पुनीता जैन द्वारा लिखित आदिवसी काव्य विधा का महत्वपूर्ण दस्तावेज़: आदिवासी कविता चिंतन और सृजन
-Dr. Dilip Girhe
वर्तमान में आदिवासी साहित्य पर लगातार साहित्य का सृजन हो रहा है। प्रत्येक विधा ने इस साहित्य को मजबूत प्रदान करने के लिए अपनी अहम् भूमिका निभाई है। उपन्यास, कहानी और आत्मकथा जैसी विधाओं की तुलना में कविता विधा आदिवासी साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा मानी जाती है। क्योंकि आदिवासी कवि आज बहुत कम शब्दों अपनी कविता के माध्यम अपना सुख, दुःख, पीड़ा, वेदना, भाषा, संस्कृति, अस्मिता, पहचान, इतिहास को काव्य में व्यक्त कर रहा है। ऐसी ही सृजनात्मक तथ्यों को पुनीता जैन ने अपनी क़िताब 'आदिवासी चिंतन और सृजन' में प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित है। सन् 2023 में प्रकाशित यह पुस्तक आदिवासी काव्य के क्षेत्र में एक लिखित महत्वपूर्ण दस्तावेज़ के रूप में पाठकों के सामने आई है। 544 पृष्ठों की इस क़िताब में लेखिका पुनीता जैन ने 29 आलोचनात्मक लेखों पर चिंतन एवं सृजन करते काव्य की सृजन शक्ति को अभिव्यक्त किया है। इस पुस्तक में संपूर्ण भारतवर्ष के कवियों की कविताओं पर बात की गई है।
पुस्तक का अनुक्रम सृजनात्मक सिद्धान्तों को व्यक्त करता है। कोई शीर्षक आदिवासी जीवन दर्शन पर बात करके उसके विचारों की आधार भूमि बताता है। विरासत, पुरखा साहित्य, आदिवासी इतिहास सृजन, काव्य निर्माण के महत्वपूर्ण आयाम, आदिवासी साहित्य के प्रतिभाशाली कवियों का सृजनात्मक साहित्य, आदिवासी संस्कृति युगबोध के संवाहक, कलम को तीर में लिपिबद्ध करने वाले स्वर, आदिवासियों का दमनकारी चक्र, प्रकृति के विविध प्रतीक, आदिवासी साहित्य और जीवन शैली, आदिवासी कविता का मानवतावादी पक्ष, भारत के आदिवासी समुदायों की जीवन शैली, परंपरा जैसे अनेक मुद्दों को लेखिका पुनीता जैन ने लिपिबद्ध करके लिखा है। उनका यह चिंतन और सृजन वाकई आदिवासी कविता को एक नई दिशा और दशा को प्रदान करेगा। जब जब आदिवासी काव्य की चिंतन और सृजन की बात आएगी तभी यह दस्तावेज़ काम आएगा। इसमें अनेक कवियों के अनेक सृजनात्मक पक्षों को कवि ने लिखा है। एक सामान्य पाठक, शोधार्थी, लेखक, कवि, प्राध्यापक जब भी आदिवासी काव्य सृजन पर अपनी कलम चलाना चाहेगा। तब यह दस्तावेज संदर्भ, जानकारी स्त्रोत, ज्ञानवर्धक करने के लिए उपयुक्त होगा।
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