महादेव टोप्पो की कविता में झारखंड का चित्र
-Dr. Dilip Girhe
'कविता को झारखंड घुमाना चाहता हूँ'
तुम्हारी कविता
टहलती है गंगा या यमुना किनारे
करती है सैर
मगध, इलाहाबाद, दिल्ली, बनारस, भोपाल, जयपुर
भोजपुर, अवध, ब्रज, मालवा की
आती नहीं कभी
कंटीली झाड़ियों से भरे
झारखंड के पहाड़ों पर
गलती से अगर आती भी है तो
तेज रफ्तार से चलती कार पर
होकर सवार
धूल से आँख बचाती
पहने रंगीन चश्मा
देखकर हमें
लौट जाती है राजधानी
इस कविता को मैं
चाहता हूँ झारखंड के गाँवों तक टहलाना
टूटे-फूटे शब्दों में
लिखता हूँ, कविता-
शहरों में दिकू बने घरों से दूर
आदिवासी कुनबे की कराना चाहता हूँ सैर
इसीलिए
टूटे-फूटे शब्दों में लिखता हूँ कविता
एक शोधकर्ता
एक पत्रकार
एक पेंटर
एक फोटोग्राफर
एक कलाकार और
एक प्रतिभाखोजी कोच की तरह
कविता को झारखंड घुमाना चाहता हूँ
टूटे-फूटे शब्दों में
कविता जैसी कुछ पंक्तियाँ
लिखने का प्रयास करता हूँ
कविता को झारखंड में घुमाना चाहता हूँ।
कविता में झारखंड:
काव्य लिखने वाला कवि जिस परिवेश में रहता है। वह उस परिवेश की परिस्थितियों का चित्रण उनके कविता में जरूर करता है। यानी की परिवेश उसकी कलम का चित्र बन जाता है। कवि महादेव टोप्पो झारखंड के आदिवासी कवि हैं। उनकी अधिकांश कविता में झारखंड की संस्कृति झलकती है। उन्होंने सम्पूर्ण झारखंड को अपनी कविता का केंद्रबिंदु बनाया है। उन्होंने 'कविता को झारखंड घुमाना चाहता हूँ' में झारखंडी अस्मिता के यथार्थ को चित्रित करने का प्रयास किया है। वे इस कविता के माध्यम से गैर आदिवासी कविता और आदिवासी कविता की परख बताते हैं। वे कहते हैं गैर आदिवासी कवियों की कविताओं में गंगा यमुना जैसी नदियों का चित्र मिलता है। इन्हीं नदियों के किनारों पर यह कविता तैरती है। इस कविता में हम मगध, इलाहाबाद, दिल्ली, बनारस, जयपुर, अवध, ब्रज और मालवा जैसे शहर का परिवेश मिलता है। यानी कि हम कह सकते हैं कि कविता का परिवेश कवि के क्षेत्र पर निर्भर रहता है। महादेव टोप्पो झारखंड आदिवासी बहुल प्रदेश में रहते हैं। उस प्रदेश की अस्मिता को साहित्य में दर्शाते है।
वे 'कविता को झारखंड घुमाना चाहता हूँ' कविता का संदर्भ देकर बताना चाहते हैं कि गैर आदिवासी कविता ने कभी पैर नहीं रखा है। झारखंड की कटती हुई झाड़ियों एवं पहाड़ों पर। वे कहना चाहते हैं कि अगर कोई कविता गलती से इस प्रदेश में दखल भी देती है, तो वह तेज रफ़्तार की कार को टकराकर दूर चली जाती है। यह कविता राजधानी तक सवार करती है और वहीं से वापस चली जाती है। जिस कविता ने सम्पूर्ण झारखंड प्रदेश नहीं घुमा उस कविता को कवि झारखंड घुमाना चाहते हैं। भले ही वे टूटे-फूटे शब्दों में लिखते हैं। लेकिन आदिवासी कुनबों की वास्तविक कहानी को दर्शाते हैं। इस टूटे-फूटे शब्दों वाली कविता को वे झारखंड घुमाना चाहते हैं। जिस प्रकार से एक शोधकर्ता अच्छा शोध कर सकता है, एक पत्रकार अच्छी खबर लिख सकता है, एक फोटोग्राफर अच्छी तस्वीर खींच सकता है, एक कलाकार अच्छी कला को प्रस्तुत करता है, उसी तरह से एक कवि उस परिवेश को अच्छी तरह से लिख सकता है। वहीं काम महादेव टोप्पो अपनी कविता में दर्शाते हैं। वे संपूर्ण कविता को झारखंड घुमाना चाहते हैं।
इस प्रकार से झारखंडी आदिवासी महादेव टोप्पो अपनी कविता में झारखंड की आदिवासी अस्मिता को दर्शाते हैं।
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