शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

निर्मला पुतुल की कविता में मुसाफिर के पदचिन्ह !! बेघर सपने काव्य संग्रह !! आदिवासी कविता (Nirmala putul ki kavita mein musafir ke padchin)

निर्मला पुतुल की कविता में मुसाफिर के पदचिन्ह

Dr. Dilip Girhe


मुसाफिर

मुसाफिर आता है

मुसाफिर जाता है

उसके पाँव के निशान रास्ते में बचे रह जाते हैं 

उसके पाँव के निशान उसकी मंजिल की कथा कहते हैं 

पता नहीं इधर से गुजरने वाले 

मुसाफिर की मंजिल क्या थी 

यह तो मैं कह नहीं सकती 

लेकिन अपनी यात्रा की 

एक पड़ाव पर जिस रात वह 

जहाँ ठहरा था, वहाँ उसकी 

उपस्थिति गंध आज भी मौजूद है 

इन मुसाफिरों का क्या है 

आते हैं जाते हैं

और हर बार एक कथा छोड़ जाते हैं

जो जीवन के इतिहास के

पन्नों में दर्ज हो जाता है 

जब-जब भी स्मृतियों की मीठी बयार 

बहती है, तब-तब इतिहास के पन्ने 

फड़फड़ाते हैं और मुसाफिर के पदचिन्हों 

से ऐसा लगता है एक दिन वह 

मुसाफिर फिर लौटेगा

और यात्रा के उस पड़ाव पर फिर ठहरेगा 

जहाँ आज भी उसकी उपस्थिति गंध 

उसके लौटने का इंतज़ार कर रही है।

-निर्मला पुतुल

काव्य संवेदना:

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मुसाफ़िर आते हैं और जाते हैं। उस मुसाफ़िर के पाँव के निशान मात्र वहीं के वहीं रह जाते हैं।  वे निशान एक प्रगति का मार्ग दिखाते हैं और अपनी मंजिल तक पहुचाने के लिए मदद करते हैं। कवि निर्मला पुतला ने उनके साथ जो भी मुसाफ़िर आकर चले गए हैं। उनके कुछ पदचिन्हों को 'मुसाफ़िर' कविता में चित्रण किया है।  वे कहती है कि जो भी मुसाफ़िर आते हैं अपने जीवन में उनके पाँव के निशान अनेक प्रकार की कहानियां बताकर चले जाते हैं। कुछ मुसाफ़िर हमारे सामने से भी गुजर जाते हैं। किंतु उनकी मंजिल क्या है समझ में नहीं आती है। किंतु हमें जो भी अनुभूति मिली उसके आधार पर हम उस मुसाफ़िर का चित्र रेखांकित कर सकते हैं। वह जहां भी रुका हो उसके पदचिन्ह हमें याद आते हैं।

ऐसे अनेक मुसाफ़िर मनुष्य के जीवन में आते हैं और चले जाते हैं। ऐसे मुसाफ़िर इतिहास के पन्नों पर लिखित दस्तावेज बन जाते हैं। हमें जब-जब उनकी याद आती है तब तब हम उन पन्नों को पलट सकते हैं। वह पन्ने पलटे हैं ही हमें उनकी संपूर्ण पदचिन्हों की स्मृति सामने आती है। जैसे लगता है एक दिन वह मुसाफ़िर फिर से मिल जाएगा। यह मुसाफ़िर केवल मनुष्य ही नहीं रहता है। वह पेड़, पशु, पक्षी, पदार्थ, पहाड़ नदी या फिर प्रकृति का कोई भी घटक हो सकता है। इसीलिए अपने जीवन के यात्रा के पड़ाव पर ऐसे अनेक मुसाफ़िरों का मिलने पर स्वागत करना चाहिए। तभी जीवन में सुख और दुःख दोनों बाजूओं का पता चलता है। 

संदर्भ:

निर्मला पुतुल -बेघर सपने -पृष्ठ -29-30


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