सरोज केरकेट्टा की 'रास्ते बंद हैं' कविता में भूमंडलीकरण का प्रभाव
Dr. Dilip Girhe
रास्ते बन्द हैं
खेतों पर सड़कें
उग आई हैं
अगल-बगल
गिट्टी-मिट्टी-बालू
पाइप-पीपे-कीलें
भर गयी हैं खेतों की मेड़ों पर
मेरी नानी बकरियाँ ले जाते-
'धुर, धुर' कहा करती थी
साथ-साथ चलती मैं
ओस की बूँदें
ढरकाया करती थी
अब रास्ते बन्द हैं
खेत निगले गये
उग आये हैं अपार्टमेंट
उनसे निकला रासायनिक
जल कीचड़ में तब्दील हुआ
बाउंड्री बन गयी है
और रास्ते बन्द हैं
रास्ते और बकरियाँ
नानी और मैं
बचे नहीं
खेत बने कंक्रीट के जंगल
और नानी बन गयीं ओल्ड एज होम
की शोभा ।
-सरोज केरकेट्टा
काव्य में व्यक्त भूमंडलीकरण का प्रभाव:
साहित्यकार विकास के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों की तत्वों अपने साहित्य में जगह देता है। जब आदिवासी कविता विकास की नीति पर चिंतन करती हुई दिखती है तो सबसे पहले वह भूमंडलीकरण के परिणामों पर बात करती है। मनुष्य ने पैसे कमाने के दृष्टिकोण से प्राकृतिक संपदा को हद से भी ज्यादा नष्ट करना शुरू किया है। इसी वजह से आदिवासी कवि प्राकृतिक संपदा को संरक्षित रखने के लिए अपनी कविता में बार-बार संकेत करता है। लेकिन आज विकास की नीति ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया कि वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। कवि सरोज केरकेट्टा इसी विकराल रूप के परिणामों पर बात रखती है। वे कहती है कि पहले प्रकृति का रूप 'कैसे था और कैसे हो गया।' हम जब नबें के दशक के पहले की बात करते हैं तो उसमें प्राकृतिक संपदा का उतना हनन नहीं हुआ था। किंतु जब नबें के दशक के बाद की परिस्थितियों पर चर्चा करते हैं तो काफ़ी बदलाव पाया गया है। इस बदलाव को ही कवि अपनी कविता 'रास्ते बंद हैं' में दर्शाते हैं।
कवि अपनी कविता में कहती है कि जहाँ पर पहले हरे-भरे खेत-खलिहान थे आज उसी जगह पर लंबी-लंबी कतार की कंक्रीट की सड़कें बन चूंकि है। और उसी के अगल-बगल में गिट्टी की खदानें भी बन गई हैं। इसका प्रभाव यह पाया गया कि जमीन की धूप ज्यादा बढ़ गईं और गर्मी अधिक मात्रा में पाए जाने लगी है। कवि इसी का भी संकेत देते हैं कि जहाँ खेतों की मेड़ों पर मैं अपनी नानी के साथ बकरियाँ चराने जाती थी। 'धूर-धुर'कहा करती थी। यह सब आवाजें अब बंद हो गई है। क्योंकि न ही बकरियां चराने घास बची है और न ही हरियाली बची है। यह प्राकृतिक सौंदय दिखाई देने के सभी रास्ते अब बंद हो गई हैं। इन रास्तों पर आज हमें नजर आ रहे है बड़े-बड़े अपार्टमेंट और आसपास सभी ओर रासायनिक धुओं की हवा। अब बकरियां चराने और हरे-भरे खेतों में मौज करने के दिन खत्म हो गए हैं। इन सभी रास्तों की दीवारों की चाबी अब खो गई है। मनुष्य के विकास नीति के कारण अब यह चाबी खोजना बहुत मुश्किल काम है। क्योंकि अब विकास की नीति गाड़ी ने भागने की रफ्तार की स्पीड डबल कर दी है।
इस प्रकार से कवि सरोज केरकेट्टा ने 'रास्ते बंद हैं' कविता में विकास नीति के प्रभाव के अनेक मुद्दों को रेखांकित किया है।
संदर्भ
गुप्ता,रमणिका-कलम को तीर होने दो-काव्य संग्रह-पृष्ठ-254
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