स्त्री शिक्षा के उन्नति का प्रतीक उषाकिरण आत्राम की कविता:ज्ञान की जोत जलाएँ
Dr. Dilip Girhe
ज्ञान की जोत जलाएँ
घर-घर में, द्वार-द्वार पर
ज्ञान की जोत जलाओ
पढ़ाएँगे माँ, पढ़ाएँगे बहना
करेंगे उन्नति महिलाओं की
है विश्व भारती घर में
चूल्हे में जल रहीं लकड़ियाँ
पोंछ रही आँखें आँचल से
क्या उसी का है चूल्हा-बच्चा
बोझ उठा कर। करेंगे साक्षर
उतारेंगे आरती ज्ञान की
करेंगे उन्नति महिलाओं की ।।1।।
माँ के कारण बड़े हो गए
वह नींव हम हिमालय
पैर में उसके काँटे टूटे
हम हो गए फूल गुलाब
उस ऋण का प्रतिदान चुकाने
करेंगे उन्नति महिलाओं की
ज्ञान की जोत जलाओ ।।2।।
घर-घर में, द्वार-द्वार पर
ज्ञान की जोत जलाओ
पढ़ाएँगे माँ, पढ़ाएँगे बहना
करेंगे उन्नति महिलाओं की
-उषाकिरण आत्राम
(झाड़ी शीर्षक: ज्योत पेटऊ ज्ञानाची)
काव्य में स्त्री शिक्षा की उन्नति का संदेश:
भारत में शिक्षा की ज्योत सर्वप्रथम फुले दाम्पत्य ने जलाई है। ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने पुणे में प्रथम स्कूल बालिका स्कूल स्थापित करके वहाँ से बालिकाओं के लिए विद्या अर्जन होना शुरू हुआ। तब से महिला ने 'चूल आणि मूल' इस मराठी कहावत को पूर्ण विराम दे दिया। हर घर से बालिका बढ़कर अपने घर का नाम रौशन कर रही है। इसीलिए जब-जब महिला शिक्षा की बात होती है। तब-तब फुले दाम्पत्य का नाम सबसे पहले आता है। उषाकिरण आत्राम ने भी इसी का एक संदर्भ अपनी कविता 'ज्ञान की जोत जलाएँ' में दिया है। वे महिलाओं की उन्नति होने के लिए ज्ञान का दीपक घर-घर और द्वार द्वार पर जलाने की बात करती है। तभी समाज में व्याप्त हर एक परिवार उन्नत हो जाएगा।
आज जो महिलाएं घर में चूल्हा जला रही है। अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही है। उन तमाम महिलाओं को ज्ञान की जोत जलाकर एक प्रगतिशील समाज बनाना होगा। तभी समाज के हर एक तबके की उन्नति हो सकती है। संविधान ने सभी को पढ़ने-लिखने का अधिकार दिया है। इस अधिकार को महिलाओं को स्थापित करके शिक्षा को अर्जित करना होगा। कवयित्री कहती है कि हम उस माँ के भी आभार व्यक्त करते हैं। जिस माँ ने हम पाला-पोसा है और ज्ञान के हिमालय पर चढ़ने के लिए शिक्षा दी। जिसके कारण महिला आज हर एक क्षेत्र में अपना प्रतिनिधित्व स्थापित कर रही है। वे अपने मूलभूत अधिकारों को जान रही है। अन्याय-अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज उठा रही है।
इस प्रकार से कवयित्री उषाकिरण आत्राम ने महिला उन्नति के लिए ज्ञान का दीपक घर-घर जलाने का संदेश अपनी कविता 'ज्योत पेटवू ज्ञानाची' में दिया है।
संदर्भ:
आत्राम, उषाकिरण-कलम की तलवारें (अनुवाद-डॉ मिलिंद पाटिल) पृष्ठ-147-148
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