मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

'अगर तुम पेड़ होते' काव्य में अभिव्यक्त पेड़ की उपादेयता: रामदयाल मुंडा !! कलम को तीर होने दो संग्रह!! ( Agar tum ped hote kavya mein abhivyakt ped ki upadeyata : Ramdayal Munda)


'अगर तुम पेड़ होते' काव्य  में अभिव्यक्त पेड़ की उपादेयता
-डॉ.दिलीप गिऱ्हे 


'अगर तुम पेड़ होते'

अगर तुम पेड़ होते और मैं पंछी 
तुम्हारे पेड़ पर ही मैं डेरा डालता 
अगर तुम झाड़ी होते और मैं तीतर
तुम्हारी झाड़ी में ही मैं वास करता

हर सुबह सूर्योदय के साथ 
गीतों से ही बात करता मैं 
हर शाम सूर्यास्त के साथ 
गायन से ही बतियाता मैं

धरती की गर्मी, आकाश का ताप 
धरती की गर्मी से तुम्हें बचाता मैं 
धरती की गर्मी, आकाश का ताप 
आकाश के ताप से उन्हें छिपाता मैं।
-रामदयाल मुंडा

काव्य में पेड़ का महत्व :
प्रकृति में हर एक जीव-जंतु, पेड़-पौधों का अपना महत्व है। इसी के कारण प्रकृति की सुंदरता की पहचान है। आदिवासी काव्य ने प्रकृति को संरक्षित करने के लिए अनेक मार्ग दिखाए हैं। एक मार्ग झारखंडी आदिवासी अस्मिता के कवि रामदयाल मुंडा अपनी कविता 'अगर तुम पेड़ होते' में बताते हैं। पर्यावरण में पेड़ों के होने से क्या कुछ नहीं होता है। अगर पृथ्वी पर वृक्ष नहीं होते तो आज दुनिया का रूप ही न दिखाई देता। पेड़ होने से क्या होता है।
इसकी उपादेयता तो कवि रामदयाल मुंडा बताते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि 'अगर तुम पेड़ होते तो मैं क्या होता' आज मनुष्य ही प्रकृति के विनाश का कारण बन चुका है। जिसका नतिया हम देख रहे हैं कि दिन-ब-दिन पर्यावरण का रूप बदल रहा है। वह रूप हमे यह संकेत दे रहा है कि प्रकृति ख़तरे में है। इन खतरों से निपटने के लिए पेड़-पौधों का पृथ्वीतल पर होना ही एकमात्र उपाय है। इसी सभी बातों का संदर्भ कवि अपनी कविता में देते हैं।
वे कहते हैं कि 'अगर तुम पेड़ होते और मैं पंछी' तो प्राकृतिक सौदर्य कितना अच्छा होता। वैसे तो आजकल वृक्षों पर दिख रहे पंछियों के घोसले भी नहीं दिख रहे हैं। पंछियों की संख्या भी कम हो गई है। पहले जो चिड़िया हमारे आँगन में दिखाई देती थी वह आज दिख नहीं रही। इसी का संदर्भ कवि यहाँ देते हैं। वे कहते हैं तुम पेड़ होते तो तुम्हारे पेड़ पर मैं पंछी बनकर एक सुंदर-सा घोसला बनाता और उस घोसले में मेरे नन्हे नन्हे बच्चों को बारिश से सुरक्षित रखता। अगर तुम झाड़ी होते तो मैं तीतर बनाकर तुम्हारी झाड़ियों में निवास करता नाचता-गाता और सुबह सूर्योदय होने के बाद मेरे चीव-चीव के  स्वर में गीतों को गाता। जिससे मुझे ही नहीं बल्कि पृथ्वीतल पर हर एक जीव-जंतु सूर्यास्त होने का समय भी नहीं पता चलता। किंतु यह सब आनंद नहीं दिखाई दे रहा है। बस इतना ही नहीं मैं पेड़ होता तो धरती की गर्मी को बचाता सूरज के तेज़ किरणों से बचाता। गर्मी के दिनों में ही मनुष्य को पड़े होने का एहसास नजर आता है। किंतु कवि हर पल पेड़ के साथ जीवन को जीना चाहता है। 
इस प्रकार से कवि रामदयाल मुंडा ने  'अगर तुम पेड़ होते' कविता के माध्यम से पेड़ का महत्व स्पष्ट किया है।
संदर्भ :
गुप्ता, रमणिका-कलम को तीर होने दो. पृष्ठ संख्या ४९ 

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