु आज सरकार ने दे रखे हैं कत्तलखानों की परमिशन। 

इस प्रकार से प्रेमचंद का 'होरी' और वर्तमान में जीवन जी रहे 'किसान' की समानता-भिन्नता का बहुत ही सटीक उदाहरणों के माध्यम से डॉ. भगवान गव्हाड़े अपनी कविता में वर्णन किया है।

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